ये विचार हैं प्रख्यात आलोचक एवं मुंबई विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय ने भारतीय ज्ञान परंपरा का स्वरूप विश्लेषण करते हुए कहा कि,”प्रसाद जी राष्ट्रीय- सांस्कृतिक जागरण द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा को पुरस्कृत करने वाले अद्वितीय कलाकार हैं। इन्होंने हमारे साहित्य को भारतीय मनुष्य, भारतवर्ष की राष्ट्रीय प्रकृति और भारतीयता के निर्माणक तत्त्वों की ओर पूरी तरह से लगा दिया।इनकी विश्व-संदृष्टि उज्जवल नवमानवतावाद पर आधारित है।प्रसाद जी भारतीय ज्ञान परंपरा के नायक हैं।
ये विचार प्रख्यात आलोचक एवं मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय ने आर. पी. ग्लोबल स्कूल के सभागार में साहित्य संस्कृति संस्थान,अयोध्या एवं डा राधिकाप्रसाद त्रिपाठी स्मृति न्यास,अयोध्या के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित व्याख्यान “भारतीय ज्ञान परम्परा और जयशंकर प्रसाद”विषय पर बोलते हुए व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि प्रसाद सांस्कृतिक चैतन्य से भरे हुए कलाकार हैं जो मानवीय जीवन की सार्थकता आनंद प्राप्ति में ढूँढ़ते हैं। इनका दार्शनिक चिंतन रागपरक रहस्य चेतना के रूप में प्रकट हुआ है। इनका साहित्य क्वांटम भौतिकी ( quantum physics) की तरह घोर से अघोर अर्थात प्रकृति के परमाणुओं, उप- परमाणुओं से विराटता और अपारता की ओर जाता है। यही कारण है कि उसे समझने के लिए उदात्त जीवन बोध और अंतर्दृष्टि तथा विश्व- संदृष्टि आवश्यक है। इनके साहित्य में संपूर्ण विश्व का संवेदन और भारतीय मनीषा के चिंतन का सार- तत्व परिव्याप्त है। अत: उसके पास जाने के लिए विराट अध्ययन, गहन बौद्धिक तैयारी और संवेदनात्मक औदात्य जरूरी है। चूँकि प्रसाद काव्य की गहन संरचना बहुलार्थी और उसकी अभिव्यंजना क्लासिक है अत: वे उसे जिस ऊंचाई पर ले जाती है ,वह या तो आलोकित करती है अथवा संगीत की सीमा का भी अतिक्रमण कर जाती है” ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी,वरिष्ठ आचार्य एवं अध्यक्ष,हिन्दी विभाग,डा. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय,सागर,मध्यप्रदेश ने भारतीय ज्ञान-परम्परा को नयी सदी में भारतीय समाज के जागरण के लिए आवश्यक बताते हुए नयी पीढ़ी को भारतीय ज्ञान परम्परा से जोड़ने का आह्वान किया। विशिष्ट अतिथि अवध अर्चना के सम्पादक साहित्यकार श्री विजय रंजन जी ने भारतीय ज्ञान परम्परा का महत्व प्रतिपादित करते हुए इसे राष्ट्र के जागरण का आधार बताया।राजामोहन मनूचा गर्ल्स पी जी कालेज,अयोध्या की प्राचार्य प्रो मंजूषा मिश्र ने भारतीय ज्ञान परम्परा को लोक से जोड़ने की बात कही।
कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं मां सरस्वती तथा डा. राधिकाप्रसाद के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ।कवयित्री कात्यायनी उपाध्याय ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।कार्यक्रम के संयोजक बी एन के बी पी जी कालेज,अकबरपुर,अम्बेडकर नगर के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो सत्यप्रकाश त्रिपाठी ने विषय का प्रतिपादन करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान-परम्परा प्रसाद के साहित्य का मूल आधार है,जो आज के समय में विशेष प्रासंगिक है।धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रवादी साहित्य संस्कृति मंच के महामंत्री श्रीकान्त द्विवेदी जी ने किया।इस अवसर पर श्री गिरिजाशंकर उपाध्याय,श्री मंजू उपाध्याय,प्रो अशोक मिश्र, डा कामेश्वर मणि पाठक, डा वीरेन्द्र दुबे,डा भावेश त्रिपाठी,डा अर्चना त्रिपाठी,दीप्ति मिश्रा,अभिनव उपाध्याय, दीनानाथ पाण्डेय आदि अनेक विद्वान,साहित्यकार तथा प्राध्यापक उपस्थित रहे।