राजनांदगांव। आज के दौड़ धूप भरे, अंध महत्वाकांक्षा में डूबे जीवन क्रम में लोग कदम-कदम पर लोग दूसरों की राहों में रोड़े अटकाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। लेग पुलिंग अंतराय कर्म का आधुनिक रूप है। जोड़-तोड़ उसकी अभिव्यक्ति है। अकारण किसी को परेशान करना उसकी रणनीति का हिस्सा है। किसी का काम बेवजह बिगाड़ देना उसका परिणाम है। लिहाज़ा, आज के दौर में स्वार्थ की तंग गलियों में ऐसा रस देखा जा रहा है कि सर्वार्थ का राजमार्ग दम तोड़ने लगा है। इससे बचकर रहना सादा जीवन- उच्च विचार से ही संभव है। रिसर्च फाउंडेशन फार जैनोलॉजी, जैन विद्या विभाग, मद्रास विश्वविद्यालय,चेन्नई द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक और प्रख्यात वक्ता डॉ. चंद्रकुमार जैन ने अतिथि व्याख्यान देते हुए उक्त विचार व्यक्त किया। गौरतलब है कि गुरू विजय प्रवर्तित चरित्र निर्माण विद्वत्संगोष्ठी में जैन दर्शन के कर्मवाद तथा ख़ास तौर पर अंतराय कर्म के फ़लसफ़े पर केंद्रित आयोजन में देश भर के दर्शनवेत्ता, प्राध्यापक, संपादक और चिंतकों ने गहन मंथन किया।
मद्रास विश्वविद्यालय ने इस वर्ष राजधानी रायपुर की भैरव सोसाइटी स्थित नाकोड़ा भवन सभागार में यह आयोजन किया। वहां, चातुर्मास के लिए विराजमान विश्ववल्लभ आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने मंगल उदबोधन दिया। रिसर्च फाउंडेशन फार जैनोलॉजी की तरफ से संयोजक साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने प्राध्यापक डॉ. चंद्रकुमार जैन का परिचय देते हुए उनकी प्रेरक सहभागिता, प्रभावी वक्तृत्व कला, सजग सेवाओं और सतत उपलब्धियों को समाज तथा साहित्य-संस्कृति जगत के लिए प्रेरणास्पद निरूपित किया। डॉ. धींग ने बताया कि डॉ. चन्द्रकुमार जैन अब तक हिंदी, अंग्रेजी, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र, लोक प्रशासन और महात्मा गांधी एवं शांति अध्ययन जैसे छह विषयों में एम.ए. के अलावा क़ानून, मानव अधिकार, सूचना का अधिकार और डॉक्टरेट की उपाधियाँ भी अर्जित कर, कई किताबों की रचना के साथ अपनी अचूक सम्भाषण व लेखन कला से अकादमिक कर सामाजिक कार्यों में लगातार योगदान कर रहे हैं।
अधिकारों का हनन अंतराय
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उदघाटन सत्र के प्रमुख अतिथि वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि किसी के पांव का कांटा निकलना संभव न हो तो किसी की राह में कांटे बिछाने का अधिकार भी किसी को नहीं है। अंतराय दूरियां पैदा करने वाला ऐसा कर्म है जिससे जीव अपनी की हानि का मार्ग स्वयं तैयार करता है। डॉ. जैन ने कहा कि मानव अधिकारों और सभी जीवों के अधिकारों का किसी भी रूप में हनन करना अंतराय कर्मबंधन का भागीदार बनना है। दान, लोभ, भोग, उपभोग और वीर्य जैसे पांच आयामों के अतिरिक्त अंतराय कर्म के उपभेदों को सारभूत चर्चा करते हुए डॉ. जैन ने कहा कि भरपूर साधन और समार्थ्य के बावजूद अगर हम किसी के काम न आ सकें तो समझना चाहिए कहीं न कहीं हमने जाने अनजाने में अंतराय के बीज बो दिए हैं। इसे लेकर अगर हम जागरूक रहें तो बाजी अपने हाथ है, प्रमाद या बेहोशी में कोई उम्मीद करना व्यर्थ है।
सीधी-सच्ची ज़िंदगी बड़ी नेमत
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डॉ. जैन ने जैन दर्शन के घाती और अघाती कर्मों की चर्चा करते हुए दर्शन मोहनीय से अंतराय के विशेष सम्बन्ध का खुलासा किया और यह भी कहा कि अंतराय, अविश्वास का अनिवार्य प्रमाण है। इससे बचकर रहना सादा जीवन- उच्च विचार से ही संभव है। अंतराय कर्म का दर्शन दरअसल, डॉ. जैन ने कहा सीधी सच्ची ज़िंदगी जीने का अचूक उपाय है। अपनी क्षमता का सही उपयोग न करना भी अंतराय है। दूसरों की क्षमता का घात करना भी अंतराय है। आत्म अनुभूति और पर अनुभूति की लय अगर हासिल हो जाए तो अंतराय कर्म भी जीवन के मर्म का अधिकारी बना सकता है। विश्वविद्यालय और श्री संघ द्वारा अतिथि वक्ता डॉ. चंद्रकुमार जैन का भावभीना सम्मान किया गया।