Monday, April 28, 2025
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मलौली का चतुर्वेदी कविकुल घराना

पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के महान शिक्षाविद राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित स्मृतिशेष माननीय डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘ सरस’ कृत : “बस्ती के छन्दकार” शोध ग्रन्थ के आधार पर बस्ती मंडल ( बस्ती , सिद्धार्थ नगर और सन्तकबीरनगर जिलो) में कई कविकुल परम्परायें मिलती हैं। जिसमें मलौली का चतुर्वेदी कविकुल घराना अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

     मलौली गाँव उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के घनघटा तालुका में स्थित है । यह धनघटा से 2 किमी तथा संत कबीर नगर जिला मुख्यालय से 28 किमी दूर स्थित है। हैसर धनघटा नगर पंचायत में गांव सभा मलौली शामिल हुआ है । इसे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । इस गांव ने सर्वाधिक  6 – 7 कवियों को जन्म दिया है।

 

1.राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’

प्रथम कुल पुरुष

 

    पंडित राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ श्रावण कृष्ण 11 संवत् 1822 विक्रमी को संत कबीर नगर के घनघटा तालुका के मलौली गाँव में पैदा हुए थे। हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत में गांव सभा मलौली शामिल हुआ है । इसे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है। यहां हॉस्पिटल और कईअन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी बने हुए हैं। यहां पर नगर पंचायत का कार्यालय भी बन रहा है।

पंडित राम गरीब चतुर्वेदी इस वंश के उत्तरवर्ती ज्ञात छः कवियों के मूल पुरुष रहे। इनके पिता ईश्वर प्रसाद धनघटा के पास मनौली के मूल निवासी थे,जो महसों राज के अन्दर आता था। ये ज्योतिष, संस्कृत और आयुर्वेद के विद्वान थे। सशक्त छंदकार होने के साथ साथ वे कवियों का बहुत आदर और सम्मान करते थे। पंडित राम गरीब जी ‘गंगाजन’ उप नाम अपने लिए प्रयुक्त करते थे। उनके छंदों पर रीति कालीन साहित्य का पूरा प्रभाव परिलक्षित होता है। सवैया और मनहरन उनके प्रिय छंद थे। इनके कुछ छंद इनके वंश परम्परा के कवि ‘ ब्रजेश’ जी के संकलन से ज्ञात हुआ है –

सुन्दर सुचाली ताली रसना रसीली वाली,

द्विजन प्रणाली लाली हेमवान वाली है।

लोचन विशाली मतवाली विरुद वाली,

चेत पर नाली वरदान वाली काली है।

दास अघ घाली खरसाली मुंडमाली,

संघ सोहत वैताली दुखभे की कह ब्याली है।

गंगाजन पाली करूं कृपा मातु हाली,

कार्य साधिए उताली तोहि शपथ कपाली हैं ।।

‘गंगाजन’ काली मां के भक्त थे। उन्होंने काली मां की अर्चना में 105 छंदों वाली ‘काली शतक’ लिखा है जो अप्राप्य है। इनका एक अन्य छंद डा. ‘सरस’ जी ने अपने शोध ग्रन्थ ‘बस्ती के छंदकार’ नामक ग्रन्थ के भाग 1 के 11वें पृष्ठ पर इस प्रकार उद्धृत किया है –

उमड़ी घुमड़ी गरजै बरसै,

गिरि मन्दिर ते झरनाय झरें।

पिक दादुर मोरन सोरन सो,

विरही जन होत न चित्तथिरै।

युत वास कदम्ब के वात चलें,

गंगाजन हिय विच भाव घिरें।

झक केतु के पीरते आली पिया,

बिनु शीश जटा लटकाय फिरें।।

    पंडित राम गरीब रईस परम्परा के कवि थे। उनके समकालीन कवि राम लोचन भट्ट आदि बड़ा आदर पाते थे। इलाहाबाद, वाराणसी और विंध्याचल जाने के अलावा बस्ती जिले के महसों राजा के यहां इनका बड़ा आदर था। भवानी बक्श और बल्दी कवि का ‘गंगाजन’ के यहां बड़ा आदर होता था। कार्तिक सुदी दशमी संवत 1913 विक्रमी में 91 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने शरीर का परित्याग किया था। इन्होंने अपने पीछे अब तक ज्ञात छ: कवियों की एक श्रृंखला जोड़ रखी है।

 

2. रीतिकालीन कवि

श्री बलराम चतुर्वेदी

रीति कालीन परम्परा के सुकवि बलराम चतुर्वेदी श्रावण शुक्ल 5 संवत् 1922 विक्रमी को संत कबीर नगर के घनघटा तालुका के मलौली गाँव में बलराम चतुर्वेदी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे।

बलराम चतुर्वेदी श्री रामगरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ के गाँव में पैदा हुए थे। ये  राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ के प्रपौत्र रहे हैं । इनके पिता का नाम बेनी दयाल चतुर्वेदी था। ये तीन भाई थे – घनश्याम, ईशदत्त और बेनीशंकर इनके छोटे भाई थे। इनके छंदों पर रीति कालीन परम्परा का प्रभाव था। फुटकर छंदों के अतिरिक्त हनुमान शतक इनका बहु चर्चित कृति थी। उन्होंने 111 छंदों में हनुमान जी की स्तुति की है। उनकी भाषा ओजपूर्ण ब्रज भाषा है। छंदों में लालित्य है और काव्य में ओज। सभी छंद भक्ति से परिपूर्ण थे, परन्तु पांडुलिपि गायब हो गई है। कवि बलराम चतुर्वेदी मृत्यु संवत् 1997 विक्रमी को हुई थी।

जीवन में कभी-कभी ऐसी परेशानियां आ जाती हैं कि व्यक्ति बिल्कुल निराश हो जाता है। उसे समझ नहीं आता किआखिर किस तरह से अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाया जाया। ज्योतिष के मुताबिक घर में हनुमान जी की पंचमुखी तस्वीर लगाने से घर पर किसी तरह की विपत्ति नहीं आती है। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। उनके स्मरण मात्र से हर तरह की समस्या से मुक्ति मिल जाती है। पंचमुखी हनुमान के पांचों मुख का अलग-अलग महत्व है। इसमें भगवान के सारे मुख अलग-अलग दिशाओं में होते हैं। पूर्व दिशा की ओर हनुमान जी का वानर मुख है जो दुश्मनों पर विजय दिलाता है। पश्चिम दिशा की तरफ भगवान का गरुड़ मुख है जो जीवन की रुकावटों और परेशानियों को खत्म करते हैं। उत्तर दिशा की ओर वराह मुख होता है जो प्रसिद्धि और शक्ति का कारक माना जाता है। दक्षिण दिशा की तरफ हनुमान जी का नृसिंह मुख जो जीवन से डर को दूर करता है।आकाश की दिशा की ओर भगवान का अश्व मुख है जो व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

पंचमुखी हनुमान जी के विग्रह से संबंधित सुकवि बलराम चतुर्वेदी का  एक छंद द्रष्टव्य है –

पूरब बिकट मुख मरकट संहारे शत्रु

दक्षिण नरसिंह जानें दानव वपुश को।

पश्चिम गरुण मुख सकल निवारै विष

उत्तर बाराह आनें सर्प दर्प सुख को।

ऊर्ध्व है ग्रीव पर यंत्र मंत्र तन्त्रन को

करत उच्चांट बलराम दीह दुख को।

बूत करतूत सुनि भागे जगदूत भूत

बंदों सो सपूत पवन पूत पंच मुख को।।

 

3.शृंगार रस के कवि

भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’

    भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया संवत 1930 विक्रमी में  हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ है ।भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ जी के पिता कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। राम नारायण उच्च स्तर के छंदकार रह चुके हैं। उनका रंग परिषद में बड़ा सम्मान था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे।

भास्कर प्रसाद शृंगार रस के कवि

      साहित्य के अनुसार नौ रसों में से एक रस जो सबसे अधिक प्रसिद्ध है और प्रधान माना जाता है । जब पति-पत्नी या प्रेमी- प्रेमिका के मन में रति नाम का स्थायी भाव जागृत होकर आस्वादन के योग्य हो जाता है, तो इसे शृंगार रस कहते हैं. शृंगार रस को रसराज भी कहा जाता है. यह नौ रसों में से एक है।

जाको थायी भाव रस,

सो शृंगार सुहोत।

मिलि विभाव अनुभाव पुनि

संचारिन के गोत।

   इसमें नायक – नायिका के परस्पर मिलन के कारण होने वाले सुख की परिपुष्टता दिखलाई जाती है । इसका स्थायी भाव रति है । आलंबन विभाव नायक और नायिका हैं । उद्दीपन विभाव सखा, सखी, वन, बाग आदि, विहार, चंद्र- चंदन, भ्रमर, झंकार, हाव भाव, मुसक्यान तथा विनोद आदि हैं । यही एक रस है जिसमें संचारी विभाव, अनुभाव सब भेदों सहित होता है; और इसी कारण इसे रसराज कहते हैं । इसके देवता विष्णु अथवा कृष्ण माने गए हैं और इसका वर्ण श्याम कहा गया है । यह दो प्रकार का होता है- एक संयोग और दूसरा वियोग या विप्रलंभ । नायक नायिका के मिलने को संयोग और उनके विछोह को वियोग कहते हैं ।

शृंगार रस की प्रधानता मुख्यतः रीतिकाल में है। हिंदी साहित्य में कविवर बिहारीलाल जी शृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे। शृंगार रस के लोकप्रिय कवि बिहारी लाल का नाम हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में अधिकांशतः शृंगार रस का प्रयोग किया है । इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपनी कृतियों में गागर में सागर भर दिया है। उनकी लिखी हुई शृंगार रस कविता इस प्रकार है –

तुम बिन हम का हो सजनी,

तुम बिन हम का हो सजनी।

परुष समान पुरुष में तुमने,

भर दी अपनी कोमलता।

बेतरतीब पड़े जीवन में,

लाई तुम सुगढ सँरचना।

छोड्के निज घर बार सजाया,

दूर नया सन्सार हो सजनी।

तुम बिन हम का हो सजनी।

तुम बिन हम का हो सजनी।।

बिहारी का शृंगार रस से परिपूर्ण एक और दोहा दृष्टव्य है  –

“बतरस लालच लाल की

मुरली धरी लुकाय।

सौंह करै भौंहनु हँसे ,

दैन कहै नटि जाय।”

“कहत, नटत, रीझत, खिझत,

मिलत, खिलत, लजियात।

भरे भौन में करत हैं,

नैननु ही सों बात।”

“पतरा ही तिथी पाइये,

वा घर के चहुँ पास।

नित प्रति पून्यौई रहे,

आनन-ओप उजास।”

” अंग अंग नग जगमगत

दीपसिखा सी देह।

दिया बुझाय ह्वै रहौ,

बड़ो उजेरो गेह।”

” तंत्रीनाद, कवित्त-रस,

सरस राग, रति-रंग।

अनबूड़े बूड़े तिरे

जे बूड़े सब अंग।”

 मलौली धनघटा सन्त कबीर नगर निवासी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी शृंगार रस के बड़े कवि थे। 52 छंदों की शृंगार बावनी इनकी रचना बताई जाती है। यह ब्रज भाषा में लिखा गया है। सभी मनहरन और घनाक्षरी छंद में लिखे गए हैं। एक छंद (डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ कृत ‘बस्ती के छंदकार’ भाग 1, पृष्ठ 13 के अनुसार ) द्रष्टव्य है –

प्यारी सुकुमारी की बड़ाई मै कहां लौ करौ, रति तन कोटिन निकाई परयो हलके।

सुन्दर गुलाब कंज मंजुल सुपांखुरिन

धोए पद कंजन में जात परे झलके।

कंच कुच भार को सम्हारि न सकत अंग चौंकि चौंकि उठति सुरोज कंज दल के।

ऐसी सुकुमारता दिनेश जी कहां लौ कहूं, गड़िजात पांव में बिछौना मखमल के।।

इस छंद में अतिशयोक्ति बिहारी जी की नायिकाओं से भी बढ़कर है। दिनेश जी रईस परम्परा के कवि थे जहां रीतिशास्त्र के भरमीआचार्यों का सम्पर्क बड़ी सुगमता से उपलब्ध हो जाता रहा। यही कारण रहा है कि इनके अधिकांशतः छंद शृंगार की वल्लरी में भौतिक शृंगार की अभिव्यंजना तक सीमित रह सके।

शृंगार बावनी की तरह शिवा बावनी भूषण द्वारा रचित बावन (52) छन्दों का काव्य है जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। रतन बावनी (लगभग 1581) केशवदास की सबसे पहली रचना रही है। इसी से मिलता जुलता शृंगार मंजरी को केशव दास ने लिखा था। श्री नागरी देव जी ने श्रृंगार रस का पद इस प्रकार लिखा है –

विहरत विपिन भरत रंग ढुरकी।

हरषि गुलाल उडाइ लाडिली,

सम्पति कुसमाकरकी।

कसुंभी सारी सोधें भीनी,

ऊपर बंदन भुरकी।

चोली नील ललित अञ्चल चल,

झलक उजागर उरकी।

मृदुल सुहास तरल दृग कुंडल,

मुख अलकावलि रुरकी।

श्रीनागरीदासि केलि सुख सनि रही,

मैंन ललक नहिं मुरकी।

 

4. मलौली के श्रीनारायण चतुर्वेदी

पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के सन्तकबीर नगर के मलौली गाँव में प्रसिद्ध साहित्यिक कुल में भी हुआ था जिसमें अभीतक ज्ञात सात उच्चकोटि के छंदकार अवतरित हुए हैं।इस पं.श्रीनारायणचतुर्वेदी का जन्म कार्तिक कृष्ण 15,संवत् 1938 विक्रमी को दीपावली के दिन हैसर बाजार धनघटा नगरपंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ था ।

श्रीनारायण चतुर्वेदी के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था।  जिनके छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। ये सभी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ के भाई थे। श्री नारायण बचपन में बड़े प्रतिभाशाली थे। अपने छः भाइयों में श्रीनारायण इतने कुशाग्र थे कि कोई भी भाई इनसे तर्क- वितर्क नहीं कर पाता था। संस्कृत,फारसी, आयुर्वेद और ज्योतिष पर इनका पूर्ण नियंत्रण था। वे महीनों सरयू नदी और गंगा नदी के तट पर कल्पवास किया करते थे।

 पदमाकर जी के गंगा लहरी की भांति श्री नारायण जी ने 109 छंदों की सरयू लहरी लिखा था जो दुर्भाग्य बस गायब हो गया। इससे पहले महाकवि सूरदास ने साहित्य लहरी नामक 118 पदों की एक लघु रचना लिखी है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। इसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन करते हुए उनसे अपने उद्धार के लिए अनुनय किया गया है। इसी प्रकार त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने प्रेम लहरी, जम्मू के जाने-माने साहित्यकार प्रियतम चंद्र शास्त्री की शृंगार लहरी रचना है। बद्री नारायण प्रेमधन की लालित्य लहरी आदि लहरी रचनाएँ रही हैं। मूलतः लहरियों में धारा प्रवाह या भाव प्रभाव रचनाओं की अभिव्यंजना मिलती है। इसी तरह

भारतेंदु हरिश्चंद्र’ ने भी “सरयूपार की यात्रा” नामक एक यात्रा वृतांत लिखा है है। जिसका रचनाकाल 1871 ईस्वी के आसपास माना जाता है।

रीतिकालीन शृंगार का प्रस्फुटन श्री नारायण चतुर्वेदी रीति शास्त्र के ज्ञाता थे। उन्होंने देव बिहारी और चिन्तामणि के छंदों को कंठस्थ कर लिया था। लोग घण्टों उनके पास बैठ कर श्रृंगार परक रचना का रसास्वादन किया करते थे। उन्हें भाषा ब्रज, छंद मनहरन और सवैया प्रिय था। उनका श्रृंगार रस का एक छंद (डा मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ कृत ‘बस्ती के छंदकार’ भाग 1, पृष्ठ 13 – 14 के अनुसार ) द्रष्टव्य है –

कंज अरुणाई दृग देखत लजाई खंग

समता न पायी चपलायी में दृगन की।

वानी सरसायी दीन धुनिको लजायी पिक,

समता न पायी वास किन्हीं लाजवन की।

जंघ चिकनाई रम्भा खम्भ हू न पायीनाभि,

भ्रमरी भुलाई मन नीके मुनिजन की।

बुद्धि गुरुवायी श्री नारायण की जाती फंसि

देखि गुरुवायी बाल उरज सूतन की।।

      एक अन्य छंद भी द्रष्टव्य है –

बाल छबीली तियान के बीच

सो बैठी प्रकाश करै अलगै।

चंद विकास सो हांसी हरौ

उपमा कुच कंच कलीन लगै।

दृग की सुधराई कटाछन में

श्रीनारायण खंज अली बनगै।

मृदु गोल कपोलन की सुषमा

त्रिवली भ्रमरी ते मनोज जगै।

श्रीनारायण कवि का यह छंद शृंगार की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। ये मलौली के कवि परम्परा के प्रथम चरण के अंतिम कवि थे।

5.शृंगार रस के कवि

पण्डित राम नारायण चतुर्वेदी

पंडित राम नारायण चतुर्वेदी का जन्म बैसाख कृष्ण 12, संवत् 1944 विक्रमी को उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के हैसर बाजार-धनघटा नगर पंचायत के ग्राम सभा मलौली में हुआ था।इनके पिता पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी जी थे। यह बस्ती मण्डल का एक उच्च कोटि का कवि कुल घराना रहा है। पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं।

पंडित राम नारायण जी का रंग परिषद में भी बड़ा आदर और सम्मान हुआ करता था। घनाक्षरी और सवैया छंदों की दीक्षा उन्हें रंगपाल जी से मिली थी। वे भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे। राम नारायण की शिक्षा घर पर ही हुई थी। इनके चार पुत्र बांके बिहारी, ब्रजबिहारी, वृन्दावन बिहारी और शारदा शरण थे। जिनमें ब्रज बिहारी ‘ब्रजेश’ और शारदा शरण ‘मौलिक’ अच्छे कवि रहे।

पंडित राम नारायण जी अंग्रेजी राज्य में असेसर (फौजदारी मामलों में जज / मजिस्ट्रेट को सलाह देने के लिए चुना गया व्यक्ति) के पद पर कार्य कर रहे थे। एक बार असेसर पद पर कार्य करते हुए उन्होंने ये छंद लिखा था जिस पर जज साहब बहुत खुश हुए थे –

दण्ड विना अपराधी बचें कोऊ,

दोष बड़ों न मनु स्मृति मानी।

दण्ड विना अपराध लहे कोऊ,

सो नृप को बड़ा दोष बखानी।

राम नारायण देत हैं राय,

असेसर हवै निर्भीक है बानी।

न्याय निधान सुजान सुने,

वह केस पुलिस की झूठी कहानी।।

ब्रज भाषा और शृंगार रस:-

 कवि राम नारायण जी ब्रज भाषा के शृंगार रस के सिद्धस्थ कवि थे। सुदृढ़ पारिवारिक पृष्ठभूमि और रंगपाल जी का साहश्चर्य से उनमें काव्य कला की प्रतिभा खूब निखरी है। उनका अभीष्ट विषय राधा- कृष्ण के अलौकिक प्रेम को ही अंगीकार किया है। शृंगार की अनुपम छटा उन्मुक्त वातावरण में इस छंद में देखा जा सकता है। एक छंद द्रष्टव्य है –

कौन तू नवेली अलबेली है अकेली बाल,

फिरौ न सहेली संग है मतंग चलिया।

फूले मुख कंज मंजुता में मुख नैन कंज,

मानो सरकंज द्दव विराजे कंज कलिया।

करकंज कुचकंज कंजही चरण अरु

वरन सुकन्ज मंजु भूली कुंज अलियां।

तेरे तनु कंज पुंज मंजुल परागन के,

गंध ते निकुजन की महक उठी गालियां।।

घनाक्षरी का नाद-सौष्ठव:-

    सुकवि रामनारायण की एक घनाक्षरी का नाद सौष्ठव इस छंद में देखा जा सकता है-

मंद मुस्काती मदमाती चली जाती कछु,

नूपुर बजाती पग झननि- झननि- झन ।

कर घट उर घट मुख ससीलट मंजु,

पटु का उडावै वायु सनन- सनन- सन।

आये श्याम बोले वाम बावरी तु बाबरी पै,

खोजत तुम्हें हैं हम बनन- बनन- बन।

पटग है झट गिरे घट-खट सीढ़िन पै,

शब्द भयो मंजु अति टनन-टनन- टन।।

वैद्यक शास्त्रज्ञ:-

   सुकवि राम नारायण जी कविता के साथ साथ वैद्यक शास्त्र के भी ज्ञाता थे। उनके द्वारा रचित आवले की रसायन पर एक छंद इस प्रकार देखा जा सकता है –

एक प्रस्त आमले की गुठली निकल लीजै,

गूदा को सुखाय ताहि चूरन बनाइए।

वार एक बीस लाइ आमला सरस पुनि,

माटी के पात्र ढालि पुट करवाइए।

अन्त में सुखाद फेरि चुरन बनाई तासु,

सम सित घृत मधु असम मिलाइये।

चहत जवानी जो पै बहुरि बुढ़ापा माँहि,

दूध अनुपात सो रसायन को खाइये।।

ज्योतिष के मर्मज्ञ:-

    सुकवि राम नारायण जी को कविता , वैद्यकशास्त्र के साथ साथ ज्योतिष पर भी पूरा कमांड था। उनके द्वारा रचित एक छंद नमूना स्वरूप देखा जा सकता है-

कर्क राशि चन्द्र गुरु लग्न में विराजमान,

रूप है अनूप काम कोटि को लजावती।

तुला के शनि सुख के समय बनवास दीन्हैं

रिपु राहु रावन से रिपुवो नसावाहि।

मकर के भौम नारि विरह कराये भूरि,

बुध शुक्र भाग्य धर्म भाग्य को बढ़ावहीं ।

मेष रवि राज योग रवि के समान तेज,

राम कवि राज जन्म पत्रिका प्रभावहीं।।

ब्रजभाषा की प्रधानता :-

    इस परम्परागत कवि से तत्कालीन रईसी परम्परा में काव्य प्रेमी रीतिकालीन शृंगार रस की कविता को सुन-सुन कर आनंद लिया करते थे।कवि रामनारायण भोजपुरी क्षेत्र में जन्म लेने के बावजूद भी ब्रजभाषा में ही कविता किया करते थे। उनका रूप- सौंदर्य और नख-सिख वर्णन परंपरागत हुआ करता था। उन्होंने पर्याप्त छंद लिख रखें थे पर वे उसे संजो नहीं सके। कविवर ब्रजेश जी के अनुसार पंडित रामनारायण जी चैत कृष्ण नवमी सम्बत 2011 विक्रमी को अपना पंचभौतिक शरीर को छोड़े थे ।

    बस्ती के छंदकार शोध ग्रन्थ के भाग 1 के पृष्ठ 122 से 126 पर स्मृतिशेष डॉक्टर मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ जी ने पंडित राम नारायण जी के जीवन वृत्त और कविता कौशल पर विस्तार से चर्चा किया है।

 

    6. ब्रज बिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’

 

    ब्रज बिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’ संवत् 1974 विक्रमी और मृत्यु संवत् 1947 विक्रमी को सन्त कबीर नगर के मलौली गांव में हुआ था। ब्रज बिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’ मलौली का चतुर्वेदी कविकुल परम्परा के कवि पंडित श्रीराम नारायण चतर्वेदी के पुत्र थे।उन्होंने अपने बारे में खुद लिखा है-

सम्बत सन् उन्नीस सौ

अरु चौहत्तर मान।

ज्येष्ठ त्रयोदस कृष्ण शनि

जन्म ब्रजेश सुजान।

चौबे वुल सुपुनीत भू

ग्राम मलौली खास।

रामनरायण सुकवि के

पूर्व किए अभिनाश।।

     ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले थे। ये रंगपाल जी के घर हरिहरपुर बराबर आया जाया करते थे। मैथिलीशरण गुप्त तुलसी बिहारी और देव,कलाधर, द्विजेश बद्री प्रसाद पाल, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, जगदम्बा प्रसाद हितैषी तथा रीवा के बृजेश कवि से प्रभावित रहें हैं। जमींदारी टूटने से परेशान होते हुए भी वे साहित्य के लिए समय निकल लेते थे। अंधे होते हुए भी वह लिखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। वे 40 वर्षों तक जिले के छंद परम्परा के विकास में जुड़े रहे।

रचनाएं :-

इन्होंने तीन रचनाएं लिखी थीं।

कवित्त मंजूषा :-

इसमें 1000 छंद होना कहा जाता है। दोहा, सवैया, मनहरन, कुण्डली, रोला तथा मधुरा आदि में रचनाएं लिखी गई हैं।

प्राकृतिक वर्णन, सरयू वर्णन , केवट प्रसंग, व्यंग्य रमोमा, लंका दहन, बबुआ अष्टक आदि प्रसंगों का मनोहारी निरूपण किया गया है। ब्रजेश सतसई दो भाग में लिखी गई है।

ब्रजेश सतसई भाग 1:-

सतसई के प्रथम भाग में श्रृंगार परक, भक्ति परक और नीति परक दोहों की रचना की गई है। श्रृंगार में वियोग परक दोहे मिलते हैं। पौराणिक प्रसंग के दोहे मन को आह्लादित करती हैं।

ब्रजेश सतसई भाग 2 में नीति , वैराग्य और गंगा जी पर भक्ति परक दोहे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

राम चरितावली :-

इसमें राम चरित मानस की तरह वृहद रूप राम कथा लिखने का प्रयास किया गया है। विविध छंदों में नैनी जेल में बन्द स्वतंत्रता सेनानियों को लक्ष्य करके पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के मुख से राम कथा कहलवाई गई है। कालिदास से प्रेरित रघुवंश के इच्छाकु से लेकर राम जी सम्पूर्ण चरित्र को उजागर किया गया है।भारत महिमा से ग्रन्थ का श्री गणेश किया गया है।

श्रृंगार और नीति के कवि:-

     ब्रजेश जी मूलतः श्रृंगार और नीति के कवि थे। ब्रज भाषा के पक्षधर थे। संस्कृत के ज्ञान के शब्दों में लालित्य अपने आप आता गया है। अलंकारों में उत्प्रेक्षा उपमा रूपक संदेह भ्रतिमान अनन्वय तदगुण श्लेष आदि का प्रयोग इनके दोहों में बड़ी उत्कृष्टता के साथ हुआ है। शब्दों की सफाई के साथ भावों का अभिव्यक्ति करण बड़ा ही प्रवाहमय है। शब्दों में विषयबोध के प्रति पर्याप्त शालीनता है।

शोधकर्ता स्मृति शेष डॉ. सरस ने पृष्ठ 170 पर ब्रजेश जी का मूल्यांकन इन शब्दों में किया है –

     “ब्रजेश जी का बस्ती मंडल के छंदकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान है।विद्वानों के बीच में ब्रजेश जी अपने पांडित्य के लिए सदैव सम्मादृत रहे हैं।— उनकी ब्रजेश मंजूषा और ब्रजेश सतसई हिन्दी की अनूठी निधि है। यह प्रकशित होते ही मंडल की छंद परम्परा को ये गौरव शाली कृतियां महत्व ही नहीं प्रदान करेगी अपितु इस चरण के साहित्यिक गौरव को बढ़ाने में सक्षम होगी।छंद परम्परा के विकास में ब्रजेश जी के कई पीढ़ी की कवियों ने जो गौरव दिया है उसके स्थाई स्तम्भ के रूप में ब्रजेश जी सदैव सम्मादृत रहेंगे।”

लेखक का परिचय

 

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर + 91 9412300183)

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