सागर. सनातन धर्म में आदिकाल से 16 संस्कार करने के बाद विद्यार्थियों को गुरुकुल में प्रवेश देने की परंपरा रही है. वर्तमान में इन परंपराओं पर अस्तित्व बचाने का संकट आ गया है. लेकिन कुछ जगहों पर यह सब आज भी इन संस्कारों का निर्वहन किया जा रहा हैं. बुंदेलखंड के सागर जिले में श्री गणेश संस्कृत महाविद्यालय में भी प्रवेश लेने वाले बटुकों का मुंडन उपनयन दीक्षा संस्कार किया गया. एक समय वह आया जब इन बच्चों को उनके माता-पिता से ही भिक्षा मांगनी पड़ी. ऐसे ही पलों को देखकर हर कोई भावुक हो गया और उनकी आंखों से आंसू झलक पड़े. किसी संन्यासी की तरह हाथों में धर्म ध्वजा थामे हुए यह बच्चे धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे. अपने अभिभावकों के सामने ही दान पात्र को फैला कर भिक्षा मांग कर संस्कार को निभा रहे थे.
बता दें कि गढ़ाकोटा श्री गणेश संस्कृत महाविद्यालय में नए सत्र में 100 बटुकों का एडमिशन हुआ है. जो संस्कृत की शिक्षा दीक्षा लेकर धर्म के प्रति निपुण होंगे. सागर के 101 बटुक ब्राह्मणों की शिक्षा दीक्षा उपनयन संस्कार किए गए हैं. इसके बाद अब इनको वेद पुराण का अध्ययन कराया जाएगा.
दरअसल, गढ़ाकोटा के पीपलघाट पर स्थित श्री गणेश संस्कृत विद्यालय हैं. मध्य प्रदेश के सीनियर विधायक गोपाल भार्गव पिछले कई सालों से पूरी तरह से निशुल्क संचालित कर रहे हैं. ताकि धर्म का प्रचार प्रसार हो. श्री गणेश संस्कृत विद्यालय में पढ़ने वाले बटुक ब्राह्मणों का दीक्षा समारोह जगदीश शाला मंदिर पटेरिया में आयोजित किया गया. कार्यक्रम में चारों ओर मंत्रों की गूंज करतल ध्वनि से स्वागत किया जा रहा था. आयोजन में बटुक के माता पिता और परिजन पूरे उत्साह से शामिल हुए.
कार्यक्रम में बटुक ब्राह्मणों का उपनयन संस्कार, धर्म की दीक्षा देकर उन्हें कर्मकांडी बनाया गया. बटुकों का ब्रह्म मुहूर्त में पंच गव्य स्नान कराकर शुद्धि के बाद 11 अलग अलग स्थानों की मिट्टी का सिर पर लेप कर संस्कार शुरू हुए. नवीन वस्त्र धारण करके सभी को हवन वेदी पर बिठाया और पंडितों ने विश्व कल्याण और शांति के लिए अनुष्ठान किया.
उपनयन संस्कार के दौरान जगदीश शाला मंदिर में सुबह से ही माहौल धर्म मय हो गया. पंडाल में आचार्यों ने गायत्री मंत्र को कान में फूंक कर गुरु मंत्र पढ़ें तो देखने वाले भावुक हो गए. धर्मसभा में सभी साधु संतों का का आशीर्वाद लेकर यह कार्यक्रम विधिवत संपन्न हुआ.
श्री गणेश संस्कृत विद्यालय का संचालन करने वाले और हिंदू धर्म के लिए सदैव आगे रहने वाले गोपाल भार्गव ने अपने 8 साल के नाती का भी मुंडन, उपनयन, दीक्षा संस्कार कराया. और नाती को भिक्षा देने के लिए उनकी दादी के साथ माता-पिता भी पहुंचे थे.