Friday, April 18, 2025
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Homeभारत गौरवयूँ शुरू हुआ था विक्रम महोत्सव ! विक्रम भारत का सोया हुआ...

यूँ शुरू हुआ था विक्रम महोत्सव ! विक्रम भारत का सोया हुआ पराक्रम था !

भारत ग़ुलाम था , और हमें इतिहास में पढ़ाया जा रहा था की हम सदियों से ग़ुलाम रहें हैं कभी शक और हुन् के कभी मुग़ल और कभी अंग्रजों के हम सदियों से लूटे पिटे हारे थके जूँवारी हैं पाँच सौ साल हम पर मुग़लो ने शासन किया और दो सौ साल से अंग्रेज़ हम पर शासन करते आ रहें थे ! यह बात हैं १९४० के आसपास की उज्जयिनी के क्रांतिकारी युवा सूर्यनारायण व्यास ने , जिनका प्रचलित संवत् भी धीरे धीरे लोग भूलते जा रहें थे इतिहास से ऐसे पराक्रमी चरित्र “ विक्रम” के नाम पर उज्जयिनी से एक मासिक पत्रिका “ विक्रम “ का प्रकाशन आरम्भ किया चूँकि उनका अपना प्रिंटिंग प्रेस था जहाँ से वे अपने पूज्य पिता महा महोपाध्याय पंडित नारायण व्यास जी के नाम पर “ नारायण विजय पंचांग “ अपने छोटे भाई के साथ प्रकाशित करते ही थे !
इधर  विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने जा रहें थे और विक्रमादित्य के नाम पर राष्ट्र में कोई हलचल नहीं थी उन्होंने विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने पर “ विक्रम द्वि सहस्त्राब्दी महोत्सव “ की योजना बनायी और प्रथ्वी राज कपूर को ले कर सारे राष्ट्र में जागृति फैलाने “ विक्रमादित्य “ फ़िल्म का निर्माण शुरू कर दिया सारे देश में उनकी इस योजना का सम्यक् स्वागत हुआ उन्हें सबसे पहले कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी से सहयोग मिला , महाराजा देवास ने योजना सुन कर कहा सारे सूत्र उनके हाथ में रहें तो वे सहयोग देंगे तब तक वीर साँवरकर ने भी अपने पत्र में इस योजना की प्रशंसा कर दी चूँकि पंडित सूर्यनारायण व्यास आज़ादी के पहले ११४ स्टेट के राज्य ज्योतिषी भी थे उनकी इस योजना का सारे देश में सम्यक् स्वागत हुआ और महाराजा ग्वालियर ने उन्हें ग्वालियर बुला भेजा चार दिन घंटों घंटों विचार विमर्श हुआ और अंत में व्यास जी के सुझाव पर उज्जयिनी से ले कर मुंबई तक विक्रम महोत्सव मनाना स्वीकार हुआ ।
व्यास जी विक्रम के नाम पर एक विश्विद्यालय , शहर में एक भी भव्य सभागार नहीं था पहले भी प्रथ्वी राज कपूर आये थे तो महाराज वाडॉ रीगल टाकीज कैलाश टा कीज में पैसा पठान दीवार नाटक खेल समारोह के लिए चन्दा एकत्र किया गया था तो विक्रम के नाम पर एक भव्य सभागार “ विक्रम कीर्ति मंदिर “ बनाने का विचार किया , भविष्यदृष्टा व्यास जी जानते थे दस साल के अंदर हम स्वतंत्र तो हो जायेंगे पर स्वतृंतता उपरांत भी मानसिक ग़ुलामी और सांस्कृतिक दासता से मुक्त नहीं हो पायेंगे , अत: १९२८ से ही उन्होंने उज्जयिनी में अखिल भारतीय कालिदास समारोह मनाना शुरू कर दिया था , भारतीय रंगमंच की इस सांस्कृतिक आधारशिला इस समारोह में भारत और संसार के प्राय: सभी महान लेखक कलाकार राजनेता बुद्धिजीवी चित्रकार संगीतकार गायक अब तक हिस्सा ले चुके हैं आजादी के बाद तक प्रथम राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से लेकर प्राय सभी बड़े राजनेता इस समारोह में आये हैं भारत से पहले सोवियत रूस में पंडित सूर्यनारायण व्यास के प्रयास से डाक टिकट जारी हुआ ।
भारत में भी बाद में उन्हीं के प्रयास से कालिदास पर डाक टिकट जारी हुआ कवि कालिदास नामक फ़ीचर फ़िल्म उन्ही की प्रेरणा से बनी और भारत भूषण निरुपा रॉय को ले कर बनी इस फ़िल्म को उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद जी राष्ट्र पति से टेक्स फ्री करवा कर सारे देश में एक साथ प्रसारित प्रदर्शित की यह फ़िल्म अब भी यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं उनके जीवन की सारी संचित निधि के दान द्वारा आज उज्जयिनी में स्थापित कालिदास अकादेमी उनके सपनों का साकार ज्योतिर्बिंब हैं आज भी प्रति वर्ष मनाये जाने वाला अखिल भारतीय कालिदास समारोह उनका जीवंत समारक हैं ! प्रखर पत्रकार क्रांतिकारी पंडित व्यास ने वर्ष १९४२ में उज्जैन से “ विक्रम”मासिक आरम्भ किया और उसके माध्यम से सारे राष्ट्र के सोये पराक्रम को जगाने का उपक्रम किया विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने पर ११४ राजा महाराजा इक्ट्ठा कर विक्रम महोत्सव मनाना आरंभ किया ।
आज उज्जयिनी में स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर उनके इसी महान अवदान की कीर्ति गाथा हैं अंग्रेज़ इतिहासकार इस बात से परेशान थे की अगर विक्रम एक ऐतिहासिक चरित्र की तरह स्थापित हो जाता हैं तो सिकन्दर महान अलेक्जेंड्रर ग्रेट और जूलियस सीजर के किस्से किस से कहेंगे कौन मानेगा , तब उनके इतिहासकारों ने “ विक्रमादित्य को एक काल्पनिक चरित्र कह कर नकार दिया और एक मिथक और चलाया की विक्रमादित्य एक उपाधि थी जिसे अनेक राजाओं ने धारण किया था ,इन सबका उत्तर देने के लिए इसी समारोह में हिंदी मराठी अग्रेंजी में पंडित सूर्यनारायण व्यास के संपादन में हिंदी मराठी अग्रेंजी में तीन खंड में विक्रम स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन किया गया।  दो हज़ार पृष्ठ के इस महान ग्रंथ में भारत ही नहीं संसार के लगभग सभी महान विद्वान से उन्होंने उज्जयिनी विक्रम और कालिदास पर शोध पूर्ण लेख लिखवाये प्रामाणिक लेख लिखवाए वर्ष दो हज़ार दो में प्रधान मंत्री भवन में पंडित सूर्यनारायण व्यास पर डाकटिकट जारी करते समय अटल विहारी वाजपेयी ने भी कहा था – यह इतिहास का महान तम कार्य था , मैं भी समझता था जो हिंदी में हैं वही मराठी वही अग्रेंजी में हैं लेकिन अद्ध्यन करने के बाद मालूम हुआ यह तीन पृथक पृथक भाषा में लिखे स्वतंत्र ग्रंथ हैं विक्रमादित्य में , अब अंग्रेजों को इस आयोजन में क्रांति की बू भी दिखी क्योंकि ४२ की क्रांति भी आरंभ हो गई थी और इसी समारोह के आयोजक पंडित सूर्यनारायण व्यास अंग्रेजों के ख़िलाफ़ ४२ मीटर बैंड पर गुप्त रेडियो स्टेशन भी अंग्रेजों के ख़िलाफ़ चलाते थे।
इसी दरम्यान मिया जिन्ना को इस आयोजन में हिंदू राजाओं का इकट्ठा होना नहीं पसंद आया उन्होंने लॉर्ड वेवल को भड़काया की इस आयोजन को बंद करवाया जाय , महाराज सिंधिया ने पंडित व्यास को आयोजन धीमा करने को कहा विक्रम स्मृति स्तंभ का काम रुक गया , भारती भवन उज्जयिनी से हरसिध्दि मार्ग इसी आयोजन से मनाया गया था उज्जयिनी के सभी मंदिरों में इस भव्य आयोजन के अवसर पर पुननिर्माण जीर्णोद्धार कार्य आरंभ हो गये थे जिस पर संस्कृत में सूर्यनारायण व्यास ने यह दो पंक्ति रच कर अंकित करवा दी थी विक्रम की प्रमाणिकता ऐतिहासिकता पर पंडित सूर्यनारायण व्यास निरंतर लिख कर अंग्रेज़ इतिहासकारों को मुंहतोड़ उत्तर दे ही रहे थे , विक्रम कीर्ति मंदिर स्थापित कर उन्होंने महाकाल मंदिर में उज्जयिनी की पहली खुदाई से प्राप्त पुरातत्व प्रमाण रखवाये थे ।
वे अपने ही काल में ख़ुद के द्वारा स्थापित सिंधिया शोध प्रतिष्ठान विगत वर्षों में महाकाल में रखवायी सारी प्रतिमाओं का संग्रहालय बना दिया , बाद के काल में उनके सुयोग्य शिष्य डॉ विष्णु श्री धर वाकनकर ने विक्रम के काल की सोने की मुद्रा खोज कर उनकी शोध को प्रमाणिकता ही दी अब उनका लक्ष्य विक्रम को जन जन तक पहुचाना था तो उन्होंने प्रथ्वी राज कपूर को प्रेम अदीब रत्न माला बाबूराव पेंढ़ारकर को ले कर “ विक्रमादित्य “ विजय भट्ट के निर्देशन में बनायी इस फ़िल्म और कवि कालिदास फ़िल्म दोनों फ़िल्म ने रजत जयंती मनायी आज की नई पीढ़ी तो संभवत: कल्पना भी नहीं कर सकती की कैसे सारी उज्जयिनी नगरी दुल्हन की तरह सज धज गई थी अपने निज विक्रम के स्वागत के लिये सारा नगर रंग बिरंगी पताकाओ से सज गया जिस पर पराक्रमी विक्रम का चित्र था ,वही चित्र जो बाद के काल में विक्रम का मुख पृष्ठ और संपादकीय पृष्ठ का चित्र बनता सजता सँवरता रहा ये और विक्रम का जो चित्र विक्रमादित्य फ़िल्म के कवर से ले कर आज प्रचलन में हैं वे सब महान चित्रकार – कनुभाई देसाई और रविशंकर रावल ने व्यासजी से गहन विचार विमर्श कर बनाये थे ।
आज भी मूल चित्र मेरे पास सुरक्षित हैं , नवरत्न के जो चित्र आज प्रचलन में हैं वे भी रविशंकर रावल ने बनाये थे इधर विगत ७५ साल से उसकी प्रति कृति प्रति कृति बजार में इतनी आ गई की लोग नक़ल को ही असल समझ बैठे , सारे देश में घूम घूम कर महान विद्वान लोगो से विक्रम कालिदास उज्जयिनी पर शोध लेख लिखवाये गये जिनमे महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन डॉ भगवत शरण उपध्याय वि वा मीराशी वासुदेव शरण अग्रवाल डी सी मजूमदार जैसे असंख्य महान नाम थे ।
मैथिली शरण गुप्त ने अपने हस्त लेख में – दो हज़ार संवत्सर बीते हैं / निज विक्रम बिना हम मरे मरे जीते हैं / नित्य नये शक और हूँन हमारे जीवन रस पीते हैं , होकर भी हुए क्या हम उनके मन चीते हैं ? / भरे हुए हैं हृदय हमारें / हाथ हमारे रिते हैं , जो विक्रम स्मृति ग्रंथ में व्यास जी ने सबसे आगे प्रकाशित की यूँ व्यास जी के अनुरोध पर इस से पूर्व कवि वर रवींद्रनाथ टेगोर उज्जयिनी कविता लिख चुके थे और उज्जयिनी भारती भवन रहते हुए नागार्जुन – कालिदास सच सच बतलाना , अज रोया था या तुम रोये थे लिख चुके थे।
 विक्रम स्मृति ग्रंथ कैसे तैयार हुआ उसके बारे में डॉ. शिव मंगल सिंह सुमन एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाते थे उन दिनों वे ग्वालियर में क्वींस विक्टोरिया कालेज में थे और महापंडित राहुल जी आये हुए थे चालीस बरस के सूर्यनारायण व्यास विक्रमादित्य फ़िल्म के सेट से दिल्ली आये और दिल्ली से सड़क मार्ग से ग्वालियर आ कर राहुल जी को पकड़ा -विक्रम पर आपका लेख लिये बग़ैर नहीं जाऊँगा ! डॉ सुमन बड़े गर्व से और चाव से बताते थे -राहुल जी हमारी हॉस्टल के बरामदे में ईक गमझा मुँह पर ओढ़ कर बैठ गये – मैं बोलता हूँ सुमन लिखेगा और आज आप विक्रम पर मेरा लेख ले कर ही जाएँगे व्यास जी ! डॉ सुमन बताते थे वे दो घंटे आँख पर गमछा डाले बोलते रहें मैं लिखता रहा और यूँ – त्रिविक्रम ! लेख तैयार हुआ , सुमन जी बताते थे कैसे व्यास जी सारा खाना पीना छोड़ कर दीवाने की तरह विक्रम महोत्सव और कालिदास समारोह के लिये सारे देश में दौड़ते फिरते थेछ
 विक्रमादित्य फ़िल्म की तो और अजब ग़ज़ब अनूठी कथा हैं – यह जो काल्पनिक गल्प उड़ा दी गई हैं की पृथ्वीराज कपूर मुग़ल ए आज़म के समय बादशाह अकबर के भेस में प्रजा का हाल जान ने सेट से बाहर निकल जाते वास्तव में यह विक्रमादित्य की बात हैं वे उज्जयिनी में विक्रमादित्य के भेस में प्रजा का हाल जानने निकल जाते थे देर रात अभिनय को उन्होंने इतना जीवंत कर दिया था उनका और फ़िल्म का क़िस्सा आगे कभी लिखेंगे लेकिन ख़ुद बादशाह अकबर ने सचमुच के अकबर ने सम्राट विक्रमादित्य की अनेक अच्छी बात उठायी और अनुसरण किया था । मसलन, विक्रमादित्य ने “ विक्रम संवत् “ प्रवर्तन किया था ( जो संवत् २००० आते आते लोग भूल गए थे जिसे इस समारोह से पंडित व्यास ने सारे देश में पुनर्जीवित किया) उसी की तर्ज पर अकबर बादशाह ने “ दिन ए इलाही “ संवत् चलाया यह और बात की यह चला नहीं। विक्रम संवत् आज तक चल रहा है।
 विक्रमादित्य के नवरत्न – कालिदास वराहमिहिर शंकु वैताल भट्ट क्षपणक की तर्ज पर बादशाह अकबर ने भी अपने दरबार में -तानसेन बीरबल टोडर मल नवरत्न रखें यह पूरा विक्रमादित्य फ़िल्म में काम करने के बदले प्रथ्वी राज कपूर ने व्यास जी की मित्रता वश कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था , व्यास जी उनका यह कर्ज उतारा जब प्रथम राष्ट्रपति ने पंडित सूर्य नारायण व्यास को “ पद्मभूषण “ साहित्य शिक्षा संस्कृति में योगदान के लिये प्रदान किया तो वे चाहते थे व्यास जी राज्य सभा में भी आये वाहन बालकृष्ण शर्मा नवीन मैथिली शरण गुप्त पहले ही मौजूद थे , व्यास जी ने इस अनुरोध को यह कह कर बाबू से प्रथ्वी राज कपूर के लिए मौड़ दिया की बाबू ! कला जगत से अब तक आपने किसी को राज्य सभा में सम्मान दिया नहीं हैं और इस तरह पृथ्वीराज कपूर राज्य सभा में विराजित हुए।
इधर कुछ अरसे से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव ने इस विक्रम महोत्सव को पुनर्जीवित कर दिया हैं ,विक्रम स्मृति ग्रंथ को भी पुन: प्रकाशित किया हैं उनके साथ उनके सलाहकार श्री राम तिवारी भारती भवन से बरसों से जुड़े रहें हैं बल्कि पंडित सूर्यनारायण व्यास के देहावसान के केवल आधे घंटे पूर्व उनका अंतिम साक्षात्कार भी दिनमान के लिए उन्होंने ही लिया था।
मुख्यमंत्री मोहन जी मेरे परम प्रिय अनुज वत हैं जब मैं आल इंडिया रेडियो का अतिरिक्त महानिदेशक था वे इस आयोजन की रूप रेखा ले कर मुझसे मिलने दिल्ली आये थे उनकी आँखों में उज्जयिनी के प्रति जो अनुराग मैंने देखा था निसंकोच कह सकता हूँ पंडित सूर्यनारायण व्यास उन्हें पुत्र व त स्नेह ही देते और देते क्यों नहीं नई पीढ़ी को उसके सोये हुए पराक्रम को विक्रम का नाम ही पर्याप्त हैं ।
हम भूल न जाये विक्रम संवत् दो हज़ार का वह भव्य विक्रम महोत्सव विक्रम द्वि सहस्त्राब्दी समारोह इसलिए उसे बार बार याद करना जरूरी हैं इस पहले आयोजन से जुड़े अनेक रोचक तथ्य बेहद दिलचस्प हैं मसलन हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री को “ मुहूर्त “ शब्द भी इसी महान आयोजन से पहली बार मिला , आज फ़िल्म इंडस्ट्री की कोई भी फ़िल्म बग़ैर मुहूर्त के शुरू नहीं होती , वस्तुतः मुहूर्त में कोई विश्वास करता नहीं था तब के आसिफ़ या महबूब सा या कमाल अमरोही सभी मुस्लिम थे , जब पंडित सूर्यनारायण व्यास ने विजय भट्ट को “ विक्रमादित्य “ फ़िल्म के निर्माण का काम सौंपा पृथ्वीराज राज कपूर को मुख्य भूमिका नायक विक्रम के अभिनय के लिए मना लिया तो चूँकि व्यास जी अनेक राजा महाराजाओ के गुरु भी थे उन सबको भी विक्रम महोत्सव में मुंबई बुलाया और उज्जयिनी से पंडित ले कर के मुंबई में “ अमृत मुहूर्त” में शुभ मुहूर्त में क्लेप दियाछ
 उस समय तो मुंबई इंडस्ट्री में इस बात की मजाक भी बनायी गई , और बाद में जब “ विक्रमादित्य “ ने स्वर्ण जयंती मना ली तो प्राय: सभी फ़िल्म निर्माता निर्देशक व्यास जी से “ मुहूर्त “ निकलवाने उज्जैन तक आने लगे और यूँ परम्परागत शुरू हुआ शुभ कार्य का मुहूर्त फ़िल्म इंडस्ट्री की भी परम्परा बन गया ! इस भव्य आयोजन से जुड़े कुछ दर्दनाक मर्मनाक पहलू भी हैं मसलन लॉर्ड वेवल जिन्ना के विरोध के कारण राजा महाराजों ने आयोजन से हाथ खेंच लिए जिन्ना ने साँवरकर के आयोजन की प्रशंसा से चिढ़ कर इसे हिंदू आयोजन बता कर विरोध किया जबकि विक्रमादित्य भारत के सोए पराक्रम को जगाने का नाम था , लॉर्ड वेवल ने इसे अंग्रेज़ विरोधी मानकर महाराजा सिंधिया से विरोध जताया तब घनश्याम दास बिरला द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय के लिए भेजे दस लाख रुपये जो उज्जयिनी के आयोजन के लिए ईयर मार्क थे उस से ग्वालियर में मेडिकल कालेज बना लिया गया इतना ही नहीं ग्वालियर से ज़्यादा पैसा मालवा का था ।
सर सेठ हुकुमचंद द्वारा व्यास जी के अनुरोध पर फिर एक बड़ी रकम दी गई जिस से विक्रम विश्वविद्यालय बना पर इस अचानक आए विरोध और अवरोध से पूर्व विक्रम विश्व विद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर विक्रम स्मृति ग्रंथ का काम तो हो गया था  मगर विक्रम स्मृति स्तम्भ का काम रह गया जो आज तक बना नहीं।  उम्मीद ही नहीं विश्वास हैं प्रिय यशस्वी मुख्यमंत्री मोहन यादव जैसे उज्जयिनी का मेडिकल कालेज ले आए “ विक्रम समृति स्तंभ “ भी एक दिन बना ही देंगे !
कवि कालिदास फ़िल्म तो आज भी यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं जिसमे पंडित सूर्यनारायण व्यास के महान योगदान का भारत भूषण के स्वर में उल्लेख किया गया हैं बाद के काल में पद्म भूषण पंडित व्यास के प्रयास से डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस फ़िल्म को सारे देश में टेक्स फ्री कर दिया था और फ़िल्म ने री रिलीज़ ( जो फ़ेशन आज फिर आई हैं ) स्वर्ण जयंती मनायी दूरदर्शन पर भी मैंने प्राय: महाकाल सवारी रक्षा बंधन पर प्रति वर्ष दिखायी !
याद रखें अब यह कहा जाता हैं – मेरी काम भाग मिल्ख्या भाग या हालीवुड में बायोपिक शुरू हुआ ग़लत हैं – कवि कालिदास और विक्रमादित्य पहले बायोपिक ही थे , विक्रमादित्य की कहानी दर्दनाक हैं , १९८० में मैंने स्वयं विजय भट्ट के साथ बैठ इसे देखा था , आज उनके परिजन महेश भट्ट आलिया भट्ट तक को इस फ़िल्म के बारे में कुछ पता नहीं। शशि कपूर के पृथ्वी थियेटर में मैंने स्वयं इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट और दुर्लभ चित्र उनके पास देखे थे आज कुछ भी उपलब्ध नहीं राष्ट्रीय संग्रहालय से भी फ़िल्म के प्रिंट ग़ायब हैं कुछ अंदर के स्रोत बताते हैं की – के आसिफ़ की मुग़ल ए आज़म को पहली ऐतिहासिक फ़िल्म सिद्ध करने के लिए विक्रमादित्य के प्रिंट जला दिए गए अब न कपूर परिवार के पास ही फ़िल्म हैं न भट्ट परिवार के पास न पुणे फ़िल्म इंस्टीट्यूट के पास।
 कुछ लोग मानते हैं आग में जल गई फ़िल्म , मगर अभी उम्मीद की एक किरण दिखी हैं कान फ़िल्म फेस्टिवल में कुछ २५-३० बरस पहले विजय भट्ट की – राम राज्य भरत मिलाप गूँज उठी शहनाई बैजू बावरा के साथ विक्रमादित्य दिखाई गई थी। वहाँ वे प्रिंट सुरक्षित रखते हैं इस उम्मीद से मैंने वहाँ के डाइरेक्टर सी ड्यूपिन से ईमेल पर संपर्क किया हैं यह कोई फ़िल्म नहीं उस महान समारोह के इतिहास का गौरवशाली पृष्ठ है।
नई पीढ़ी संवत् २००० में मनाए इस भव्य तम विक्रम महोत्सव का इतिहास जाने और जाने की आज उसकी स्मृति में खड़े विक्रम विश्विद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर और संसार का महान ग्रंथ उपलब्ध हैं – विक्रम स्मृति ग्रंथ
(लेखक दूरदर्शन में अतिरिक्त महानिदेशक रह चुके हैं और ऐतिहासिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक विषयो पर कई पुस्तकें लिख चुके हैं)

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