महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार में वसंत ऋतु का सुंदर चित्रण किया है—
“कुसुमिततरवः शाखीभूताः प्रिये पक्षिणः
प्रहसितमिव प्रश्यामाभ्रं जगज्जीवति।”
अर्थ: पेड़-पौधे फूलों से लद गए हैं, पक्षी जोड़े में मधुर स्वर में गा रहे हैं, और गगन में हल्के बादल मानो मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। संपूर्ण जगत में नवजीवन आ गया है।
महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार और
“आसन्नः पञ्चमः स ऋतुः शिशिरेणान्तरेण यः।
कन्दलीनां सहस्राणि यस्यां विकसन्ति हि॥”
अर्थ: शीत ऋतु के बाद आने वाला पाँचवाँ ऋतु वसंत है, जिसमें हजारों फूल खिलते हैं और धरती सजीव हो उठती है।
संस्कृत का प्रसिद्ध श्लोक
“सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यं
मलिनमपि हिमानी शीलमाधाति चन्द्रः।
इति सुभगगुणानां संश्रयात् संश्रयाणां
कुपुलजलनिधीनामौचिती नास्ति काचित्॥”
अर्थ: कमल पर शैवाल लगने से भी वह सुंदर ही दिखता है। चंद्रमा धब्बों से भरा होते हुए भी शीतलता प्रदान करता है। इसी प्रकार, गुणवान व्यक्ति जहां भी रहता है, अपनी आभा बिखेरता है।
वने प्रियम अपश्यन्ति सिरम अन्विष्या कोकिला |
विहार’अर्था प्रविष्टा नु रक्त’-अशोकं सीताम इव ||
बहुत समय तक वन में खोज करने के बाद भी अपने प्रियतम को न पाकर तथा उनके वियोग से व्यथित होकर कोयल बिना कुछ कहे ही प्रज्वलित लाल अशोक वृक्ष में प्रवेश कर गई, मानो वह उसकी चिता हो।जयशंकर प्रसाद जी ने वसंत का सुंदर वर्णन किया है—
“नव पल्लव, नव कुसुम, नव विटप, नव वल्लरी लताएँ।
नव विहग, नव गान, नव यमुना-जल, नव लहरें लहराएँ।।”
महादेवी वर्मा ने वसंत का कोमल चित्रण किया है—
“फूली सरसों देखी मैंने,
देखा मधुऋतु मुस्काई।”
वसंत ऋतु को प्रेम, सौंदर्य और नवजीवन की ऋतु माना गया है। भारतीय कवियों और संस्कृत साहित्य में इसका अद्भुत वर्णन मिलता है।
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने वसंत ऋतु का सुंदर चित्रण किया है। उनकी कविता में प्रकृति की छटा और नवजीवन का उल्लास झलकता ह। र्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने वसंत को नवजीवन और उल्लास का प्रतीक माना, जबकि पद्माकर ने इसे प्राकृतिक सौंदर्य और श्रृंगार भाव के साथ जोड़ा। दोनों कवियों की वसंत पर रचनाएँ अद्भुत हैं और भारतीय काव्य-परंपरा में विशेष स्थान रखती हैं।
नव पल्लव, नव कुसुम, नव विहग, नव गान लिए।
डाल-डाल, पात-पात में बासंती प्राण लिए।”
रीतिकालीन कवि पद्माकर ने वसंत का मनोहारी चित्रण अपनी ब्रजभाषा कविता में किया है—
“रंग रस गंध सने सूझत चहुँ ओर बसंत सुआने।
प्यारी स्यामल गात विराजत पीत पटोली सुभाने।
भृंग मण्डली कलियों पर मंडराय रही सिर नाने।
पद्माकर पेखत यह दृश्य रसाल रसाल जुहाने।।”
चारों ओर रंग, सुगंध और मधुर रस से भरा वसंत दिख रहा है। प्रिय सखी का श्यामल शरीर पीले वस्त्रों में और भी सुंदर लग रहा है। भौंरों की मंडली फूलों की कलियों पर मंडरा रही है, और आम्र वृक्षों पर बौर की मादक सुगंध छाई हुई है।
कूलन में केलिन कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलिन-कलीन किलकंत है।
कहै पद्माकर परागन में पौन हू में,
पानन में पिकन पलासन पगंत है॥
द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में,
देखो दीप-दीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में,
बनन में बागन में बगरो बसंत है॥
यमुना के तटों पर पशु-पक्षियों एवं अन्य प्राणियों की एकांत-क्रीड़ाओं में, कछारों में, वन-उपवन में, कुजों में, फूलों की क्यारियों में और सुंदर कलियों में बसंत किलकारी भर रहा है। कवि पद्माकर कहते हैं कि फूलों के पराग में, पवन में, पत्तों में, कोयल के कंठ में और दिशाओं में, सारे संसार में, देश-देश में, द्वीप-द्वीप में बसंत ऋतु की मनोरम प्राकृतिक छटा आलोकित हो रही है। ब्रज की गलियों में, सारे ब्रज में, नवयुवतियों या नववधुओं में, लताओं में, वनों और बागों में सर्वत्र ऋतुराज बसंत फैला हुआ है। इस तरह बसंत के आगमन से संपूर्ण प्रकृति तथा जड़-चेतन जगत अत्यधिक शोभायमान हो रहा है।
“फागुन लाग्यौ सकल स्रजन में,
फूलीं फुलवारी बन बागन में।
कोयल कूजन करै तरनि पर,
भृंग भंवर रस मत्त बिहगन में।।”
विद्यापति (मैथिली)
विद्यापति की वसंत पर लिखी गई रचनाएँ श्रृंगार रस से ओतप्रोत हैं—
“फुलल कदंब तरू, बिहसि बकुल नव पल्लव संगे।
रस बस मधुप गुञ्जार करय, नव आम्र तरंग।।”
अर्थ: कदंब के पेड़ फूलों से भर गए हैं, बकुल वृक्ष नए पत्तों के साथ हंस रहे हैं। आम के वृक्ष बौरों से लदे हुए हैं और भौंरे रस में मग्न होकर गूंज रहे हैं।
अमीर खुसरो (हिंदवी)
अमीर खुसरो ने भी वसंत का सुंदर वर्णन किया—
“आज रंग है री, मोहे मेहंदी लगाओ।
बंसरी बाजे, रंग रंगीलो फाग आई।”
सूरदास ने वसंत का कृष्ण-लीला से संबंध जोड़ते हुए लिखा—
“बसंत भयो, भुवन भरयो, हरषित ब्रज भानु।
तरुन तरंग झरें पट पीत, खंजन खेले कान्ह।”
वसंत आ गया है, जिससे पूरा ब्रज आनंदित हो गया है। वृक्षों पर पीले पत्तों की झरती लहरें ऐसी लग रही हैं मानो कृष्ण स्वयं नाच रहे हों।
वसंत पर उर्दू शायरी
वसंत ऋतु को उर्दू शायरी में मोहब्बत, ख़ुशहाली और ताज़गी का मौसम माना जाता है। कई शायरों ने इस मौसम को अपनी ग़ज़लों और नज़्मों में जगह दी है। उर्दू शायरी में वसंत का ज़िक्र सिर्फ़ फूलों और बहार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें इश्क़, जुदाई, इंतज़ार और कभी-कभी उदासी का भी एहसास मिलता है। फैज़ और ग़ालिब ने इसे प्रेम से जोड़ा, तो मीर और जिगर ने इसे इंसानी जज़्बातों का आईना बना दिया। वसंत का यह हसीन मौसम, उर्दू शायरी की नज़रों से और भी ख़ूबसूरत लगने लगता है
. मीर तकी मीर
“आई बहार और गए रंग हज़ार
लेकिन मिरी उदासी की सूरत नहीं गई।”
ग़ालिब
“आती है बहार, फूल खिलते हैं
हमसे भी कोई पूछे, हम क्या करें?”
जिगर मुरादाबादी
“फिर वस्ल की रात आई, फिर चाँद खिला, फिर फूल खिले
फिर जाम उठा, फिर रक्स हुआ, फिर महफ़िल की रौनक़ आई।”
अहमद फ़राज़
“फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
तू क्यों उदास है, ऐ दिल-ए-बेवफ़ा?”
नज़ीर अकबराबादी (1735-1830) अपनी आमफ़हम और ज़िंदादिल शायरी के लिए मशहूर हैं। उन्होंने आम लोगों की ज़िंदगी, त्योहारों और ऋतुओं का बेहद ख़ूबसूरत वर्णन किया है। वसंत पर उनकी कुछ मशहूर शायरी यहाँ दी जा रही है।
नज़ीर अकबराबादी ने अपनी शायरी में वसंत को केवल ऋतु नहीं, बल्कि जीवन के उल्लास और खुशहाली का प्रतीक बनाया है। उनकी रचनाओं में वसंत का रंग, मस्ती, होली की उमंग और इंसानी ज़िंदगी की सादगी झलकती है।
उनकी यह शैली उन्हें आम आदमी का शायर बना देती है!
बसंत का ख़ूबसूरत बयान
“फूलों का जब जब दिल खिलता, तब तब ये बसंत आ जाता है,
रंग बिरंगे गुलशन में, इक नया रंग छा जाता है।
कोयल कूके डाली-डाली, बाग में मोर नाच दिखाए,
रुत प्यार भरी जब आती है, तब रंग नया छा जाता है।”
बसंत और होली का संगम
“फागुन के महीने में जब रंग बरसाए जाते हैं,
हर इक गली में हँसी के मेले, गुलाल उड़ाए जाते हैं।
यारों के संग रंगों की छटा, बसंती मौसम में छा जाती,
हर एक कली मुस्काती है, जब मस्ती में होली आती।”
. वसंत का जश्न और इंसानी ज़िंदगी
“कहीं बाग में झूले पड़ते, कहीं पे मेल लगाते हैं,
कहीं पे धूम है होली की, कहीं पे गीत सुनाते हैं।
ऐ नज़ीर इस रंगीन बहार में, हर शख़्स मस्त हो जाता,
जो बीत गई सो बीत गई, अब हँस लो और मुस्काओ।”