Wednesday, January 22, 2025
spot_img
Homeअध्यात्म गंगावाल्मिकी रामायण , रामचरित मानस और लोक मानसे के राम

वाल्मिकी रामायण , रामचरित मानस और लोक मानसे के राम

(मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी के अयोध्या के राम मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित)

रामचन्द्र जी ईश्वर के भक्त, वेदों के विद्वान्, सभी में प्रिय, सत्यवादी, कर्मशील, आदर्श, आज्ञाकारी, वचन के दृढ़ आदि सभी शस्त्र विद्याओं में निपुण व्यक्ति थें। उनके राज्य में कोई भी व्यक्ति दुःखी नहीं, कोई नारी विधवा नहीं, कहीं अकाल नहीं, कहीं चोरी, द्यूत आदि नहीं होता था। कुछ लोग रामचन्द्र जी के बारे में पूर्ण रूप से उनका व्यक्तित्त्व न जानकर और विशेष दूसरे सम्प्रदाय के लोग उनपर आक्षेप करते हैं जिसमें मुख्य यह प्रचलन में है कि रामचन्द्र जी मांस का सेवन करते थे चूंकि वाल्मीकि रामायण पढ़ने से किसी प्रकार का सन्देह नहीं रहता कि रामचन्द्र जी का व्यवहार कैसा था, वह किस जाति के थे, वह मांस का सेवन करते थे वा नहीं आदि? समस्त वेद शास्त्र के मानने वाले एक मत होकर कहते हैं कि वह सूर्यवंशी कुल में प्रसिद्ध राजर्षि थे। उनका समस्त जीवन हमें उपदेश दे रहा है कि वह आर्य जाति के शिरोमणि और वैदिक धर्म के मानने वाले वेदों के प्रकाण्ड विद्वान् और पुरुषार्थयुक्त व्यक्ति थें। उनका धर्म हमें रामायण के इस एक ही श्लोक से पूरा हो जाता है-

रक्षितास्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता।
वेद वेदांग तत्वज्ञो धनुर्वेद च निष्ठित:।। -वाल्मीकि रामायण सर्ग १/१४

अपने धर्म की रक्षा करने और प्रजा पालने में तत्पर, वेद वेदांग तत्व ज्ञाता, धनुर्वेद में निष्णात थे।

वह स्वभार्या के प्रिय, प्रजा के दुःख दूर करने वाले, भाइयों को हृदय से प्रिय, माता पिता के आज्ञाकारी पुत्र थें। वचन के दृढ़, सत्यवादी, शरीरों, राक्षसों, मांसा-हारियों के शत्रु और ऋषियों की सच्चे हृदय से सेवा में तत्पर थे। जैसा कि रामायण अयोध्याकाण्ड १८/३० में तथा कई अन्य स्थानों पर इस बात को अच्छे प्रकार प्रगट किया है। बालकाण्ड में भी लिखा है-

धर्मज्ञ: सत्यसंधश्च प्रजानां च हितेरत:।
यशस्वी ज्ञान संपन्न: शुचिर्वश्य: समाधिमान्।।१२।।
प्रजापति सम: श्रीमान्धाता रिपुनिषूदन:।
रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता।।१३।।
सर्व शास्त्रार्थ तत्वज्ञ: स्मृतिमान् प्रतिभावान्।
सर्वलोक प्रियः साधुरदोनात्मा विचक्षण:।।१५।।
सर्वदाभिगत: सद्भि: समुद्रइव सिन्धुभि:।
आर्य: सर्वसमश्चैव सदैव प्रिय दर्शन:।।१६।। -बालकाण्ड १/१२,१३,१५,१६

धर्मज्ञ, सत्य प्रतिज्ञा, प्रजा हितरत, यशस्वी, ज्ञान सम्पन्न, शुचि तथा भक्ति तत्पर हैं। शरणागत रक्षक, प्रजापति समान प्रजा पालक, तेजस्वी, सर्वश्रेष्ठ गुणधारक, रिपु विनाशक, सर्व जीवों की रक्षा करने वाले, धर्म के रक्षक, सर्व शास्त्रार्थ के तत्ववेत्ता, स्मृतिमान्, प्रतिभावान् तेजस्वी, सब लोगों के प्रिय, परम साधु, प्रसन्न चित्त, महा पंडित, विद्वानों, विज्ञान वेत्ताओं तथा निर्धनों के रक्षक, विद्वानों की आदर करनेवाले जैसे समुद्र में सब नदियों की पहुंच होती है वैसे ही सज्जनों की वहां पहुंच होती है। परम श्रेष्ठ, हंस मुख, दुःख सुख के सहन कर्ता, प्रिय दर्शन, सर्व गुणयुक्त और सच्चे आर्य पुरूष थे।

आनुशंस्यतनु कोश: श्रुतंशीलं दम: शम:।
राघव शोभयन्त्येते षङ्गुणा: पुरूषर्षभम्।। -अयोध्याकाण्ड ३३/१२

अहिंसा, दया, वेदादि सकल शास्त्रों में अभ्यास, सत्य स्वभाव, इन्द्रिय दमन करना, शान्त चित्त रहना, यह छे गुण राघव (रामचन्द्र) को शोभा देते हैं।

रामचन्द्र जी ने कौशल्या माता को वचन भी दिया था कि “हे माता? मैं १४ वर्ष तक वन में मुनियों की भांति कंदमूल और फलों से अपना जीवन निर्वाह करूंगा न कि मांस से (क्योंकि वह राजसीय भोजन है)।” -अयोध्याकाण्ड सर्ग २०/२९

जब भरत जी रामचन्द्र जी से चित्रकूट में मिलने आए तब उस समय रामचन्द्र जी ने उनको अथर्व काण्ड ६ मन्त्र १ तथा मनु ७/५० आदि के अनुसार आखेट, द्यूत, मद्यपान, दुराचारादि बातों का निषेध का अनमोल उपदेश दिया हैं, यह बड़े ही मार्मिक एवं प्रशंसा के योग्य हैं।

जिसका इतना आदर्श भरा चरित्र हो भला वह महापुरुष मांस का सेवन कैसे कर सकता है? “अधजल गगरी छलकत जाए” यह कहावत इन आक्षेप करने वाले अज्ञानियों, मूर्खों पर सटीक बैठती है। वह केवल अर्थों का तोड़-मरोड़कर साधारण लोगों को मूर्ख बनाते हैं एवं अपने धर्म में उन्हें सम्मिलित करना चाहते हैं। यहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र पर लगे विभिन्न आक्षेपों का क्रमबद्ध खण्डन किया जा रहा है-

शंका १. रामचन्द्र जी मृग मारने के लिए गए और पीछे रावण सीता को ले गया। इससे प्रगट है कि वह हिरण मारकर अवश्य खाया करते थे।
श्रीराम के विषय में उठने वाले प्रश्नों के उत्तर.
श्रीराम जी पर लगाए जाने वाले आरोप कितने सही हैं ?
क्या श्रीराम जी शूद्र विरोधी थे ?
क्या उन्होने शंबूक का वध किया था ?
क्या उन्होने गर्भवती सीता को छोड़ दिया था ?
क्या उनका या उनके भाइयों का लवकुश से युद्ध हुआ था ?
क्या सीता जी धरती में समा गई थी ?

इस लेख में इन सब प्रश्नों का उत्तर दिया जाएगा।

आजकल 2 पुस्तकें रामायण के नाम से जानी जाती हैं.
1- वाल्मीकि रामायण.
2- तुलसीदास जी की रामचरित मानस।

इसमें से वाल्मीकि रामायण श्रीराम जी के समय में लिखी गई है। आजकल प्राप्त वाल्मीकि रामायण में 7 काण्ड (Chapter) हैं। अंतिम काण्ड उत्तर काण्ड है।
तपस्वी शंबूक का वध , लवकुश से युद्ध तथा गर्भवती माता सीता जी का त्याग दोनों इसी काण्ड में आते हैं l

*
परंतु सच्चाई यह है कि महर्षि वाल्मीकि ने जो रामायण लिखी थी उसमे 6 काण्ड ही थे। सातवाँ उत्तर काण्ड बाद में (17 वी -18 वी शताब्दी में ) मिलाया गया है। क्योकि उत्तर काण्ड महर्षि वाल्मीकि जी की रचना नहीं है इसलिए श्रीराम जी को तपस्वी शम्बूक का हत्यारा नहीं कहा जा सकता. उन्हें गर्भवती स्त्री माता सीता जी के त्याग का अपराधी भी नहीं कहा जा सकता. अतः सनातन धर्म के आदर्श मर्यादा पुरूषोंत्तम श्रीराम जी को बदनाम करने के लिए किसी दुष्ट ने ये उत्तर काण्ड बाद में मिलाया है. इसके निम्नलिखित प्रमाण हैं।
*
1- “THE ILIAD OF THE EAST” “दी इलियड ऑफ दी ईस्ट” रामायण का इंगलिश में संक्षिप्त अनुवाद है जो FREDERIKA RICHARDSON ने किया था। इसे MACMILLAN AND CO ने 1870 में प्रकाशित किया था। इसमें केवल पहले 6 काण्डों का ही विवरण है। यदि इस अनुवादक के सामने उत्तरकाण्ड होता तो क्या वह उत्तरकाण्ड का अनुवाद न करता।
*
2 RALPH T. H. GRIFFITH ने 1874 में रामायण का इंगलिश में अनुवाद किया है। इसे लंदन मे TRUBNER AND CO ने तथा भारत मे बनारस में Lazarus And Co ने छापा था। इसमे भी पहले 6 भागों का अनुवाद है। युद्धकाण्ड के अंत में अनुवादक उत्तरकाण्ड के विषय में लिखता है –
The Ramayan ends epically complete, with the triumphant return of Rama and his rescued queen to Ayodhya and his consecration and coronation in the capital of his forefathers. Even if the story were not complete, the conclusion of the last canto of the sixth Book evidently the work of a later hand than Valmiki’s, which speaks of Rama’s glorious and happy reign and promises blessings to those who read and hear the Ramayan, would be sufficient to show that, when these verses were added, the poem was considered to be finished.

अर्थात एक महाकाव्य के रूप में रामायण विजयी राम की अपनी रानी को बचाने और अपने पूर्वजो की राजधानी में राज्याभिषेक के साथ पूरी हो जाती है। छठे अध्याय के अंतिम खंड में वाल्मीकि राम के गौरवशाली और खुशहाल शासन की बात करते हैं और उनके लिए आशीर्वचन कहते हैं जो रामायण को पढ़ते और सुनते हैं। इससे यह निश्चित हो जाता है कि महाकाव्य यहाँ समाप्त हो जाता है। उत्तरकाण्ड बाद की रचना है जो किसी दूसरे द्वारा लिखी गई है।
*
3 – वाल्मीकि रामायण की संस्कृत में 3 टीका मिलती हैं. उसमें से सबसे मुख्य तथा पुरानी टीका श्री गोविन्दराज जी की है. गोविन्दराज जी ने अपना व अपने गुरु का परिचय बालकाण्ड में रामायण के आरम्भ में तथा युद्ध काण्ड के अंत में दिया है. बीच में कहीं पर ही अपना परिचय नहीं दिया है. यदि गोविन्दराज जी के सामने उत्तर काण्ड होता तो वह अपना परिचय युद्ध काण्ड ने न देकर उत्तर काण्ड में देते…सन 1900 के आसपास तक जो भी गोविन्दराज की टीका सहित वाल्मीकि रामायण छपी हैं उनमें उत्तरकाण्ड की टीका नहीं है. परन्तु 1930 के संस्करण में गोविन्दराज की उत्तर काण्ड पर टीका मिलती है. उसके उत्तर काण्ड पर जो टीका दी गई है वह पिछले 6 काण्डों की टीका से बिलकुल अलग है और उत्तर काण्ड को रामायण का हिस्सा दिखाने के लिए बनाई है.
*
क्षेत्रीय भाषाओं में मिलने वाली रामायण और उत्तर काण्ड
*
भारत में वाल्मीकि रामायण को आधार बना कर कई प्रादेशिक भाषाओं में रामायण लिखी गई है. जैसे कम्ब रामायण (तमिल में), रंगनाथ तेलुगु (तेलुगु में), तोरवे रामायण (कन्नड़ में) तथा तुलसीदास जी की रामचरित मानस (अवधि में ). अब हम क्रम से इन पर विचार करते हैं.5- कम्ब रामायण – इसका रचना काल लगभग बारहवीं शताब्दी है. संस्कृत से भिन्न उपलब्ध भाषाओं में यह सबसे पुरानी रामायण है. इसके लेखक महाकवि कम्बन हैं. इसकी मूल भाषा तमिल है. अब तक इसके हिन्दी में (पहला अनुवाद 1962 में बिहार राजभाषा परिषद् ) कई अनुवाद हो चुके हैं. इसमें भी बालकाण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक 6 ही काण्ड हैं. यह भी भगवान् श्रीराम जी के राज्य अभिषेक व श्री राम जी द्वारा दरबार में सभी के लिए प्रशंसा वचन के साथ पूरी होती है. यह बहुत अधिक वाल्मीकि रामायण से मिलती है. यदि महाकवि कम्बन जी के सामने वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह इसका वर्णन जरुर करते. परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे.

6- रंगनाथ रामायण – इसका रचना काल लगभग 1380 इस्वी है. इसकी भाषा तेलुगु है परन्तु अब इसका हिंदी में अनुवाद (1961 में बिहार राजभाषा परिषद द्वारा) चुका है. यह रामायण श्रीराम जी के राज्याभिषेक व दरबार के दृश्य के साथ पूरी हो जाती है . इसमें बालकाण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक 6 काण्ड हैं. यदि इसके रचियता के सामने उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह अवश्य ही उसका उल्लेख करते परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमें 6 काण्ड ही थे.
**
7– तोरवे रामायण – इसका रचना काल लगभग 1500 इस्वी है. इसकी मूल भाषा कन्नड़ है परन्तु अब इसका हिंदी में अनुवाद चुका है. इसके लेखक तोरवे नरहरी जी हैं. यह रामायण श्रीराम जी के राज्य अभिषेक, सुग्रीव आदि को विदा करना, रामराज्य में सुख शान्ति, दरबार के दृश्य तथा रामायण पढने के लाभ के वर्णन के साथ पूरी हो जाती है . इसमें बालकाण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक 6 काण्ड हैं. यदि इसके रचियता के सामने उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह अवश्य ही उसका उल्लेख करते परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे.
**
8– रामचरित मानस — गोस्वामी तुलसीदास जी की राम चरित मानस में उत्तर काण्ड है। परंतु उसकी विषय वस्तु वाल्मीकि जी के उत्तरकाण्ड से पूरी तरह अलग है। इसमें ना तो शंबूक है, ना लव कुश है, ना सीता को वनवास भेजने का विवरण है। अतः तुलसीदास जी के समय भी यह उत्तरकाण्ड रामायण का हिस्सा नहीं था। श्रीराम जी के राज्याभिषेक का वर्णन वाल्मीकि जी छठे काण्ड में करते हैं तो तुलसीदास जी सातवें काण्ड में।
**
9- वाल्मीकि रामायण में फलश्रुति (रामायण पढ़ने के लाभ) युद्ध काण्ड के अन्त में है। यदि महर्षि वाल्मीकि जी ने उत्तरकाण्ड लिखा होता तो वह इसे उत्तर काण्ड के अन्त में देते।
**
10- संस्कृत के सभी ग्रन्थों में समय समय पर मिलावट की जाती रही है। आज रामायण के 4-5 अलग अलग संस्करण मिलते हैं जिसमे एक दूसरे से पूरी तरह अलग श्लोक मिलते हैं। कुल श्लोकों की संख्या भी संस्करणों में अलग अलग है। इससे अनुमान होता है कि स्वार्थी लोग समय पर इन पुस्तकों में से श्लोक हटाते भी रहे और मिलाते भी रहे। इन मिलावटी श्लोकों के कारण ही सनातन धर्म के महापुरुषों का अपमान होता रहा है। उदाहरण के तौर पर कम्युनिष्ट लेखिका मृणाल पाण्डे ने एक बार अखबार में एक लेख लिखा जिसमें माता सीता द्वारा( पूजा के तौर पर ) गंगा नदी में शराब के घड़े डालने का डालने की बात लिखी थी। बाद में ढूँढने पर पाया कि यह श्लोक केवल एक संस्करण में है जो किसी शराब पीने वाले ने मिलाया है। इसी तरह केवल एक संस्करण में सीता द्वारा घूँघट करने का जिक्र मिलता है जो साफ साफ बाद में मिलाया गया है।

 

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार