Saturday, December 21, 2024
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समाज को आईना दिखाता उद्भ्रांत शर्मा का सृजन

राजस्थान के नवलगढ़ में जन्म ले कर कवि के रूप में देशव्यापी पहचान बनाने वाले रचनाकार रमाकांत शर्मा जो उदभ्रांत नाम से प्रसिद्ध हैं । आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ऐसे बहुत कम साहित्यकार हैं जो जनता की भावनाओं को समझ कर लिखते हैं। इनके रचनाकर्म पर लेनिन की कही बात सटीक बैठती है जब उन्होंने कहा था कि सच्चा साहित्य वह है जो जनता की भाषा बोले। ये एक ऐसे संवेदनशील रचनाकार हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज को आइना दिखाया है। सीधे सरल शब्दों में कविता के माध्यम से लोगों तक अपना मंतव्य पहुंचाने में इनका कोई सानी नहीं है। करीब 11 वर्ष की आयु में लिखना शुरू कर दिया और लेखन के क्षेत्र में  वर्ष 1959 से कदम रख कर परिस्थितियों से कभी हार नही मानने वाले
रचनाकार  जीवन के 75 बसंत देखने के बाद भी जिंदादिली के साथ पूर्ण रूप से सृजन में सक्रिय हैं। सृजन की विशेषता है कि विरोध से कभी डरे नहीं और भ्रष्टाचार का खंडन एवं उसका घोर विरोध किया है। समाज में होने वाली घटनाओं पर वे बिना किसी पक्षपात के तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं फिर चाहे वह सरकार के पक्ष में हो या विरोध में । इनकी एक कविता “
स्पंद ” के भाव देखिए….
कहीं कुछ
अघटित हुआ घटित
शक्तिशाली
सूक्ष्मदर्शी की पकड़ से भी अदृश्य रहने वाले
लघुतम परमाणु के भीतर
हुआ कोई
भूतो न भविष्यत्
ऐसा विस्फोट
आवाज़ तो सुनाई नहीं दी
पर अध्ययन-कक्ष में
प्रकृति के स्टैंड पर घूमता पृथ्वी का ग्लोब
अचानक हिल गया
अपने केंद्र से
अनादि-क्षेत्रीय ब्रह्मांड के
अनंत-खंडीय भवन में
पैदा करते हुए
एक सार्थक स्पंद!
 वे ‘ हिंदी के उन श्रेष्ठ कवियों मे से एक हैं जिनकी कविताएं अपने समय और समाज के सारे सवालो से हमे रू-ब-रू कराती हैं । जीवन का कोई ऐसा पक्ष नही है जो इनकी कविताओं में चित्रित न हुआ हो। कह सकते हैं  कि कविताएं बहुआयामी है , जिसमें मानववादी दृष्टिकोण समाहित है। इनकी कविता कल्पना से लेकर यथार्थ की और असाधारण से लेकर साधारण तक विकसित हुई है । हालांकि ये हिंदी साहित्य में कवि के रूप में विख्यात हैं परंतु इन्होंने कविताओं के साथ – साथ गद्य विधा में नाटक कहानी ,उपन्यास,निबंध आलोचना ,संस्मरण ,आत्मकथा जीवनी यात्रावृत्तांत, रेखाचित्र, को पढ़ा और लिखा है।  देखा जाए तो इनका गद्य साहित्य मानव जीवन के विशाल पक्षों को भी स्पर्श करता है ।
ये  हरिवंश राय बच्चन को अपना काव्य गुरु मानते हैं  और उन्होंने ही इन्हें ” उदभ्रांत” नाम दिया।         भारतीय संस्कृति,साहित्य और दर्शन में इनकी  गहरी रुचि हैं । वे त्रेता युग के रामराज्य की सारी नारियों को एक धरातल पर खड़ा कर उनके वैचारिक दृष्टिकोण की समरूपता की तुलना करते हैं तथा ‘गीता’ जैसे संस्कृतनिष्ठ महाकाव्य का हिन्दी  रूपान्तरण ‘प्रज्ञावेणु’  के नाम से गीत के रूप में जन-साधारण को सुलभ कराकर अपने आप में हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की हैं ।
प्रसिद्ध आलोचक और अनुवादक दिनेश कुमार माली कहते हैं, “उनका मानना यह था ,कोई भी ब्लॉगर अपने ब्लाग मेँ जो चाहे,वह लिख सकता हैं । न व्याकरण का ध्यान ,न भाषा-शैली, न वाक्य-विन्यास का ख्याल,  अधकचरी भाषा का प्रयोग, हिन्दी-अंग्रेजी मिश्रित  क्या साहित्य की भाषा यही होती हैं ? साहित्य मेँ भाषा के प्रयोग का खास ध्यान रखा जाता हैं , यह भाषा मार्जित होनी चाहिए पूरी तरह से । एक प्रवाह होता हैं, जो पाठक को खींचते ले जाता हैं । केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह तो नहीं हैं, कि जो मन मेँ आए कह दो ,ब्लॉग और अपने आपको श्रेष्ठ लेखक मानकर स्थापित कर लो, उंचें दर्जे के लेखकों मेँ “।
इनकी पुस्तक ” मुठभेड़ ” एक रियल साहित्यिक इनकाउंटर का दस्तावेज़ हैं। साहित्य और असाहित्य ,प्रेम-नफरत और खरी-खोटी की सीमा पर होने वाली लड़ाई का। जिसमें एक सैनिक अपने चारों तरफ चक्रव्यूह में फँसकर लगातार साहित्य-अकादमियों  ,संपादकों ,लेखकों  के  साथ लगभग पांच दशकों से अभिमन्यु की तरह लड़ रहा हो, कलम के  रथ का पहिया निकाल कर और लड़ते-लड़ते क्लांत हो गया हो, बचा रह गया तो केवल क्रोध में भरकर जवाबी हमले के लिए। जब एक महान लेखक अपने ईद-गिर्द होने वाली अव्यवस्थाओं व अलोकतंत्र से जूझता हैं, तो उसका अंतस प्रतिक्रियास्वरूप तीखे हमले की तैयारी कर रहा होता हैं । लेखक का उद्देश्य दुर्भावना फैलाना नहीं होता हैं , वरन साहित्यिक खेमों में फैल रही गंदगी, भ्रष्टाचार,स्वेच्छाचार व स्वतंत्र मनोवृति पर कुछ हद तक अंकुश लगाना होता हैं कि किसी की नजर तो हैं उनके दुराचरण पर ।
इनका ‘स्वयंप्रभा ‘  खंडकाव्य 9 सर्ग में लिखी गई  रचना है जिसमे कवि ने रामायण की स्वयंप्रभा जैसी पात्र जिस पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया है पर अपनी रचना करते हुए पर्यावरण प्रदूषण और आसुरी प्रवृत्तियां दोनों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है । इसे मुंबई विश्वविद्यालय के स्नातक के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इसके एक गीत ‘ कांटों का प्रतिवेदन ‘ को महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रकाशित महाराष्ट्र के 12 वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में रखा गया है । “रुद्रावतार ”  इनकी  बहुचर्चित कविताओं में से एक है ।  यह कविता अपने प्रकाशन के समय से ही चर्चा में रही है । मुंबई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय के निर्देशन मे रुद्रावतार पर एक लघु शोध भी लिखा गया है। इनके एक लघु उपन्यास ‘ नक्सल में उन्होंने नक्सली और उनकी जीवन शैली का सटीक चित्रण किया है। उपन्यास में ये दिखाने की  कोशिश की है कि अगर कोई इस तंत्र  के चक्कर में फंस जाता है तो वह चाहकर भी इससे नहीं निकल पाता है।
 प्रकाशन 
आपकी अब तक प्रकाशित 145 पुस्तकों में कुछ की विशेषताओं को ऊपर बताया गया है। प्रकाशित पुस्तकों पर एक नजर डालें तो इनकी प्रमुख पुस्तकों में त्रेता – ’अभिनव पांडव’, ’राधामाधव’ एवं ’वक्रतुण्ड’ (महाकाव्य) के क्रमशः 3,4,2 एवं 2 संस्करण प्रकाशित (पाठकों की भारी माँग के बाद आया ’त्रेता’ का पेंगुइन संस्करण जबर्दस्त चर्चा में), ’अनाद्यसूक्त’ (आर्ष काव्य), ’ब्लैकहोल’ (काव्यनाटक), ’प्रज्ञावेणु’ (मुक्तछन्द में गीता), ’अस्ति’, ’इस्तरी’, ’हँसो बतर्ज रघुवीर सहाय’, ’शब्दकमल खिला है’, ’नाटकतन्त्र तथा अन्य कविताएँ’ (सभी समकालीन कविताएं), ’लेकिन यह गीत नहीं’ (नवगीत), ’मैंने यह सोचा न था’ ( ग़ज़ल) इसका उर्दू संस्करण भी प्रकाशित, ’सदी का महाराग’ (सं. रेवतीरमण) और ’शेष समर’ (सं. बली सिंह) काव्य संचयन, ’नक्सल’ (लघु उपन्यास), ’  उदभ्रांत: श्रेष्ठ कहानियाँ’ (कहानी), ’कहानी का सातवां दशक’ (संस्मरणात्मक समीक्षा), ’आलोचना का वाचिक’ (वाचिक आलोचना), ’आलोचक के भेस में’ एवं ’मुठभेड़’ (आलोचना), ’शहर-दर-शहर उमड़ती है नदी’ और ’स्मृतियों के मील-पत्थर’ (संस्मरण), ’चंद तारीखें’ (डायरी), ’मेरे साक्षात्कार’ (इंटरव्यूज)। ’ब्लैकहोल’, ’ अनाद्यसूक्त’, ’अभिनव पाण्डव’ और ’राधामाधव’ के अंग्रेजी अनुवाद तथा ’राधामाधव’ के ओड़िया, उर्दू, छत्तीसगढ़ी, मैथिली एवं डोगरी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित । ’मैंने जो जिया’ (आत्मकथा)- दो खण्ड शामिल हैं।
 संपादनः 
लेखन के साथ – साथ इन्होंने संपादक के रूप में भी कार्य किया। इन्होंने लघु पत्रिका आंदोलन और युवा की भूमिका, पत्र ही नहीं बच्चन मित्र हैं, पत्र भी इतिहास भी, हम गवाह चिड्डियों के उस सुनहरे दौर के, ’क्षणों के आख्यान’ (फेसबुक डायरी) दो खण्ड, युवा तथा युग प्रतिमान (पाक्षिक) एवं पोइट्री टुडे का संपादन भी किया है। आप कानपुर के दैनिक पत्र ” आज ” में तीन वर्षों तक वरिष्ठ संपादक रहे।
विद्वान कवि और  गद्यकार उदभ्रांत की रचनाओं पर मूल्यांकन कार्य भी बड़े परिमाण में किया गया है जो इनके सृजन कौशल और लेखन शैली की गुणवत्ता का प्रतीक कह सकते हैं। डॉ. आनंदप्रकाश दीक्षित, नित्यानंद तिवारी, कर्णसिंह चौहान, सेवाराम त्रिपाठी, करुणाशंकर उपाध्याय, कँवल भारती, लक्ष्मीकांत पांडेय, द्वारिकाप्रसाद चारुमित्र, बली सिंह, महेन्द्र प्रसाद कुशवाहा, दिनेश कुमार माली आदि विद्वानों द्वारा लिखित और संपादित लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकें इनके साहित्य के मूल्यांकन को ले कर प्रकाशित हुई हैं।
उदभ्रांत जी को मिले मान – सम्मान की कथा भी इनके सृजन साहित्य के समान व्यापक है।  महत्वपूर्ण सम्मानों में प्रियदर्शनी अकादमी का ’प्रियदर्शनी’ सम्मान (त्रेता), मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार (अनाद्यसूक्त), हिंदी अकादमी का ’साहित्यिक कृति पुरस्कार’ (लेकिन यह गीत नहीं), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के ’जयशंकर प्रसाद पुरस्कार’ (स्वयंप्रभा) और ’निराला पुरस्कार’ (देह चांदनी) उल्लेखनीय हैं। रूस की राजधानी मास्को में ’राधामाधव’ (महाकाव्य) पर ’प्रथम गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’ से सम्मानित हुए।
 परिचय : वर्तमान दौर के सशक्त साहित्यिक हस्ताक्षर । देश में हिंदी के प्रसिद्ध कवि ,लेखक,समीक्षक एवं आलोचक उदभ्रांत शर्मा का जन्म 4 सितम्बर, 1948 को  राजस्थान के नवलगढ़ में पिता पंडित उमा शंकर शर्मा एवं माता  गंगा देवी रावत के आंगन में हुआ। उस समय  पिता पोद्दार कॉलेज में अर्थशास्त्र और कॉमर्स के प्रोफेसर थे। दो वर्ष बाद वे उत्तर प्रदेश सूचना आयोग द्वारा सहायक श्रम अधिकारी/श्रम निरीक्षक के पद पर चयनित हुए।
श्रम विभाग का मुख्यालय कानपुर में था। कानपुर, आगरा रहे। कानपुर में अपना मकान बनाया। उदभ्रांत ने कानपुर में ही कक्षा 8 से एम. ए. तक शिक्षा प्राप्त की। आप 1975 से 1978 तक कानपुर में दैनिक आज में पत्रकार तथा श्रम विभाग में वरिष्ठ पत्रकार / प्रभारी प्रचार अधिकारी के रूप में काम करने के बाद 1979 से 1981 के मध्य तक ई. एस. आई. के पटना कार्यालय में हिंदी अधिकारी और 1981 से 1987 के अंत तक एलिम्को कानपुर में हिंदी – सह – प्रचार अधिकारी रहे। इसके बाद मार्च 1991 तक अपना प्रकाशन कार्य किया। अप्रैल 1992 से लोक संघ सेवा आयोग द्वारा भारतीय प्रसारण सेवा के सहायक केंद्र निरीक्षक के रूप में दूरदर्शन के पटना कार्यालय में नियुक्त हो कर इंफाल, पुणे, मुंबई और गोरखपुर होते हुए 1995 में उप निदेशक के रूप में पदोन्नत होते हुए 2010 में सेवा निवृत हुए। वर्ष 1999 से नोएडा में रहते हुए साहित्य सृजन में लगे हैं।
 
 
संपर्क :
’अनहद’, बी – 463, केन्द्रीय विहार, 
सेक्टर-51, नोएडा -201303, 
मोबाइल :  09818854678/ 8178910658
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(लेखक , स्तंभकार, संपादक और पत्रकार हैं)
फोटो –  उदभ्रांत

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