Wednesday, March 26, 2025
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सरकार के छोटे-छोटे कदम टीबी मुक्त भारत की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे

 
(विश्व क्षयरोग दिवस, 24 मार्च पर विशेष आलेख)

हर साल हम 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस मनाते हैं। यह कार्यक्रम 24 मार्च 1882 की तारीख को याद करने का दिन है जब जर्मन फिजिशियन  डॉ. रॉबर्ट कोच ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु की खोज की थी, यह जीवाणु तपेदिक/क्षय रोग (टीबी) का कारण बनता है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज हो जाने से टीबी के निदान और इलाज में बहुत आसानी हुई। जर्मन फिजिशियन रॉबर्ट कोच की इस खोज के लिए उन्हें 1905 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। यही कारण है कि हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन टीबी के सामाजिक, आर्थिक और सेहत के लिए हानिकारक नतीजों पर दुनिया में जन-जागरूकता फैलाने और दुनिया से टीबी के खात्मे की कोशिशों में तेजी लाने के लिए विश्व क्षयरोग दिवस मनाता आ रहा है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज के सौ साल बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहली बार 24 मार्च 1982 को विश्व क्षयरोग दिवस शुरू मनाने की शुरुआत की, तभी से हर साल 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है।

टीबी (क्षय रोग) एक घातक संक्रामक रोग है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। टीबी (क्षय रोग) आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है।

आज के समय पर सामान्य टीबी का इलाज कोई चुनौती नहीं है। अगर कोई भी व्यक्ति टीबी का मरीज है तो वह 6-9 महीने टीबी का उपचार लेकर स्वस्थ्य हो सकता है। आज के समय पर सबसे बड़ी चुनौती है ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज की, जो कि प्रमुख रुप से दो प्रकार की होती है मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी और एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु  (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है (टीबी के मामले में अगर एक दिन भी दवा खानी छूट जाती है तब भी खतरा होता है) तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी हो सकती है। इसलिए टीबी के रोगी को डॉक्टर के दिशा निर्देश अनुसार नियमित टीबी की दवाओं का सेवन करना चाहिए। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन जैसे दवाओं का मरीज पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन ड्रग का टीबी का जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) प्रतिरोध करता है।

एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है। एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन के साथ-साथ टीबी का जीवाणु सेकंड लाइन ड्रग्स में कोई फ्लोरोक्विनोलोन ड्रग (लिवोफ़्लॉक्सासिन और मोक्सीफ्लोक्सासिन) और बेडाक्विलाइन/लिनेजोलिड ड्रग का प्रतिरोध करता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का रोगी द्वारा अगर सेकंड लाइन ड्रग्स को भी ठीक तरह और समय से नहीं खाया जाता या लिया जाता है तो एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की सम्भावना बढ़ जाती है।

 इस प्रकार की टीबी में एक्सटेंसिव ड्रग्स द्वारा एक साथ कई ड्रग्स का संयोजन बनाकर 2 वर्ष से अधिक तक उपचार किया जाता है। लेकिन एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का उपचार सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। आज के समय पर ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए तीन प्रकार की रेजीमेन- एच मोनो पोली रेजीमेन (6 या 09 माह),  शॉर्टर रेजिमेन (9-11 माह) और ऑल ओरल लोंगर रेजीमेन (18-20 माह) का उपयोग किया जा रहा है। नयी टीबी ड्रग बेडाक्विलाइन का उपयोग भी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर और एक्सडीआर) के उपचार में किया जा रहा है, बेडाक्विलाइन दवा टीबी की अन्य दवाओं के साथ छः माह तक एक अतिरिक्त दवा के तौर पर दी जाती है।

बीपाल-एम रेजीमेन का देष में अभी विस्तार होना बाकी है, आशा है कि 2025 में भारत के सभी राज्यों में इस नयी ड्रग रेजिस्टेंट रेजीमेन का प्रयोग होने लगेगा। बीपाल-एम रेजीमेन के माध्यम से ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज में एक क्रांति आयेगी क्योंकि देष में बीपाल-एम रेजीमेन के ट्रायल में इसकी सफलता दर लगभग 93 प्रतिषत रही है। बीपाल-एम रेजीमेन में प्रीटोमैनिड नाम की नयी ड्रग का उपयोग पहली बार किया जा रहा है। इस बीपाल-एम उपचार पद्धति के कई लाभ हैं, जिनमें पारंपरिक एमडीआर-टीबी उपचार की तुलना में कम अवधि, कम लागत, कम गोलियों का बोझ, उच्च प्रभावकारिता, बेहतर अनुपालन और नैदानिक परिणाम शामिल हैं। इस उपचार पद्धति के लिए जरूरी है कि इसके समावेशन और बहिष्करण मानदंड का ध्यान रखा जाए तभी इसका लाभ मरीज को अधिक मिल पायेगा और इसके पार्श्व प्रभाव मरीज में कम होंगे।

टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा तमाम प्रयास किये जा रहे हैं तिसके तहत अब टीबी रोगी के संपर्क में रहने वाले परिवार के लोगों को भी टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) दी जाएगी, इससे पहले एचआईवी ग्रस्त मरीजों और टीबी मरीज के परिवार के 6 साल से कम के बच्चों को टीपीटी दी जाती थी। टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) एक ऐसी प्रिवेंटिव थेरेपी है जो टीबी होने के जोखिम को कम करने में मदद करती है, खासकर उन लोगों में जो टीबी के संपर्क में आए हैं या जिन्हें टीबी होने का खतरा है। आने वाले समय में देष से टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए टीपीटी एक प्रमुख भूमिका निभायेगी।

यह मील का पत्थर भारत के राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के प्रभाव और कड़ी मेहनत को जाहिर करता है, जो एक व्यापक रणनीति है जो 2025 तक भारत देश के टीबी उन्मूलन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए अत्याधुनिक निदान, निवारक देखभाल, रोगी सहायता से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण साझेदारी है। हमारे भारत देश में पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा टीबी मरीजों की संख्या है। भारत देश का लगभग 26 प्रतिशत टीबी बीमारी के मामलों में पूरे विश्व में योगदान है। सबसे ज्यादा दवा प्रतिरोधक टीबी मरीज (एक लाख दस हजार, लगभग 21 प्रतिशत) भी भारत देश में है। भारत देश में ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के मरीजों की उपचार सफलता दर जो साल 2020 में 68 प्रतिशत थी वह 2022 में 75 प्रतिशत हो गई है जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। अगर टीबी मरीज को सही समय पर इलाज नहीं मिलता है तो एक सक्रिय टीबी मरीज साल में कम से कम 15 नए मरीज पैदा करता है।
यह अपने आप में भारत देश के लिए एक बहुत बड़ा और कठिन लक्ष्य है, इस लक्ष्य को 2025 में प्राप्त करना नो नामुमकिन लग रहा है लेकिन आने वाले सालों में राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम की यह महत्वपूर्ण यात्रा टीबी मुक्त भारत के रूप में मील का पत्थर साबित होगी। 2015 की तुलना में भारत 2025 में टीबी केयर के मामले में एक अच्छी स्थिति में है। टीबी मुक्त भारत के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण अभियान भी चलाये जा रहे हैं जिसमे 100 दिवयीय सघन अभियान और टीबी मुक्त पंचायत प्रमुख रुप से शामिल है। 100 दिवयीय टीबी सघन अभियान देष के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 347 जिलों में 7 दिसंबर, 2024 को शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य कमजोर या उच्च जोखिम वाले समूह में आने वाले लोगों में टीबी की जांच और परीक्षण करना था, जिसमें  60 साल से अधिक उम्र के लोग, मधुमेह रोगी, धूम्रपान करने वाले, शराब पीने वाले, एचआईवी से पीड़ित लोग, अतीत में टीबी से पीड़ित लोग, टीबी रोगियों के घरेलू संपर्क इत्यादि षामिल हैं।

इस अभियान के अन्तर्गत टीबी के लक्षणों वाले लोगों की जांच के अलावा, सघन अभियान का मुख्य उद्देश्य लोगों में उप-नैदानिक या बिना लक्षण वाले टीबी रोग की जांच के लिए छाती के एक्स-रे का उपयोग करना है, जिसके बाद नाट (सीबीनाट और ट्रूनाट) परीक्षण का उपयोग करके जीवाणु संबंधी पुष्टि की जाती है। इस अभियान में पहले उत्तर प्रदेश के 15 जिले शामिल किये गए थे लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने अभियान कि महत्वता को देखते हुए उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में इस अभियान को लागू कर दिया, इस तरह की टीबी के प्रति सजगता रखना किसी राज्य के मुखिया के लिए बहुत बड़ी बात है जो कि भारत देश से टीबी के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। ऐसे अभियानों कि महत्वता तभी है जब ऐसे अभियानों को वास्तविक रूप से लागू किया जाए और आकड़ों का खेल न खेला जाए क्योंकि जिस जगह आंकड़े आ जाते है उस जगह यथार्थ कम हो जाता है।

इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण अभियान के तहत 24 मार्च 2023 को वाराणसी में आयोजित विश्व क्षयरोग दिवस के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा टीबी मुक्त पंचायत पहल की शुरुआत की गई थी। टीबी मुक्त पंचायत पहल के अंतर्गत हर छोटे भौगोलिक क्षेत्र/पंचायत को टीबी मुक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे कि टीबी उन्मूलन के व्यापक लक्ष्य को हासिल किया जा सके। टीबी मुक्त पंचायत पहल के अंतर्गत सेंट्रल टीबी डिवीजन द्वारा कुछ विशेष मानक तय किये गए हैं। इन मानकों पर जो भी ग्राम पंचायत खरी उतरेगी उस ग्राम पंचायत को टीबी मुक्त पंचायत घोषित किया जाएगा। इस अभियान के तहत सैंकडों ग्राम पंचायतें पिछले साल टीबी मुक्त हुई हैं और इस पहल के अंतर्गत इस साल भी देश में सैंकड़ों ग्राम पंचायतें टीबी मुक्त होने वाली हैं।

टीबी मुक्त पंचायत पहल आगे चलकर टीबी मुक्त भारत अभियान के लिए मील का पत्थर साबित होगी। टीबी मुक्त पंचायत के लिए प्रमाण पत्र, एक वर्ष की वैधता के साथ, हर साल विश्व टीबी दिवस यानी 24 मार्च को जिला मजिस्ट्रेट/जिला कलेक्टर द्वारा योग्य ग्राम पंचायतों को जारी किया जाएगा। प्रमाण पत्र के साथ, स्वस्थ गांवों के प्रति उनके दृष्टिकोण के प्रतीक के रूप में टीबी मुक्त ग्राम पंचायत को महात्मा गांधी की एक छोटी प्रतिमा भी प्रदान की जाएगी। टीबी मुक्त पंचायत को प्रथम वर्ष महात्मा गांधी की कांस्य रंग की प्रतिमा, जो पंचायत लगातार दो वर्ष तक टीबी मुक्त रहती है उसे सिल्वर रंग की प्रतिमा और जो पंचायत लगातार तीन वर्ष तक टीबी मुक्त रहती है उसे गोल्डन रंग की प्रतिमा देकर सम्मानित किया जाएगा। टीबी मुक्त पंचायत पुरस्कार को संबंधित ग्राम पंचायत भवन में प्रदर्शित किया जाएगा।

आज सरकार निक्षय पोषण योजना के जरिए टीबी के मरीजों को हर महीने 1000 रुपये पोषण के लिए दे रही है, इसके साथ ही टीबी मरीजों को पहचान करने वालों को भी सरकार इनाम राशि दे रही है यह भी सरकार का टीबी मुक्त भारत कि दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। इसके साथ ही सरकार ने प्राइवेट डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर्स कि लिए टीबी मरीजों से सम्बंधित जो दिशा निर्देश जारी किये है ये कदम भी राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को मजबूती प्रदान करते हैं, इन दिशा निर्देशों के अंतर्गत हर प्राइवेट डॉक्टर्स को टीबी के मरीजों की जानकारी सरकार को देनी होगी। साथ ही साथ मेडिकल स्टोर वालों को टीबी मरीजों की दवाई से सम्बंधित लेखा-जोखा सरकार को देना होना। अगर इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता है तो दोषियों पर जुर्माना और सजा की कार्यवाही हो सकती है। इसके अलावा जरूरी है कि सरकार को टीबी मरीजों के इलाज से सम्बन्धित दवाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में प्राइवेट डॉक्टरों के लिये दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए जिससे कि ड्रग रेजिस्टेंस को रोका जा सके। इसके अलावा सरकार प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत लोगों और सामाजिक संस्थाओं को निक्षय मित्र बनाकर टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए प्रेरित कर रही है, जिससे कि टीबी के मरीजों को सही से पोषण और उनका सही से ख्याल रखा जा सके।

जो भी मरीज टीबी का पूर्ण इलाज लेकर ठीक हो जाता है, उसे टीबी चैम्पियन कहा जाता है। राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के अंतर्गत इन टीबी चैंपियन की भागीदारी से समाज और देश में टीबी के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है। भारत देश के हर शहर में जितने भी टीबी चैम्पियन हैं उनमे से जितने भी शिक्षित टीबी चैंपियंस हैं उनकी छंटनी की जानी चाहिए, इसके बाद सभी टीबी चैम्पियन को टीबी से संबंधित प्रशिक्षण जिला टीबी टीम द्वारा जिले में फिजिकल मोड में कराया जाना चाहिए, जिससे कि टीबी चैम्पियन को टीबी से सम्बंधित जानकारी हो सके। अगर टीबी चैम्पियन प्रशिक्षित और पढ़ा-लिखा होगा तो टीबी चैम्पियन घनी आबादी वाले क्षेत्रों, मलिन बस्तियों और अपने आसपास रहने वाले लोगों में जागरूकता अभियान के माध्यम से टीबी के मरीजों को खोजने में तेजी लाने में सरकार की मदद कर सकते हैं।

टीबी चैम्पियन टीबी पर लोगों में समग्र रुप से जागरूकता लाने में मदद कर सकते हैं और बीमारी से जुड़े समाज में टीबी मरीजों के साथ हो रहे भेदभाव को दूर कर सकते हैं। समाज में टीबी रोग को लेकर जो हीन भावना फैली हुयी है और जो लोग इस बीमारी को कलंक के रूप में देखते हैं, उनके अन्दर जनजागरुकता के माध्यम से टीबी चैम्पियन द्वारा इस भावना को खत्म कराया जा सकता है। टीबी चैम्पियन को टीबी मरीजों की कॉउंसलिंग के लिए एनटीईपी से जोड़ा जा सकता है और टीबी चैम्पियन को प्रोग्राम के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जाए या आर्थिक रुप से मजबूत किया जाये तो वह निश्चित रूप से टीबी चैम्पियन की टीबी प्रोग्राम के प्रति अधिक रूचि बढ़ेगी। समय-समय पर टीबी चैम्पियन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जिससे कि उनका अधिक मनोबल बढ़ेगा और प्रोग्राम के प्रति उसकी रूचि बढ़ेगी और समाज व देष में जागरुकता फैलाने में मदद मिलेगी।

इसके साथ ही टीबी की अत्याधुनिक जांचों का भी विकेन्द्रीकरण किया जाना चाहिए जो टीबी के सही इलाज के आवश्यक होती है। इसके साथ कल्चर और डीएसटी प्रयोगशालाओं का विस्तार भी मंडल स्तर किया जाना चाहिए जिससे कि मरीजों की कल्चर और डीएसटी की जानों अनावश्यक देरी न हो और समय पर मरीजों को उनकी जांचों का परिणाम मिल सके। देश की प्रत्येक स्वास्थ्य सुविधा पर टीबी की दवाइओं की उपलब्द्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए जिससे कि टीबी के मरीजों को भटकना न पड़े और टीबी के मरीजों विशेष देखभाल सुविधा प्रदान की जानी चाहिए जिससे कि टीबी मरीजों का राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम में विश्वास बढे।
 अगर देश का प्रधानमंत्री देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लिए प्रतिबध्दता व्यक्त करता है तो निश्चित रूप से आने वाले सालों में सरकार टीबी मुक्त भारत बनाने की दिशा में और कड़े कदम उठाएगी और ये कदम आने वाले सालों मे देश को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। इसके साथ ही राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। सरकार को टीबी मुक्त भारत की दिशा में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम की समय-समय पर कमियों का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए, जिससे कि इन कमियों को मजबूती में बदला जा सके और भारत देश में टीबी के अंतिम मरीज तक पहुंचा जा सके और टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

– ब्रह्मानंद राजपूत, आगरा
(Brahmanand Rajput) Dehtora, Agra
E-Mail- brhama_rajput@rediffmail.com
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