इसी प्रकार, भारत में विवाहों के मौसम में सम्पन्न होने वाले विवाहों पर किए जाने वाले भारी भरकम खर्च से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। वर्ष 2024 के, मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर के बीच, भारत में 50 लाख विवाह सम्पन्न हुए हैं। उक्त एक माह की अवधि के दौरान सम्पन्न हुए इन विवाहों पर भारतीय परिवारों द्वारा 7,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया है। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में सम्पन्न हुए विवाहों पर 5,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया था। उक्त वर्णित 50 लाख विवाहों पर औसतन प्रति विवाह 14,000 डॉलर, अर्थात लगभग 13 लाख रुपए की राशि का खर्च किया गया है एवं 50,000 विवाहों पर तो एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि का खर्च किया गया है।
भारत में विवाहों पर होने वाले भारी भरकम राशि के कुल खर्च में से प्रीवेडिंग फोटोग्राफी, वेडिंग फोटोग्राफी, पोस्टवेडिंग फोटोग्राफी पर लगभग 10 प्रतिशत की राशि का खर्च किया जाता है। विवाह के स्थान के चयन एवं साज सज्जा पर वर्ष 2023 में 18 प्रतिशत की राशि का खर्च किया गया था, जो वर्ष 2024 में बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया है क्योंकि भारतीय परिवारों द्वारा विवाह अब अन्य शहरों यथा गोवा, पुष्कर, उदयपुर एवं केरला जैसे स्थानों पर सम्पन्न किया जा रहे हैं। खानपान आदि पर कुल खर्च का लगभग 10 प्रतिशत भाग खर्च किया जा रहा है। म्यूजिक आदि पर लगभग 6 प्रतिशत की राशि का खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार, ज्वेलरी, ऑटो बाजार एवं सोशल मीडिया आदि पर भी अच्छी खासी राशि का खर्च किया जाता है। इससे, उक्त समस्त क्षेत्रों में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते हैं। अतः भारत में विवाहों के मौसम में होने वाले भारी भरकम राशि के खर्च से देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को तेज करने में सहायता मिलती है।
हाल ही में सम्पन्न हुए विवाहों के मौसम में भारतीय परिवारों द्वारा किए गए खर्च के चलते अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 की तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को गति मिलेगी जो द्वितीय तिमाही में गिरकर 5.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गई थी। विनिर्माण क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र में विकास दर अधिक रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। बंग्लादेश में राजनैतिक अस्थिरता के चलते रेडीमेड गार्मेंट्स के क्षेत्र में विनिर्माण इकाईयां बंद हो रही हैं एवं वैश्विक स्तर पर रेडीमेड गर्मेंट्स के क्षेत्र में कार्यरत सप्लाई चैन की इकाईयां बांग्लादेश के स्थान पर अब भारत से निर्यात को प्रोत्साहित कर रही हैं। जिससे भारत में रेडीमेड गर्मेंट्स एवं फूटवीयर उद्योग में कार्यरत इकाईयों को इन उत्पादों को अन्य देशों को निर्यात करने के ऑर्डर लगातार बढ़ रहे हैं।
उक्त कारकों के चलते भारत में परचेसिंग मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स नवम्बर 2024 माह के 58.6 से बढ़कर वर्तमान में 60.7 हो गया है। इस इंडेक्स के ऊपर जाने का आश्य यह है कि विनिर्माण के क्षेत्र में गतिविधियों में गति आ रही है। इसके साथ ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भी 6.21 प्रतिशत से घटकर 5.48 प्रतिशत पर नीचे आ गया है, अर्थात, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर भी नियंत्रण में आ रही है। जिससे आगे आने वाले समय में नागरिकों की खर्च करने की क्षमता में वृद्धि होगी। हाल ही के वर्षों में विनिर्माण उद्योग, सेवा क्षेत्र एवं गिग अर्थव्यवस्था में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हुए हैं और वर्ष 2005 के बाद से इस वर्ष विभिन्न कम्पनियों द्वारा सबसे अधिक नई भर्तियां, रिकार्ड स्तर पर, की गई हैं। इस सबके साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा फरवरी 2025 माह में मोनेटरी पॉलिसी में रेपो दर में कमी किए जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर अब नियंत्रण में आ रही है। इस वर्ष भारत में मानसून का मौसम भी बहुत अच्छा रहा है एवं विभिन्न फसलों की बुआई रिकार्ड स्तर पर हुई है जिससे इन फसलों की पैदावार भी रिकार्ड स्तर पर होने की सम्भावना है। किसानों के हाथों में अधिक पैसा आएगा एवं उनके द्वारा विभिन्न उत्पादों की खरीद पर भी अधिक राशि का खर्च किया जाएगा। कुल मिलाकर, इन समस्त कारकों का सकारात्मक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर होने जा रहा है और वित्तीय वर्ष 2024-25 की तीसरी एवं चोथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के तेज रहने की प्रबल सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक,
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