Monday, March 24, 2025
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स्ट्रीट लाइट में पढ़े, 6 विवाह किए और देश के सबसे बड़े उद्योगपति बने रामकृष्ण डालमिया

रामकृष्ण डालमिया ( ७ अप्रैल १८९३ — २६ सितम्बर १९७८) भारत के उद्योगपति थे जिन्होंने अपने भाई जयदयाल डालमिया के साथ डालमिया समूह की स्थापना की थी। उन्होंने स्वामी करपात्री के साथ मिलकर गौ हत्या एवं हिंदू विवाह अधिनियम के मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू से कड़ी टक्कर ली थी। देश के सभी बड़े नेताओं से उनके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे।

व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे. उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये. इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में गोवध पर कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे. उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया. गौवंश हत्या विरोध में 1978 में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

सेठ रामकृष्ण डालमिया  को नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया । दरअसल डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी । लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाई तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया और प्रतिशोध स्वरूप हिंदूवादी सेठ डालमिया को जेल में भी डाल दिया तथा उनके उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया ।

डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी करपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे.

करपात्री जी महाराज ने 1948 में एक राजनीतिक पार्टी राम राज्य परिषद स्थापित की थी. 1952 के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने 18 सीटों पर विजय प्राप्त की.

हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई. पंडित नेहरू हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी करपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे.

नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया. इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना. बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट को जांच के लिए सौंप दिया गया.

नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया. उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया. उन्हें अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया.

नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया. उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा. अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन साल कैद की सज़ा सुनाई गई.

1933 में एक चीनी मिल से इनका उदय हुआ था। भाग्य ने डटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए। उन्होंने सभी तरह के ब्यापार मे हाथ डाला और उसे सफलता के शिखर पर ले गये। उनका औद्योगिक साम्राज्य अविभाजित भारत के सभी भागों में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमानसेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे।

डालमिया नगर में 3,800 एकड़ में फैले परिसर में सीमेंट, चीनी, कागज, रसायन, वनस्पति, एस्बेस्टस शीट बनाने वाली इकाइयाँ थीं। इस समूह का अपना बिजली घर और रेलवे भी था। इसके अलावा इस समूह के पास त्रिची, चरखी दादरी (दिल्ली के पास), डंडोट (लाहौर) और कराची में सीमेंट के कारखाने भी थे। इसके अलावा पटियाला में एक बिस्किट कारखाना और बिहार के झरिया और बंगाल के रानीगंज क्षेत्रों में कोयला खदानें थीं।

राम कृष्ण डालमिया ने 18 साल की उम्र में जब कारोबार की दुनिया में कदम रखा, तो पिता विरासत में उनके लिए कुछ भी छोड़कर नहीं गए थे. इसके बाद अगले कुछ सालों में उन्होंने बड़ा उद्योग खड़ा कर लिया. जबकि उनकी शैक्षणिक योग्यता के बारे में बात करें तो प्राइमरी के बाद उनके स्कूल या कॉलेज जाने के कोई सबूत नहीं मिलते. लेकिन इन्होंने डालमिया ग्रुप की स्‍थापना की।

रामकृष्ण डालमिया का जन्म राजस्थान के चिड़ावा नामक एक कस्बे में एक गरीब अग्रवाल घर में हुआ था। यहीं उन्होंने मामूली शिक्षा प्राप्त की और मूलभूत अंकगणित, अंग्रेजी तथा महाजनी सीखी। जब वे केवल १८ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहान्त हो गया। इसके बाद पूरे परिवार को पालने का भार उनके कन्धों पर आ गया। उनके घर में उनकी पत्नी, उनकी माँ, दादी और छोटा भाई थे।

इस स्थिति में वे अपने मामा मोतीलाल झुनझुनवाला के पास कोलकाता चले गए थे। उनके मामा ने वहां पर बुलियन मार्केट में एक विक्रेता (सेल्समैन) का कार्य दिया। वे लन्दन के बुलियन एजेन्टों द्वारा भेजे गये टेलीग्राम को अपनी मामूली शिक्षा के वावजूद पढ़ लेते थे। इन कूट सन्देशों को पढ़ने का प्रभाव यह हुआ कि रामकृष्ण डालमिया में बुलियन व्यवसाय की बारीकियों से सम्बन्धित अन्तर्दृष्टि पैदा हो गयी। इससे उत्साहित होकर वे चाँदी के सट्टा बाजार में कूद पड़े। दुर्भाग्य से उन्हें इसमें वे सफल नहीं हुए। इसी के चलते उनके मामा से भी सम्बन्ध टूट गये।

डालमिया ने दलाली का काम शुरू कर दिया। उनके पास व्यापार के लिए अंतर्निहित मारवाड़ी कौशल और कुछ संपर्कों के अलावा कुछ नहीं था। हताश और यह जानने के लिए उत्सुक कि भाग्य ने उनके लिए क्या रखा है, वह एक दिन पंडित मोतीलाल बियाला (फतेहपुर, राजस्थान) के पास गए, जो एक संत स्वभाव के व्यक्ति थे, जो एक महान ज्योतिषी भी थे। उनकी कुंडली का अध्ययन करने के बाद, पंडित ने भविष्यवाणी की कि डेढ़ महीने के भीतर वह एक लाख रुपये कमा लेंगे। सच में, किस्मत ने वैसा ही किया जैसा कि भविष्यवाणी की गई थी और भाग्य के अजीब मोड़ से उन्होंने एक सर्राफा सौदे से 1,56,000 रुपये का लाभ कमाया, जो रद्द होने वाला था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई दिव्य हाथ खेल रहा था, जिसने उन्हें यह उदारता प्रदान की। इसके बाद वे अन्य वस्तुओं के सट्टे में भी हाथ आजमाने लगे। अपनी ईमानदारी और लगन से इन्होंने बहुत से कारोबारियों का हृदय जीत लिया। इसी समय उन्होंने कलकत्ता शेयर और स्टोक एक्सचेंज के बालदेव दासजी नाथानी के साथ साझेदारी की। नाथानी के आदर्शों ने डालमिया के व्यापार तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

सट्टा बाजार में सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने अपने व्यवसाय का विविधीकरण करने की सोची। इसी तारतम्य में वे एक दिन बिहार के दिनापुर गये और वहाँ ट्रेडिंग का काम शुरू किया। इसी समय उनकी दृष्टि उस क्षेत्र में एक चीनी मिल चालू करने की तरफ गयी जिसमें उनको अपार सम्भावना दिखी। इस विचार को कार्यरूप में बदलने के लिये उन्होंने आरा के प्रसिद्ध जमींदार निर्मल कुमार जैन के साथ हाथ मिला लिया। सन १९३२ में यह मिल बनकर तैयार हो गयी। यह मिल दिनापुर के निकट बिहटा में स्थापित हुई और इसका नाम ‘साउथ बिहार सुगर मिल्स लिमिटेड’ रखा गया। यह उस समय भारत की सबसे बड़ी चीनी मिल थी।

इसी बीच रामकृष्ण अपनी पुत्री रमा के लिये एक योग्य वर की तलाश में थे। अन्त में सन १९३२ में साहू शान्ति प्रसाद जैन से रमा का विवाह तय हुआ जो तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (यूपी) के नजीबाबाद के एक प्रसिद्ध जमींदार और वित्तपोषक थे। शान्ति प्रसाद वित्त, अर्थशास्त्र और वाणिज्य के मामलों में पारंगत थे। विवाह के बाद शान्ति प्रसाद ने ही एक साझेदार के रूप में रामकृष्ण डालमिया के बंगाल, बिहार और उड़ीसाके उद्योंगों का प्रबन्धन किया। इनके मध्यप्रान्त, बाम्बे प्रेसिडेन्सी और दक्षीणी भारत में फैले उद्योगों का प्रबन्धन श्रियान्स प्रसाद जैन ने किया जो शान्ति प्रसाद के बहनोई थे।

यह भी जान लें कि साहू शांति प्रसाद जैन, टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह के मालिक साहू जैन परिवार के सदस्य थे। वे रामकृष्ण डालमिया के दामाद थे. उन्होंने डालमिया-जैन समूह को भारत के सबसे बड़े व्यापारिक घरानों में से एक बनाने में मदद की. वे बेनेट कोलमैन कंपनी जिसके अंतर्गत टाईम्स ऑफ इंडिया समूह आता है उसके असली मालिक थे।

रामकृष्ण डालमिया ने अपने विकसित हो रहे व्यवसाय में अपने छोटे भाई जयदयाल डालमिया को भी लगा लिया। जयदयाल ने संसार भर से अद्यतन प्रौद्योगिकी और मशीनरी अपनी कम्पनियों में लगाया।

कुछ ही समय बाद रोहतास जिले के डेहरी-ऑन-सोन में एक दूसरी चीनी मिल आरम्भ की गयी। इसके बाद और कई चीनी मिलें आरम्भ की गयीं, जैसे सारण की ‘एस के जी सुगर लिमिटेड’, रामपुर की ‘राजा सुगर कम्पनी लिमिटेड’ (१९३२ में), रामपुर में ही ‘बुलन्द सुगर कम्पनी लिमिटेड’ , चम्पारन की एस के जी सुगर लिमिटेड आदि।

वे अत्यधिक आध्यात्मिक और दार्शनिक व  साहित्य सृजन से जुड़े रहना चाहते थे। उन्होंने सड़क के साइनबोर्डों को पढ़ने के बाद बंगाली सीखी और कलकत्ता की स्ट्रीट लाइटों के नीचे  अंग्रेजी सीखी, उन्होंने ए गाइड टू ब्लिस, फियरलेसनेस एंड डिवाइन लॉ जैसी कई किताबें लिखीं। उन्होंने सुशिक्षित महिलाओं से 6 विवाह किए।  उनमें से एक सरस्वती थी, जो उनकी छह पत्नियों में से चौथी थी, जिसके साथ उन्होंने अपना अधिकांश जीवन बिताया। उनकी अन्य पत्नियाँ, नर्बदा देवी, दुर्गा देवी, प्रीतम, आशा और दिनेश नंदिनी थीं, जिनमें से नर्बदा देवी और दुर्गा देवी गाँव की महिलाएँ थीं। नर्बदा देवी की मृत्यु तब हुई जब वे मात्र 16 वर्ष के थे।

उनके उद्योग के विस्तार का अगला चरण १९३० के दशक के मध्य में हुआ जब उन्होंने देश के विभिन्न भागों में सीमेन्ट के कारखाने स्थापित किये। भारत के विकास में यह उनकी सबसे बड़ा योगदान है। उनका उद्देश एसीसी लिमिटेड के एकाधिकार को समाप्त करना था जिसका उस समय सीमेन्ट के निर्माण में एकछत्र राज्य था। इनका सबसे बड़ा कारखाना डालमियानगर में था। दूसरा कारखाना कराची के शान्तिनगर में था। डाल्मिया सीमेन्ट के पास कुछ छोटे सीमेन्ट कारखाने भी थे, जिसमें से एक ड्न्डोट (अब पाकिस्तान में) में था और दूसरा मद्रास प्रेसिडेन्सी में डालमियापुरम नामक स्थान पर था। एक और कारखाना डालमिया दादरी (अब हरियाणा में) में था।

1936 में भारत इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के अधिग्रहण से शुरू करते हुए, डालमिया ने 1937 में नेशनल सेफ डिपॉजिट एंड कोल्ड स्टोरेज लिमिटेड (कलकत्ता, लखनऊ और कानपुर में विशाल लोहे की तिजोरियों और भंडारण सुविधाओं के साथ मजबूत कमरों की एक श्रृंखला) और बाद में 1943 में भारत फायर एंड जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड की स्थापना की, जो एक अग्रणी सामान्य बीमा कंपनी थी। उसी वर्ष उन्होंने भारत बैंक लिमिटेड की स्थापना की, जो स्थानीय बाजारों और उद्योगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वतंत्रता मिलने तक 292 शाखा कार्यालयों तक पहुंच गया।

1956 में, विवियन बोस जांच आयोग (नेहरू सरकार द्वारा नियुक्त) के निष्कर्षों के आधार पर, रामकृष्ण डालमिया पर धन के दुरुपयोग और शेयर बाजार में हेरफेर का आरोप लगाया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया। नतीजतन, उनकी कुछ कंपनियां जो विवादों में उलझी हुई थीं, उन्हें नुकसान हुआ। इससे भी बदतर, उन्होंने अपने स्टार प्रदर्शन करने वाले बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड और सवाई माधोपुर में सीमेंट फैक्ट्री खो दी – उन्हें उन्हें शांति प्रसाद जैन को बेचना पड़ा – जिसने एक उद्योगपति के रूप में उनके भविष्य को एक गंभीर झटका दिया।

कहा जाता था कि वो जिस कारोबार में हाथ डालते थे, वहां सफलता उनके कदम चूमती थी. डालमिया के पास अकूत संपत्ति थी और ताकत भी थी. महात्मा गांधी से लेकर मोहम्मद अली जिन्ना तक से उनके अच्छे संबंध थे।

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