Thursday, November 21, 2024
spot_img
Homeपत्रिकाकला-संस्कृतिहाड़ोती के वन्य जीवों से साक्षात करती प्रदर्शनी

हाड़ोती के वन्य जीवों से साक्षात करती प्रदर्शनी

कोटा /  वन्यजीव हमारी अमूल्य धरोहर हैं। देश में अनेक वन्य जीव प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं,और कई दुर्लभ हो गई हैं। ऐसे में हर वर्ष वन विभाग  इनके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलने हेतु एक अक्टूबर से वन्यजीव सुरक्षा सप्ताह मानता है। इसी ध्येय के लिए कोटा की कला दीर्घा में वन्यजीव प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है।
 हाड़ोती के विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले पैंथर, भालू, भेड़िया, टाईगर, उदबिलाव,मगरमच्छ, घड़ियाल, पक्षी, तितलियां, सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक परिवेश में शौकिया फोटोग्राफर्स द्वारा लिए गए छाया चित्रों से इन दिनों सजी है एक आकर्षक प्रदर्शनी कोटा के क्षत्रविलास उद्यान स्थित कला दीर्घा में। हो व्यक्ति और बच्चें वन्य जीवों से प्रेम करते हैं उनके लिए प्रातः 10.00 बजे से सांय 5. 00 बजे तक एक सप्ताह तक प्रदर्शनी लगी हैं।
प्रदर्शनी के साथ ही  ईश्वरमूल, मरोड़फली, केवड़ा, हड्डजोड़, सौंफ, तुलसी, वरूण, आरारोट आदि 57 प्रकार के औषधीय और 35 वर्ष पुराने बोनसाई पौधों और वन्य जीवों पर समय समय पर जारी डाक टिकट भी प्रदर्शित किए गए हैं। प्रथम दिन मंगलवार को विभिन्न विद्यालयों के करीब 350 विद्यार्थियों ने प्रदर्शनी का कोतूहल के साथ अवलोकन किया।
डीसीएफ अनुराग भटनागर ने  मौजूद दुर्लभ पेड़ जैसे जरूल, समुद्रफल आदि की पहचान कराई । उन्होंने बताया कि कबूतर (रॉकपिजन) विदेशी प्रजाति का पक्षी है जो हमारे यहां पाए जाने वाले देशी पक्षी गौरैया, रोबिन, बुलबुल, नीलकण्ठ, कठफोड़वा आदि पक्षियों का वास, भोजन और स्थल छीन रहा है जिससे ये चिड़ियाएं हमारे गांव और शहरों से विलुप्त होती जा रही हैं।
उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस ने बताया कि विदेशी पेड़ जैसे यूकेलिप्टस, लेन्टाना, पारथेनियम आदि इन्वेजिव पेड़-पौधे जंगल के लिए ठीक नहीं है, ये पेड़ जहां भी होते हैं वहां उसके आसपास अन्य देशी प्रजाति के पेड़-पौधों को पनपने नहीं देते। साथ ही, जमीन से पानी भी अधिक मात्रा में सोख लेते हैं। उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ हमारे देश के पेड़ों को लगाना चाहिए विदेशी प्रजाति के पेड़-पौधे जो इन्वेजिव है उन्हें नहीं लगाएं। उन्होंने गिद्ध के बारे में बताया कि ये स्केवन्जर है यानी मरे हुए पशुओं को खाकर हमारे पर्यावरण को साफ सुथरा रखते है जिससे मरे हुए जानवर में पाए जाने वाले विषाणु एन्थ्रेंक्स आदि वातावरण में न फैल सकें।
 प्रदर्शनी में ए. एच, जैदी, सुनील सिंघल, विजय माहेश्वरी, बनवारी यदुवंशी, रविंद्र तोमर, कार्तिक वर्मा, हर्षित शर्मा, तुषार, उप वन संरक्षक मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिर्जव मूथू एस,
मनोज शर्मा, बुधराम जाट, डी. के. शर्मा, हरफूल शर्मा, चंद्रशेखर श्रीवास्तव, अंशु शर्मा, कपिल खंडेलवाल, उर्वशी शर्मा, तपेश्वर भाटी, दिलावर कुरेशी, ओम प्रकाश बैरवा आदि वन्य जीव फोटोग्रफर्स के लगभग 250 चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। अधिकांश चित्र अभेड़ा, आलनिया, जवाहर सागर सेंकचुरी, भेंसरोड गढ़ सेंकचुरी, सोरसन संरक्षित क्षेत्र, मुकंदरा, चंद्रेसल, मानसगांव, गामछ, सावन भादो, गेपरनाथ, गरडिया महादेव, राजपुरा, जमुनिया, उदपुरिया क्षेत्रों के हैं।
वैद्य सुधींद्र शृंगी, पृथ्वी पाल सिंह द्वारा औषधीय पौधों और फिरोज खान द्वारा बोंसई पोधों की प्रदर्शनी लगाई गई। भुवनेश सिंघल, राकेश सोनी और फिरोज खान द्वारा डाक टिकटों में वन्य जीव प्रदर्शनी लगाई गई।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार