1947 में भारत के विभाजन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों में मारे गए हिंदुओं की संख्या का अनुमान 200,000 से 1 मिलियन के बीच है।
भारत के विभाजन के साथ, पाकिस्तान के दो हिस्सों का निर्माण हुआ: पश्चिमी पाकिस्तान (जो आज का पाकिस्तान है) और पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है)। विभाजन के परिणामस्वरूप, भारत का लगभग 23% भूभाग पाकिस्तान को चला गया।
इस भूभाग में पंजाब, बंगाल, सिंध, बलूचिस्तान, और उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत के हिस्से शामिल थे। विभाजन के साथ ही, लगभग 14 मिलियन लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए थे, जो विश्व इतिहास का सबसे बड़ा जनसंहार माना जाता है।
1947 में ब्रिटिश भारत का विभाजन कई जटिल कारणों का परिणाम था, जिसमें राजनीतिक, धार्मिक, और सांप्रदायिक तनाव शामिल थे। इन सब में मुहम्मद अली जिन्ना की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। जिन्ना ने अपने प्रारंभिक करियर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सहयोग किया था, और वे भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता के पक्षधर थे। लेकिन समय के साथ, जिन्ना की सोच में बदलाव आया, और वे मुसलमानों के अधिकारों के लिए एक अलग राज्य की वकालत करने लगे।
विभाजन का प्रमुख कारण ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ था, जिसे जिन्ना ने जोर-शोर से आगे बढ़ाया। यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, जो एक ही राजनीतिक ढांचे के अंतर्गत नहीं रह सकते। इस सिद्धांत का प्रमुख आधार धार्मिक विभाजन था, और इसका परिणाम एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र, पाकिस्तान के निर्माण में हुआ।
जिन्ना की भूमिका को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि वे कैसे और क्यों कांग्रेस से अलग हुए और मुस्लिम लीग के प्रमुख नेता बने। 1930 और 1940 के दशक में, जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन गति पकड़ रहा था, जिन्ना ने महसूस किया कि कांग्रेस पार्टी के भीतर मुस्लिमों की आवाज़ को पर्याप्त महत्व नहीं मिल रहा था। इसके अलावा, 1937 के प्रांतीय चुनावों के बाद, जिन्ना को विश्वास हो गया कि मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक अलग राष्ट्र की आवश्यकता है।
1940 में लाहौर प्रस्ताव के दौरान, जिन्ना ने पहली बार सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान की मांग की। इसके बाद मुस्लिम लीग ने यह साफ कर दिया कि वह एक अलग मुस्लिम राज्य के बिना किसी अन्य समाधान को स्वीकार नहीं करेगी।
ब्रिटिश सरकार भी, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की कमजोर स्थिति और भारत में बढ़ते राजनीतिक असंतोष के कारण, जल्दी से सत्ता हस्तांतरण करने के लिए तैयार थी। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए जिन्ना ने विभाजन की अपनी मांग को मजबूती से पेश किया।