घोड़े पर हौदा -हाथी पर जीन |
चुपके से भागा वारेन हेस्टिंग ||
यह कहावत आज भी बनारस (जिसे काशी या फिर वाराणसी के नाम से जानते हैं) क़ी गलियों में पुराने लोगों के बीच लोकप्रिय है |जिसके पीछे की एक कहानी है |कहते हैं के आज से लगभग दो सौ चालीस साल पहले काशी राज्य क़ी तुलना देश क़ी बड़ी रियासतों में क़ी जाती थी | भूगोलिक दृष्टिकोण से काशी राज्य भारत का ह्रदय प्रदेश था | जिसे देखते हुए उन दिनों ब्रिटिश संसद में यह बात उठाई गई थी कि यदि काशी राज्य ब्रिटिश हुकूमत के हाथ आ जाये तो उनकी अर्थ व्यवस्था तथा व्यापार का काफी विकास होगा |इस विचार विमर्श के बाद तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग को भारत पर अधिकार करने के लिये भेजा गया |
काशी राज्य पर हुकूमत करने के लिये अग्रेजों ने तत्कालीन काशी नरेश से ढाई सेर चीटीं के सर का तेल या फिर इसके बदले एक मोटी रकम क़ी मांग रखी | अंग्रेजों द्वारा भारत को गुलाम बनाने क़ी मंशा को काशी नरेश राजा चेत सिंह ने पहले ही भांप लिया था |अतः उन्होंने रकम तक देने से साफ मना कर दिया |परन्तु उन्हें लगा कि अंग्रेज उनके राज्य पर आक्रमण कर सकते हैं | इसी को मद्देनजर रखते हुए काशी नरेश ने मराठा,पेशवा एवम ग्वालियर जैसी कुछ बड़ी रियासतों से संपर्क कर इस बात कि संधि कर ली थी कि यदि जरुरत पड़ी तो इन फिरंगियों को भारत से खदेड़ने का सयुंक्त प्रयास करेंगे |
14 अगस्त 1781 ,दिन शनिवार ,जनरल वारेन हेस्टिंग एक बड़े सैनिक जत्थे के साथ गंगा जलमार्ग से काशी पहुंचा | उसने कबीरचौरा स्थित” माधव दास का बाग (” जिसे आज”स्वामी बाग” के नाम से जाना जाता है | जो डॉ शिव प्रसाद जिला चिकित्सालय के ठीक बगल में है ) को अपना ठिकाना बनाया|कहते हैं कि राजा चेत सिंह के दरबार से निष्काषित औसान सिंह नामक एक कर्मचारी ने कोलकाता (पुराना नाम कलकत्ता) जा कर वारेन हेस्टिंग से मिला और उसका विश्वासपात्र बन बैठा |जिसे अंग्रेजों ने “राजा” क़ी उपाधि से नवाजा भी था |उसी के मध्यम से अंग्रेजों ने काशी पहुँचने के बाद काशी नरेश राजा चेत सिंह को गिरफ्तार करने क़ी कूटनीतिक योजना बनाई |
दिन रविवार ,तारीख 15 , माह अगस्त (सन 1781) क़ी सुबह वारेन हेस्टिंग ने अपने एक अंग्रेज अधिकारी मार्कहम को एक पत्र दे कर राजा चेत सिंह के पास से ‘ढाई किलो चीटी के सर का’ तेल या फिर उसके बदले एक मोटी रकम लाने को भेजा | उस पत्र में हेस्टिंग ने राजा चेत सिंह पर राजसत्ता के दुरुपयोग एवम षड्यंत्र का आरोप लगाया था |पत्र के उत्तर में राजा साहब ने षड्यंत्र के प्रति अपनी अनभिज्ञता प्रकट क़ी | उस दिन अर्थात 15 अगस्त को राजा चेत सिंह एवम वारेन हेस्टिंग के बीच दिन भर पत्र व्यव्हार चलता रहा |
दूसरे दिन 16 अगस्त , सावन का अंतिम सोमवार ,हर वर्ष क़ी तरह राजा चेत सिंह अपने रामनगर किले क़ी बजाय शंकर भगवान क़ी पूजा अर्चना कराने गंगा के इस पार छोटे किले शिवाला (चेत सिंह घाट के ऊपर बने ) पर आए थे| इसी किले में उनकी तहसील का छोटा सा कार्यालय भी था |कहते हैं कि जिस समय काशी नरेश शिव पूजन से निवृत हो कर अपने दरबार में कार्य देख रहे थे , कि उसी समय गवर्नर वारेन हेस्टिंग क़ी सेना उनके दरबार में प्रवेश करने का प्रयास कर रही थी | परन्तु काशी के सैनिकों ने उन्हें सफल नहीं होने दिया ,तब एक अंग्रेज रेजीडेंट ने राजा साहब से मिलने क़ी इच्छा जाहिर क़ी और कहलवाया कि वह गवर्नर साहब का एक जरुरी सन्देश ले कर आया है | किन्तु राजा साहब के यह सन्देश प्रकट कराने पर कि वह तो आया है पर इतनी सेना साथ क्यों लाया है ? इसके जवाब में रेजिडेंट ने यह कहकर नई चल चली कि सेना तो वैसे ही उसके साथ चली आई है, किले में केवल हम दो-तीन अधिकारी ही आएंगे | इस पर राजा साहब क़ी आज्ञा पर उन्हें अन्दर किले में भेज दिया गया | बातों ही बातों में दोनों ओर से तलवारें खिंच गई, इसी दौरान एक अंग्रेज अधिकारी ने राजा चेत सिंह को लक्ष्य कर बन्दुक तानी ,जब तक उसकी अंगुली बन्दुक के स्ट्रिंगर पर दबाती कि उसके पहले काशी के महशूर गुंडे बाबू नन्हकू सिंह क़ी तलवार के एक ही वार में उस अंग्रेज अधिकारी का सर काट कर जमीन पर आ गिरा,चारों ओर खून ही खून बिखर गया,जिसे देख कर खून से सने अंग्रेज अधिकारी चीखते-चिल्लाते उलटे पावं बाहर भागे |
उधर किले के बाहर चारों तरफ छिपे किन्तु सतर्क काशी के बीर रण बांकुरों ने देख कर यह समझ लिया कि अन्दर किले में मार -काट मच गई है | फिर क्या था सभी बाज़ क़ी तरह गोरी चमड़ी वालों पर टूट पड़े , लेकिन किस ने किस को मारा यह तो आज तक पाता नहीं चल सका |परन्तु शिवाला घाट पर बने उस किले के बाहर लगे शिलापट्ट पर अंग्रेजों ने यह जरुर अंकित करवा दिया कि इसी जगह पर तीन अंग्रेज अधिकारियों लेफ्टिनेंट स्टाकर ,लेफ्टिनेंट स्काट एवम लेफ्टिनेंट जार्ज सेम्लास सहित लगभग दो सो सैनिक मारे गए थे |
इस घटना के तुरन्त बाद राजा कशी नरेश के मंत्री बाबू मनियार सिंह ने गवर्नर वारेन हेस्टिंग को गिरफ्तार करने क़ी सलाह राजा साहेब को दी ,लेकिन उनके दीवान बक्शी सदानंद ने उन्हें ऐसा कराने से मना कर दिया |उधर वारेन हेस्टिंग अपने पकड़े जाने के भय से “माधव दस बाग “के मालिक पंडित बेनी राम से चुनर जाने के लिये सहायता मांगी | इसी बीच उसे पता चल गया कि राजा साहब क़ी एक बड़ी फौज उसे गिरफ्तार कराने इसी तरफ आ रही है | कहते हैं कि अपनी गिरफ्तारी के डर से वारेन हेस्टिंग उसी माधव दास बाग के भीतर बने एक कुँए में कूद गया | जब रात हुई तो उसने स्त्री का भेष धारण कर चुनार क़ी ओर कूच कर गया |
राजा चेत सिंह के दीवान बक्शी सदानंद क़ी यह सलाह कि वारेन हेस्टिंग को न गिरफ्तार किया जाय , भारत के लिये दुर्भाग्य पूर्ण रहा |अगर उस दिन वारेन हेस्टिंग काशी नरेश क़ी सेना के हाथों गिरफ्तार कर लिया गया होता तो शायद अंग्रेजों के पावं भारत में ही ज़माने नही पाते |मजे क़ी बात तो यह है कि अंग्रेज इतिहासकारों ने काशी नरेश राजा चेत सिंह को भगोड़ा साबित किया है ,और वहीँ दूसरी तरफ शिवाला घाट पर जो शिलापट्ट लगवाया उसमे साफ-साफ शब्दों में लिखवाया कि “इसी जगह उनके तीन अधिकारियों सहित दो सौ सैनिक मारे गए थे |जिसे आज भी वहाँ पर देखा जा सकता है | वे वारेन हेस्टिंग के भगोड़ा होने क़ी बात पर चुप्पी साध गए|अगर इस घटना पर विचार करें तो स्वतंत्रता आन्दोलन का पहला बिगुल काशी में ही बजा था | लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उस घटना क़ी याद में आज तक वहाँ पर कोई स्मारक तक नहीं बन सका है |हाँ इस दिन यानि 16 अगस्त को जिन परिवार के पूर्वजों ने स्वतंत्रता के लिये उस दिन अपनी क़ुरबानी दी थी उनके परिजन जरुर एक ” दीपक ” उनकी याद में जलाते हैं |उस गौरव गाथा को आज भी इस प्रकार गया जाता है ,
घोड़े पर हौदा ,
हाथी पर जीन |
चुपके से भागा,
वारेन हेस्टिंग…||
डॉ प्रदीप श्रीवास्तव
संपादक ,
प्रणाम पर्यटन
(हिंदी त्रैमासिक पत्रिका)
537F/64A,इन्द्रपुरी कालोनी
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निकट भिठोली तिराहा
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