Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeश्रद्धांजलिअसम में तीस सालों में 32 पत्रकार मार दिए गए

असम में तीस सालों में 32 पत्रकार मार दिए गए

पिछले तीस वर्षों में असम के 32 पत्रकार या तो मार दिए गए, या ऐसे गायब हुए कि कभी वापस नहीं लौटे। इन 32 पत्रकारों के परिवारों की जिंदगी असम के उग्रपंथियों, लैंड माफिया या तस्करों के चलते तबाही के रास्ते पर चली गई। इन सभी परिवारों का दुख दिसम्बर 2017 में बांटने की कोशिश की असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने और हर परिवार को पांच पांच लाख रुपए की मदद दी।

स्क्रॉल डॉट इन के अनुभव सैकिया ने इन सभी पत्रकारों की जिंदगी और उनके परिवारों के दुख पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिससे पता चलता है कि कब कब कौन कौन से स्थानीय मीडिया हाउस के किस किस पत्रकार, रिपोर्टर या संपादक को गलत कामों के विरोध में अपनी आवाज उठाने का खामियाजा अपनी जान देकर गंवाना पड़ा। आलम ये है कि अगर उनके परिवार केस भी लड़ना चाहें तो डर के मारे कोई वकील उनकी पिटीशन तक तैयार नहीं करता। नॉर्थ ईस्ट टाइम्स के गोसाईं गांव के कॉरस्पोंडेंट थे पंजतन अली, ये कस्बा जिला कोकराझार में है। कुछ नकाबपोश आकर उस 21 साल के नौजवान को एक दिन उठा ले गए, और फिर कभी उसके पिता ने उसे नहीं देखा। आज पिता दुलालुद्दीन दिल्ली में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करके ना सिर्फ अपनी जान बचाए पड़े हैं, बल्कि केस की तारीखों के लिए पैसा भी इकट्ठा कर रहे हैं।

स्क्रॉल की इस रिपोर्ट में कई पत्रकार परिवारों की कहानिया दी गई हैं, कोकराझार के ही असमिया अखबार में काम करने वाले 29 साल के जगजीत सैकिया को बोड़ो उग्रवादियों ने मार दिया, गम में पिता भी हर्ट अटैक से मर गए। अब घर में अकेली बूढ़ी मां और बेरोजगार नाबालिग बेटा है। जगजीत की विधवा पत्नी को ये रकम मिली है, ऐसे में कल को बूढी मां को दिक्कत भी आ सकती है।

एक बोडो चैनल के एडिटर को भी कोकरराझार में 2008 में ऑफिस के बाहर गोली मार दी गई, बोडोसा नारजरी के तीन बेटियां थी, बड़ी मुश्किल से मां उन्हें पाल रही थी। अब असम सरकार की पांच लाख की मदद से उन्हें राहत मिली है। 2008 में स्वतंत्र आवाज के एडिटर नूरूल हक को घर लौटते वक्त लैंड माफिया ने मौत की नींद सुला दिया, बेदर्दी से शरीर का काफी मांस भी निकाल लिया था। अब जाकर उनके बेटे को पहली बार आर्थिक सहायता मिली है।

तमाम केसेज की ढंग से जांच नहीं हुई तो कई केस बीसियों साल से अदालतों में घिसट रहे हैं। 1996 में गुवाहाटी में ‘असमिया प्रतिदिन’ के एग्जिक्यूटिव एडिटर पराग कुमार दास का मर्डर हुआ, परिवार को आज तक फैसले का इंतजार है। आप इन पत्रकारों की कहानियां विस्तार से समझने के लिए स्क्रॉल डॉट इन की ये रिपोर्ट नीचे दी हेडिंग पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

साभार-http://samachar4media.com/ से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार