· दीक्षा के 50 वर्ष पूरे होने का पर्व संयम स्वर्ण महोत्सव के रूप पूरे एक वर्ष तक चलेगा।
· मातृभाषा में शिक्षा और हथकरघा के माध्यम से स्वदेशी क्रांति का आरम्भ
· ऐसे संत जो प्रतिपल जनहित, राष्ट्रहित और भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए सोचते हैं
रायपुर: दिगंबर जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा के 50 वर्ष सन 2018 में पूर्ण हो रहे हैं इस पावन पर्व को देश-विदेश में “संयम स्वर्ण महोत्सव” के रूप में मनाया जाएगा जो बुधवार, 28 जून 2017 से आरंभ हो रहा है, जिसका समापन जून 2018 में होगा । ज्ञातव्य है कि 2017 में ही महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए स्वदेशी और जन जागरण के चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं.
71 वर्षीय आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ऐसे दिगंबर जैनाचार्य हैं जो दीक्षा ग्रहण कर आधी शताब्दी से अपनी तपसाधना के साथ-साथ मानव कल्याण के कार्य कर रहे हैं और लाखों करोड़ों लोगों की श्रद्धा के केंद्रबिंदु हैं. इस महोत्सव में साल भर मानव कल्याण के अनेक कार्य, सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रम देश के अनेक गांवों, नगरों में आयोजित किए जाएंगे।
प्रमुख कार्यक्रम 28, 29 और 30 जून 2017 को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ (जिला राजनांदगांव) में होंगे जहां आचार्य श्री विराजित हैं. डोंगरगढ़ में देश विदेश से करीब 1 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है .
जो श्रद्धालु 28 जून को डोंगरगढ़ में होने वाले आयोजनों के साक्षी नहीं बन पायेंगे वे अपने गाँवों और शहरों में इस महोत्सव की तैयारियाँ कर रहे हैं। इस दिन सभी प्रमुख जैन मंदिरों से सुबह प्रभात फेरी निकाली जाएगी एवं आचार्यश्री की विशेष संगीतमय पूजन का आयोजन होगा। नगर-नगर वृक्षारोपण किया जाएगा, अस्पतालों/अनाथालयों/वृद्धाश्रमों में फल एवं जरूरत की सामग्री का वितरण, जरूरतमंदों को खाद्यान्न, वस्त्र वितरण आदि का आयोजन किया जाएगा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज :
आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को ‘शरद पूर्णिमा’ के पावन दिन कर्नाटक के बेलगाम जिले के सदलगा ग्राम में हुआ था। 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने पिच्छि – कमण्डलु धारण कर संसार की समस्त बाह्य वस्तुओं का परित्याग कर दिया था। और दीक्षा के बाद से ही सदैव पैदल चलते हैं, किसी भी वाहन का इस्तेमान नहीं करते हैं. साधना के इन 49 वर्षों में आचार्यश्री ने हजारों किलोमीटर नंगे पैर चलते हुए महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में अध्यात्म की गंगा बहाई, लाखों लोगों को नशामुक्त किया है और राष्ट्रीय एकता को मजबूती प्रदान की है. जब वे पद विहार करते हैं, गाँव-२ में हर वर्ग के लोगों का ऐसा हुजूम उमड़ पड़ता है और लगता है मानो स्वयं भगवान महावीर स्वामी चल रहे हों. पैरों में छाले पड़ें या फिर काँटे चुभें पर इस महासंत की यात्रा अनवरत जारी रहती है, वे कभी किसी को बताते नहीं कि कब और कहाँ के लिए पद विहार करेंगे. वे सच्चे अर्थों में जन-जन के संत हैं.
आचार्य श्री विद्यासागर जी से प्रेरित उनके माता, पिता, दो छोटे भाई अनंतनाथ व शांतिनाथ और दो बहन सुवर्णा और शांता ने भी दीक्षा ली।
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज लकड़ी के तख़्त पर अल्प समय के लिए ही सोते हैं, कोई बिछौना नहीं, न ही कोई ओढ़ना और रोजाना अलसुबह 2 बजे उठ जाते हैं। वे जैन मुनि आचार संहिता के अनुसार 24 घंटे में केवल एक बार पाणीपात्र में आहार (भोजन) और एक बार ही जल ग्रहण करते हैं, उनके भोजन में हरी सब्जी, दूध, नमक और शक्कर नहीं होते हैं।
जन कल्याण और स्वदेशी के प्रहरी
आचार्यश्री की प्रेरणा से देश में अलग-अलग जगह लगभग 100 गौशालाएं संचालित हो रही है ये गौशालाएं मुख्य रूप से गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में है।उनकी प्रेरणा से अनेक तीर्थ स्थानों का पुनरोद्धार हुआ है और कला और स्थापत्य से सज्जित नए तीर्थों का सृजन हुआ है। सागर में भाग्योदय तीर्थ चिकित्सालय जैसा आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल संचालित है.
स्त्री शिक्षा एवं मातृभाषा में शिक्षा के पुरजोर समर्थक
गुरुदेव की पावन प्रेरणा से उत्कृष्ट बालिका शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रतिभास्थली नाम के आवासीय कन्या विद्यालय खोले जा रहे हैं, जहाँ बालिकाओं के सर्वांगीण विकास पर पूरा ध्यान दिया जाता है, जिसका सुफल यह है कि सीबीएसई से संबद्ध इन विद्यालयों का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत होता है और सभी छात्राएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होती हैं. विशेष बात यह है कि इन विद्यालयों में अंग्रेजी की धारा के विपरीत हिंदी माध्यम से शिक्षा दी जा रही है, जैसे विश्व के सभी विकसित देशों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होती है. आचार्य श्री का मानना है कि मातृभाषा में शिक्षा होने से बच्चों का मस्तिष्क निर्बाध रूप से पूर्ण विकसित होता है, उनमें अभिनव प्रयोग/नवाचार (इनोवेशन) करने की क्षमता और वैज्ञानिक दृष्टि विकसित होती है. सभी प्रमुख शिक्षाविद भी यही कह रहे हैं और यूनेस्को भी मातृभाषा में शिक्षा को मानव अधिकार मानता है.
हथकरघा से स्वाबलंबन और स्वदेशी
गुरुदेव की प्रेरणा से खादी का पुनरोद्धार हो रहा है और जगह-२ हथकरघा केंद्र खोले जा रहे हैं, जहाँ उच्चस्तरीय कपड़े का निर्माण किया जा रहा है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल रहा है और स्वदेशी का प्रसार हो रहा है. यह हस्त निर्मित कपड़ा पूर्णतः अहिंसक एवं त्वचा के अनुकूल होता है.