Thursday, December 26, 2024
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देशद्रोह के लिए उकसाने वालों की सुरक्षा पर सरकार 560 करोड रु.खर्च करती है

कश्मीर का मामला देख रहे गृह मंत्रालय के जानकारों से पिछले दिनों जो खबर मिली वह चौंकाने वाली थी। उन्होंने वहां के पृथकतावादी नेताओं और उनकी दोगली नीतियों से जिस तरह से नकाब हटाया वह गजब का था। सोचता रहा कि उन पर कौन सा मुहावरा लागू करुं। ‘गुलगुले खाएं और गुड़ से परहेज’ या ‘भगत सिंह पड़ौसी के यहां ही पैदा होना चाहिए’। अथवा ‘तुम सांप के बिल में हाथ डालो और मैं मंत्र पढ़ता हूं।’ कश्मीर के पृथकतावादी नेता किस तरह से वहां हिंसा भड़काने और अशांति फैलाने में अपना योगदान दे रहे हैं वह किसी से छिपा नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि घाटी के आम निर्दोष नागरिक की जिंदगी असुरक्षित बनाते आए ये नेता खुद उसी सरकार की सुरक्षा के साथ में जी रहे हैं जिन्हें वे जब तब हटाए जाने की मांग करते आए हैं।

हाल ही में जम्मू कश्मीर विधान परिषद में भाजपा सदस्य अजात शत्रु ने जब यह खुलासा किया कि पृथकतावादियों को विधायकों और विधान परिषद की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षा मिली है तो पूरा सदन अवाक रह गया। जब उन्होंने बताया कि इन लोगों की सुरक्षा में सालाना 560 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं तो उपसभापति जहांगीर मीर के मुंह से यह शब्द निकल गया कि यह सिर्फ इस देश में ही हो सकता है। मालूम हो कि राज्य के 73,363 पुलिसकर्मियों में से 18,000 इन लोगों की सुरक्षा के लिए तैनात है। राज्य का सर्व शिक्षा अभियान का बजट 484 करोड़ है जबकि उससे कहीं ज्यादा पैसा पृथकतावादियों की सुरक्षा पर खर्च हो रहा है। उनके घर पर सुरक्षा बल तैनात किए जाने के अलावा उनको प्रदान किए गए वाहनों और पेट्रोल का खर्च भी सरकार को उठाना पड़ता है। जब वे पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलने के लिए दिल्ली आते हैं तो उनके हवाई टिकट, होटल, खाने पीने का खर्च भी राज्य सरकार उठाती है। राज्य में सरकार ने सुरक्षा के लिए विभिन्न होटलों में जो 500 कमरे ले रखे हैं उनमें से तमाम में यह नेता भी रुकते हैं।

अगर दूसरे शब्दों में कहे तो यह कि लोग सुरक्षा के गुलगुले तो खाना चाहते हैं पर उन्हें सुरक्षा बलों से परहेज है। बुरहान वानी के मारे जाने के बाद उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ने वाले व युवाओं को उसको आदर्श मानने के लिए ये अलगाववादी प्रेरित कर रहे हैं। ये पृथकतावादी नेता खुद यह नहीं चाहते कि उनके बच्चे घाटी के आतंक से जुडकर अपना भविष्य बरबाद करे। वे सुरक्षा बलों की गोलियों का शिकार बने या उन पर पत्थर फेंके।

हकीकत है कि 2010 में सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने का तरीका ईजाद करने वाले मसरत आलम ने खुद अपने बेटे को घाटी से बाहर रखा हुआ है। उसके अपने बच्चे दिल्ली में पढ़ रहे हैं। जब कि उसने हिंसा का जो दौर शुरु करवाया, उसके कारण 2010 में ही 110 युवा मारे गए थे। वह आल पार्टी हुर्रियत कान्फ्रेंस के अध्यक्ष सैयद अली शाह गिलानी का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता है। इन नेताओं की असलियत जानने के लिए कश्मीर घाटी जाने की जरुरत नहीं है। अगर दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में चले जाएं तो वह आपको मिनि कश्मीर लगेगा। वहां न सिर्फ दिल्ली में व्यापार या नौकरी कर रहे कश्मीर मुसलमान रहते हैं बल्कि सैयद अली शाह गिलानी सरीखे नेताओं ने वहां घर ले रखे हैं। सर्दियों में अधिकांश समय वे यहीं बिताते हैं। आतंकी बुरहान की कब्र पर जमा हुए लोगों को अपने आडियो संदेश के जरिए जिहाद और इस्लाम का पाठ पढ़ाने वाले कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के तीन बेटों व तीन बेटियों में एक भी आतंकी या अलगाववादी सियासत का हिस्सा नहीं है। अलबत्ता, उनका एक दामाद अल्ताफ शाह जरुर हुर्रियत की गतिविधियों में हिस्सा लेता है। गिलानी का बड़ा बेटा डा. नईम गिलानी एक दशक तक पाकिस्तान में रहने के बाद करीब छह साल पहले अपनी पत्नी संग कश्मीर लौटा और अब दोबारा विदेश जा चुका है। दूसरा बेटा जहूर गिलानी अमेरिका में है, जबकि छोटा बेटा नसीम गिलानी शेरे कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी संस्थान श्रीनगर में कार्यरत है। एक बेटी जेद्दाह में अध्यापिका है जबकि एक अन्य दिल्ली में रहती है और उसके पति एक प्रतिष्ठित पत्रकार हैं। श्रीनगर में उनकी सबसे बड़ी बेटी अपने परिवार के साथ रहती है। उसके पति अल्ताफ शाह व्यवसायी है और अक्सर हुर्रियत की सियासत में रुचि लेते हैं। गिलानी का एक नाती प्रतिष्ठित निजी एयरलाइंस में काम करता है। कश्मीर बनेगा पाकिस्तान और कश्मीर में शरियत लागू करने की पक्षधर महिला अलगाववादी आसिया अंद्राबी ने हालांकि स्वेच्छा से एक आतंकी कमांडर से शादी की थी। उनके पति डा. कासिम फख्तु जेल में है, लेकिन बड़ा बेटा बिन कासिम वर्ष 2011-12 के दौरान चुपचाप मलेशिया अपनी मौसी के पास पहुंच गया। वह इस समय वहां इस्लामिक यूनिवर्सिटी में सूचना प्रौद्योगिकी में डिग्री हासिल कर रहा है।

क्रिकेट का शौकीन बिन कासिम सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है। छोटा बेटा मुहम्मद बिन कासिम श्रीनगर में ही अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा है। आसिया अंद्राबी के अधिकतर रिश्तेदार पाकिस्तान, सउदी अरब और इंग्लैंड में अच्छी जिंदगी गुजार रहे हैं। उसका एक भतीजा जुलकरनैन कथित तौर पर पाकिस्तान की सेना की अधिकारी है जबकि एक अन्य भतीजा इरतियाज उन नबी एयरोनाटिकल इंजीनियर है। उसका एक रिश्तेदार पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में लेक्चरर है।

हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज, मौलवी उमर फारुक की बहन राबिया फारुक अमेरिका में डाक्टर है, जबकि गिलानी के करीबियों में शुमार गुलाम नबी सुमजी का बेटा नई दिल्ली में मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद अपना भविष्य संवार रहा है। कट्टरपंथी मुहम्मद अशरफ सहराई का बेटा दुबई में कंप्यूटर इंजीनियर है। मास मूवमेंट की प्रमुख फरीदा बहनजी का एक बेटा डाक्टर है और वह दिल्ली के एक नामी अस्पताल में कार्यरत है, जबकि छोटा बेटा श्रीनगर में एक स्कूल का संचालक है।

हिज्ब कमांडर सलाहुद्दीन का एक बेटा सईद मुईद श्रीनगर में एक सरकारी विभाग में आईटी इंजीनियर है। वह गत फरवरी माह में ईडीआइ पांपोर हमले में सुरक्षाबलों द्वारा सुरक्षित बचाया गया था, जबकि एक बेटा अब्दुल वाहिद डाॅक्र है और एक बेटा सौरा में कार्यरत है और एक अन्य कृषि विभाग में।

आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि घाटी के लोग इस सच से वाकिफ होने के बावजूद इन लोगों के झांसे में आकर अपने बच्चों की जिंदगी क्यों बरबाद करने पर तुले हुए हैं। उन्हें तो अपने इन नेताओं से पूछना चाहिए कि हमारे बच्चों को हिंसा के लिए उकसाने वाली भीड़ में तुम्हारे बच्चे क्यों नहीं होते। क्यों कोई बुरहान वानी किसी जीलानी या अंद्राबी के यहां पैदा नहीं हेाता? कुछ भी कहो ये लोग अपने ही लोगों को इतना बहकाने में तो कामयाब हो ही गए है कि तुम सांप के बिल में हाथ डालों और मैं मंत्र पढ़ता हूं।

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