सोनी टीवी पर आनेवाला ‘कपिल शर्मा का शो’ अब संवेदनहीन भोंडे प्रहसन की सारी हदें पार कर गया। शो में मनोज वाजपेयी अपनी फिल्म ‘बुधिया सिंह: बॉर्न टू रन’ के प्रमोशन के लिए आये थे। मनोज के इंटरव्यू के बाद उस बच्चे को भी पेश किया गया जिसने फिल्म में उड़ीसा के आदिवासी बाल एथलीट बुधिया सिंह का किरदार निभाया है।
बुधिया का दीन-हीन हमशक्ल खोजना मुश्किल काम था। कास्टिंग टीम ने हज़ारों बच्चो के ऑर्डिशन के बाद बड़ी मेहनत से एक चेहरा ढूंढा। पर्दे के बुधिया की कहानी भी असली बुधिया जैसी ही है। गरीब आदिवासी है, पिता नहीं है, अपनी मां और मामा के साथ रहता है। बच्चे का नाम मयूर है, लेकिन ना तो ठीक से नाम बता पाता है और ना उम्र। सिर्फ हां और ना में जवाब देता है।
निरीह बच्चे की चुप्पी पर शो में लगातार ठहाके लगते रहे। बच्चे के बाद कैमरे पर उसके मां और मामा की पेशी हुई। दोनो ही निहायत ही गरीब और सहमे हुए। कपिल शर्मा ने मयूर की मां से कहा- आपसे से अच्छा तो आपका बेटा है, कम से कम हां-ना तो बोलता है। ना बोलने पर पूरे परिवार का जमकर मजाक उड़ाया गया। मयूर की छोटी बहन तक के बारे में कहा गया- अच्छा आपलोगों की तरह यह भी नहीं बोलती। सेट की लगभग अंधा कर देने वाली लाइटिंग के बीच गांव या कस्बे से आया एक निरीह परिवार चुपचाप इस तरह खड़ा रहा जैसे रैगिंग चल रही हो।
हरेक चैनल में एक S&P (stander and practices) डिपार्टमेंट होता है, जिसका काम यह देखना होता है कि कोई भी शो संवेनशीलता के किसी भी मापदंड का अतिक्रमण ना करे। ऐसा लगता है कि ऑन एयर करने से पहले S&P ने उसे प्रिव्यू ही नहीं किया। अगर किया तो यह बात उनकी समझ क्यों नहीं आई कि शो में मयूर के पूरे परिवार से जिस तरह से बात की गई वो निहायत ही क्रूर और अशोभीनय है।
बॉलिवुड आजकल बायोपिक का खजाना खोदने में जुटा है। बड़े और संपन्न लोगों के बाद अब नायक बनने की बारी मांझी और बुधिया जैसे गरीब लोगो की आई है। फिल्म का नाम पहले दुरंतो था। इसी नाम से इसे सेंसर सार्टिफिकेट भी मिला है, लेकिन बुधिया की पहचान को भुनाने के चक्कर में बाद में इसका नाम बदला गया। बुधिया सिंह वही बच्चा है, जिसके पीछे 10 साल पहले देश के सारे न्यूज़ चैनल हाथ धोकर पड़े थे। छह साल के विलक्षण एथलीट के रूप में उसकी कहानी घर-घर पहुंची थी।
फिल्म रिलीज़ होने की बारी आई तो मीडिया ने जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे बुधिया सिंह को फिर से ढूंढ निकाला। बुधिया का कोच मर चुका है। सरकार पढ़ाई का खर्च तो उठा रही है, लेकिन ट्रेनिंग ठीक से नहीं हो पा रही है। एक बड़ा एथलीट बनने का सपना लगभग मर चुका है। फिल्म के बारे में मीडिया ने पूछा तो बुधिया ने बड़ा मार्मिक बयान दिया- मुझे पता नहीं था कि मैं बचपन में इतना बड़ा आदमी था।
राकेश कायस्थ वरिष्ठ पत्रकार हैं
(साभार: राकेश कायस्थ के फेसबुक पेज से )