Sunday, November 24, 2024
spot_img
Homeपाठक मंचभारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के छात्रों के केरियर में अंग्रेजी बनी रोड़ा!

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के छात्रों के केरियर में अंग्रेजी बनी रोड़ा!

सेवा में,
श्री प्रकाश जावड़ेकर जी
मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार
सी विंग, शास्त्री भवन, नई दिल्ली-110001

महोदय,

आपका ध्यान दिनांक 5.8.2016 की ‘‘हिन्दी पत्रिका’’, भोपाल तथा दिनांक 5.8.2016 के अंग्रेजी दैनिक-पत्र ‘हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित समाचार की ओर ध्यान दिलाते हुए निवेदन कि विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से छात्रों को निकाला जा रहा है। अंग्रेजी में कमजोर होने के कारण भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से 30, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से 12, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर, से 06 भारतीय प्रौद्याोगिकी संस्थान, गुवाहाटी से 5 और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की से 10 छात्रों को निष्कासित किया गया है।

भारत जैसे देश में जहां की राजभाषा, जन भाषा, सम्पर्क भाषा हिंदी है, किन्तु स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी हम छात्रों को उनकी मातृभाषा, संघ की राजभाषा हिन्दी में अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) की शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। स्वतंत्र देश के लिए इससे बढ़कर लज्जा की बात क्या हो सकती है। हम इंजीनियरी, कृषि और चिकित्सा आदि की शिक्षा हिन्दी में देने सम्बन्धी संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट, खंड-8, भेजी गई सिफारिश सं. 33 पर पारित राष्ट्रपति के आदेशों की अवहेलना कर रहे है। (प्रतिलिपि संलग्न है)

यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल की स्थापना, मध्यप्रदेश शासन ने विभिन्न विधाओं के समस्त ज्ञान को हिंदी माध्यम से देने के उद्देश्य से की है। विश्वविद्यालय में चिकित्सा शिक्षा को छोड़कर, अभियांत्रिकी, विधि, प्रबंधन एवं कृषि आदि की शिक्षा हिंदी माध्यम से दिया जाना प्रारंभ हो गया है। भारतीय चिकित्सा परिषद से मंजूरी मिलने के बाद चिकित्सा शिक्षा (एम.बी.बी.एस.) हिंदी में दिया जाना शुरू कर दिया जायेगा।

यह सर्वविदित है कि जो छात्र अभियांत्रिकी के अध्ययन के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में प्रवेश लेते हैं, उन्हंे प्रवेश परीक्षा (जेईई), में दोनों भाषाओं (हिंदी/अंग्रेजी) के साथ-साथ प्रादेशिक भाषाओं जैसे गुजराती, मराठी आदि में परीक्षा देने की छूट होती है। अतः प्रवेश परीक्षा में तो वे हिन्दी अथवा मातृभाषा के माध्यम के द्वारा उत्तीर्ण होकर आते हंै, परन्तु बाद में अध्ययन, अंग्रेजी में करना पड़ता है। अतः ग्रामीण परिवेश, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, वंचित वर्ग आदि के छात्रों को अंग्रेजी का ज्ञान कम होने के कारण इन प्रौद्योगिकी संस्थानों से बीच में ही निकाल दिया जाता है, जैसाकि उपरोक्त संस्थानों द्वारा किया गया है। यह उनके साथ घोर अन्याय है।

अतः मेरा आपसे आग्रह है कि पूरे देश में प्रवेश प्रक्रिया के समय जो हिन्दी या मातृभाषा के माध्यम का विकल्प दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार, अध्ययन के बाद सत्र के अन्त में जो परीक्षा ली जाती है, उसमें भी छात्र को अंग्रेजी या हिंदी माध्यम का विकल्प दिया जाए और उक्त छात्रों के निष्कासन के आदेश को निरस्त कर उन्हे वापिस लिया जाए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में शिक्षा का माध्यम (हिंदी और अंग्रेजी का मिला-जुला रूप बनाने की दिशा में आवश्यक कदम उठाया जाए। आपके इस छोटे से निर्णय से ग्रामीण परिवेश, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आदि के छात्र अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अभियंता बनने का स्वप्न साकार कर सकेंगे।

सादर,
अतुल कोठारी
सचिव- शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
सहसंयोजक- शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति
दूरभाष :-011-25898023, 65794966
मोबाइल:-9868100445, 9971899773

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार