पिछले दिनों कठुआ/जम्मू में आतंकी हमले में एक आतंकी को ढेर करके और अपने चालीस साथियों की जानबचाने वाले अपने लाडले शहीद को जींद(हरियाणा)वासियों ने अंतिम विदाई दी.इधर इस जांबाज़ सिपाही को जींदवासी भावबीनी अंतिम विदाई दे रहे थे और उधर हमारे नेता/मंत्री और जानेमाने कश्मीरी अलगाववादीदिल्ली में पकिस्तान-दिवस-समारोह में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे।जैसे हाल ही में जम्मू-कश्मीर के साम्बा और कठुआ में कुछ हुआ ही न हो और जैसे इन दोनों जगहों पर हुए आतंकी हमलों में पाक का कोई हाथ ही न रहा हो।रणबांकुरों वाले हमारे देश की सरकार की नियत और नीतियां क्या सचमुच इतनी ढुलमुल हो सकती हैं?शहीद की आत्मा भला क्या सोच रही होगी?यहाँ पर यह बात भी विचारणीय है कि कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत-पाक वार्ता का जब भी दौर चलता है या चलने वाला होता है तो यह मान कर चला जाता है कि कश्मीर-समस्या मुख्यतया कश्मीर में रह रहे बहुसंख्यकों से जुडी हुयी है और उन्हीं की आकांक्षओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए.विडंबना देखिये,कश्मीरी पंडित जो वहां के मूल बाशिंदें हैं,उनके प्रतिनिधि/प्रतिनिधियों को न तो कोई वार्ता के लिए बुलाता है और न कोई महत्व ही देता है.शायद सरकारें यह मान बैठी है कि यह विस्थापित/शरणार्थी कौम अपना स्वत्व तो खो चुकी है,इसे हाशिये पर धकेलने में हर्ज ही क्या है?चुनावों के दौरान पंडितों के विस्थापन,उनकी त्रासदी,उनकी हताशा आदि को तो सरकारें अपने पक्ष में जोरशोर से भुना लेती है, मगर समय पड़ने पर वार्ता-मंच से उनको बेदखल कर देती है.सच है, क्रूर ग्रहों की वंदना पहले और सौम्य ग्रहों की बाद में.
एक समाचार यह भी है कि हाल ही में कश्मीर की धरती पर कश्मीरी महिला विंग की अलगाववादी नेता आसिया अंद्राबी ने पाकिस्तानी ध्वज फहराने के साथ-साथ पाकिस्तानी राष्ट्रगान भी गाया और यह सब राज्य सरकार टुकर-टुकर देखती रही वैसे ही जैसे दिल्ली में पकिस्तान के राजदूत से कश्मीरी अलगाववादी न केवलभेंट कर रहे थे बल्कि अपने को भारत का नागरिक मानने से भी इनकार कर रहे थे और यह सब केंद्र की नाक तले हो रहा था.अलगाववादियों के प्रति कड़ा रुख अपनाने का समय आ गया है: जिन्हें पकिस्तान से प्रेम है वे बेशक पाकिस्तान चले जाएँ।भारत में रहते हुए कोई पकिस्तान के गीत गाये,यह देश बर्दाश्त नहीं करेगा।राज्य सरकार और केंद्र सरकार को चाहिए कि वे ऐसे देशविरोधी तत्वों से सख्ती से पेश आयें अन्यथा समझा जायगा कि दोनों सरकारें किसी ख़ास मजबूरी के मारे अलगाववादियों के प्रति नर्म रुख अपना रही हैं और ऐसा ही कुछ पहले भी होता रहा है.
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(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
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