कोई भी टीवी चैनल लगाकर देखिये।आजकल "तू तड़ाक" से बोलने वाला समझता है कि उसने शायद बाज़ी मार ली। मगर वह यह नहीं जानता कि दर्शक उसकी बेहयाई पर मन ही मन हंस रहे होते हैं।प्रायः हर चैनल पर आजकल ऐसा ही हो रहा है। कोई किसी को बोलने ही नहीं देता ।
एंकर के साथ-साथ दर्शक भी विवश! वाद विवाद न हुआ शब्दों की कुश्ती हुयी।तू तू मैं मैं की इस जुबांदराज़ी को देख शांत रहने वाले हमारे घरों का माहौल भी बिगड़ने लगा है।समय आ गया है जब एंकर स्वविवेक का इस्तेमाल कर चूँ चूँ या अनर्गल बोलने वाले पैनलिस्ट का माइक बन्द कर दें ताकि दूसरे भद्रजन की बात को ध्यान से तो सुना जाय।सरकार भी चाहे तो इस बारे में कोई कारगर उपाय सुझा सकती है।
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर