Saturday, November 23, 2024
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‘भारतीय भाषाओं की रक्षा और राष्ट्रभाषा की प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष करना होगा’

हैदराबाद। उच्च शिक्षा और शोध संस्थान की स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर पर केंद्रीय हिंदी निदेशालय और स्टेट बैंक ऑफ़ हैदराबाद के सहयोग से आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' : अर्धशती समारोह” का उद्घाटन करते हुए प्रख्यात साहित्यकार, वर्तमान सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कहा कि भाषा और साहित्य के माध्यम से विचारों को श्स्स्वत जीवन प्राप्त होता है इसलिए किसी जीवित समाज की पहचान उसकी राष्ट्रभाषा और जातीय साहित्य से होती है. उन्होंने आगे कहा कि यदि विचारों को खत्म कर दिया जाय तो सब कुछ अपने आप खत्म हो जाएगा. विचारशून्यता के कारण ही आज देश भर में अराजकता फ़ैल रही है. उन्होंने खेदपूर्वक कहा कि इस देश में भाषा के नाम पर अराजकता फैलाई जा रही है. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने जोर देकर कहा कि हिंदी देश की आत्मा है, एकता का सूत्र है. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ स्वार्थी लोग देश की आत्मा पर पत्थर रखकर बैठे हुए हैं. अंग्रेज तो इस देश को छोड़कर जा चुके हैं, लेकिन अंग्रेजी भक्ति के रूप में वे अपनी मानसिकता यहीं छोड़ गए. आज हम सब उसी मानसिकता से लड़ रहे हैं. हमें पहचानना होगा कि भारतीय भाषाएँ हिंदी की ताकत हैं. हिंदी में संवेदना है, लालित्य है, अपनत्व है. उन्होंने सबसे अपील की कि भारतीय भाषाओं को बचाएँ, संस्कृति को बचाएँ और देश को बचाएँ तथा संविधान की भावना के अनुरूप हिंदी को व्यवहारिक अर्थ में भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने के संघर्ष और आंदोलन चलाएँ क्योंकि राष्ट्रभाषा से हमारी राष्ट्रीय पहचान जुड़ी है.

‘मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ के अर्धशती समारोह का बीजभाषण देते हुए प्रो. देवराज (आचार्य एवं अध्यक्ष, अनुवाद विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा) ने कहा कि किसी भी कवि को दरवाजा खोलकर जनता के बीच आकर खड़ा होना चाहिए और पाठक को भी कविता में जो अनेक पाठ छिपे हुए हैं उण पर ध्यान देना चाहिए. 'अंधेरे में' कविता में अनेक पाठ हैं. इसमें अपनी निजी भाषा की खोज है, जनता के व्यक्तित्व की खोज है. जनता अपने आपको आत्मीयता, निजीपन और निजता के साथ अभिव्यक्त करना चाहती है. 'अंधेरे में' का एक पाठ संभावना का पाठ भी है और साथ ही संकल्प का दर्शन भी. उन्होंने आक्रोशपूर्वक कहा कि यथास्थितिवादी व्यवस्थाओं ने पिछले दशकों में बंदूक के सामने बंदूक खड़ी कर दी जिससे सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश अंधेरे से ग्रस्त हो गया; अतः आज व्यवस्था पर पुनर्विचार आवश्यक है. अपनी सांस्कृतिक संपत्ति को पहचानने की आवश्यकता है. आज हमारे सामने सांस्कृतिकता को खोजने और पहचानने का संकट है. थोपे गए सभ्यता संघर्ष में हमें मानवीय सभ्यता और संस्कृति को बचाना होगा. उन्होंने कहा कि ये सभी बातें 'अंधेरे में' अंतर्निहित हैं जो उसकी प्रासंगिकता और पुनर्पाठ का आधार हैं.

उल्लेखनीय है कि मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ 50 वर्ष पूर्व अर्थात 1964 में हैदराबाद से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका ‘कल्पना’ में प्रकाशित हुई थी और तब से अब तक यह कविता समीक्षकों के बीच निरंतर चर्चा का विषय बनी रही है. 

उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार, वरिष्ठ शिक्षाविद एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय, उत्तराखंड के पूर्व प्राचार्य डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ ने अत्यंत भावभीने स्वर में अपील की कि हिंदी को अपनाएँ और सभी भारतीय भाषाओं का आदर करें क्योंकि यह हमारे देश की संप्रेषणीयता का प्रतीक है. डॉ. अरुण ने अपना गीत ‘मौत ने मुझसे कहा मैं तुमको लेने आ रही हूँ’ सुनाकर समाँ बाँध दिया.

बतौर सम्मान्य अतिथि विश्वविख्यात कला संग्राहक एवं कला समीक्षक पद्मश्री जगदीश मित्तल, विशेष अतिथि डॉ. विष्णु भगवान शर्मा [सहायक महाप्रबंधक राजभाषा, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद], दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सह-सचिव के. वेंकटेश्वर राव, संगोष्ठी संयोजक सी. एस. होसगौडर और संगोष्ठी निदेशक प्रो. ऋषभदेव शर्मा मंचासीन थे. इन सभी ने ‘एक’ कविता पर केंद्रित इस त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए हिंदी के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ पर चर्चा की.

चिरक इंटरनेश्नल के बाल कलाकारों ने इस अवसर पर 'अंधेरे में' का मंचन किया जिसका नाट्य निर्देशन डॉ. मंजु शर्मा और जयश्री जाजू ने किया. दर्शकों ने बाल कलाकारों की प्रस्तुति की मुक्त कंठ से प्रशंसा की. 

इस अवसर पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की मासिक पत्रिका ‘स्रवंति’ के संगोष्ठी विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया. इस अंक में हरिशंकर परसाई, शमशेर बहादुर सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी, अशोक वाजपेयी, गजानन माधव मुक्तिबोध, नामवर सिंह, रामविलास शर्मा, रामस्वरूप चतुर्वेदी, देवीशंकर अवस्थी और विष्णु खरे के दस्तावेजी आलेखों को सम्मिलित किया गया जो ‘अंधेरे में’ के पुनर्पाठ में सहायक हैं.

‘मुक्तिबोध : व्यक्ति और रचनाकार” विषयक पहले विचार सत्र की अध्यक्षता 'भास्वर भारत' के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में बी. जे. आर. डिग्री कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. घनश्याम उपस्थित रहे. डॉ. साहिराबानू बी. बोरगल ने मुक्तिबोध के जीवन और व्यक्तिव पर प्रकाश डाला तो डॉ. गोरखनाथ तिवारी ने उनके साहित्यिक प्रदेय पर समीक्षात्मक चर्चा की.  

 “अंधेर में : पुनर्पाठ” शीर्षक दूसरे विचार सत्र की अध्यक्षता प्रो. देवराज ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. एम. वेंकटेश्वर उपस्थित रहे. इस सत्र में डॉ. बलविंदर कौर ने “अंधेरे में : कथ्य विश्लेषण”, डॉ. मृत्युंजय सिंह ने “अंधेरे में का वैशिष्ट्य : स्थापत्य का विशेष संदर्भ” और डॉ. बी. बालाजी ने “मुक्तिबोध और अंधेरे में : वाया नया ज्ञानोदय” विषयक तीन विचारोत्तेजक शोधपत्र प्रस्तुत किए.

इस समारोह का दूसरा दिन अत्यंत विचारोत्तेजक और मौलिक सूझ से परिपूर्ण रहा. यह एक विस्मयकारी अनुभव था कि इस अवसर के लिए अलग-अलग अनुवादकों ने मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ का 12 अलग-अलग भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया है. इन समस्त अनुवादों का लोकार्पण पहले दिन डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने किया तथा दूसरे दिन अनुवादकों ने अपन्रे अनुवाद अनुभव पर चर्चा की जिस पर खुला परिसंवाद चला. उल्लेखनीय है कि ‘अंधेरे में’ का अनुवाद तेलुगु में डॉ. भागवतुल हेमलता ने, कन्नड में साहेबहुसैन जहागीरदार और डॉ. एस. टी. मेरावाडे ने, तमिल में डॉ. जी. नीरजा ने, मलयालम में डॉ. श्याम प्रसाद ने, मराठी में मेघा आचार्य ने, राजस्थानी में डॉ. मंजु शर्मा ने, उर्दू में डॉ. सैयद मासूम रज़ा ने, बांग्ला में प्रो. देवराज ने, ओडिया और ब्रजभाषा में विजेंद्र प्रताप सिंह ने, मणिपुरी में डॉ. ई. विजयलक्ष्मी ने तथा कॉकबरक में डॉ. मिलन जमातिया ने किया है.

समारोह के तीसरे दिन दो समांतर सत्रों में 60 से अधिक शोधार्थियों ने शोधपत्र प्रस्तुत किए. इन सत्रों की अध्यक्षता तेलंगाना विश्वविद्यालय से संबद्ध डॉ. प्रवीणा राज और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय से संबद्ध डॉ. करन सिंह ऊटवाल ने की तथा प्रो. एम. वेंकटेश्वर और डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित रहे.

उल्लेखनीय है कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के निदेशक प्रो. ऋषभदेव शर्मा को उनकी सुदीर्घ हिंदी सेवा और साहित्य सृजन के लिए हैदराबाद स्थित प्रतिभा प्रकाशन की ओर से ‘सुगुणा साहित्य पुरस्कार 2015’ से सम्मानित भी किया गया. इस अवसर पर पुरस्कार-संयोजक डॉ. एम. रंगैय्या ने पुरस्कृत साहित्यकार के व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचय दिया.

इस संगोष्ठी में भाग लेने के लिए हैदराबाद के अतिरिक्त तेलंगाना तथा आंध्रप्रदेश के दूरदराज इलाकों से आए 200 से अधिक साहित्य प्रेमी, पत्रकार, विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, शोधार्थी एवं छात्र उपस्थित रहे।

प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
प्राध्यापक
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद, हैदराबाद – 500 004
मोबाइल – 0984998634

 

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