कोलकाता के सावित्री गर्ल्स कॉलेज में आलिफिया तुंडावाला को खासे सम्मान के साथ देखा जाता है। वे राजनीति शास्त्र की प्रोफेसर तथा कार्यकारी विभागाध्यक्ष तो हैं ही, सबके लिए प्रेरणास्रोत भी हैं। कारण यह कि उन्होंने अपनी शारीरिक कमी के चलते पेश आई सारी चुनौतियों को ध्वस्त कर दिया और आज मानव जिजीविषा की मिसाल बनकर सबके सामने हैं। आलिफिया को जन्म से ही आंखों में समस्या थी और धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह जाती रही। जब वे दो साल की थीं, तब उनके अभिभावक गुजरात के सिदपुर नामक कस्बे से बेहतर इलाज की आस में कोलकाता चले आए। मगर कोलकाता के डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया। बताया गया कि आलिफिया की बीमारी लाइलाज है।
कुछ बड़ा होने पर जब आलिफिया को अपनी स्थिति का अहसास हुआ, तो बेचारगी का भाव धारण करने के बजाए उन्होंने प्रण किया कि वे अपना जीवन पूरी शिद्दत से जिएंगीं। अपने परिवार की मदद से वे सामान्य जीवन जीने लगीं, यहां तक कि वे सामान्य स्कूल में ही पढ़ीं। आज ३७ वर्षीय आलिफिया कहती हैं,"हमने स्थिति को सकारात्मक तरीके से लिया। मैंने खुद से कहा कि जो हो गया सो हो गया, अब मुझे जीना है और हर काम को बेहतरीन कर दिखाना है।"
लॉरेटो स्कूल में, जहां वे पढ़ीं, उनके सहपाठी तथा शिक्षक उन्हें पढ़-पढ़कर पाठ सुनाते। घर पर उनकी मां उनका सबसे मजबूत सहारा बनकर खड़ी थीं। आलिफिया को जो भी पाठ पढ़कर सुनाया जाता, उसे वे कंठस्थ कर लेतीं। कॉलेज में भी वे लेक्चर सुनकर नोट्स लेतीं। ऐसे मौके भी आए, जब परीक्षा में लिखते वक्त उनके पेन में स्याही खत्म हो गई लेकिन उन्हें पता नहीं चला, सो वे सूखे पेन से लिखती चली गईं। तब उनके शिक्षकों ने कागज पर सूखा पेन चलने से बनी छाप को "पढ़कर" उन्हें अंक दिए!
आज आलिफिया स्वयं शिक्षिका हैं। उनके लेक्चर सीधे उनके दिल से निकलकर आते हैं और अपने लेक्चर्स के माध्यम से वे सीधे अपनी छात्राओं से जुड़ती हैं। उनकी क्लास में कुछ छात्राएं तो दूसरे विभागों की होती हैं, जो सिर्फ उन्हें सुनने के लिए आती हैं। एक छात्रा के शब्दों में,"यदि आप उदास हों, तो उन्हें सुनकर नया जोश आ जाता है।" आलिफिया के लेक्चर बड़े ही जीवंत होते हैं और वे अपने विद्यार्थियों से संवाद स्थापित करती चलती हैं। उनके आत्मविश्वास तथा जीवन के प्रति नजरिये को देखकर उनकी छात्राओं को प्रेरणा मिलती है। एक छात्रा माया तिवारी कहती हैं,"हमें प्रेरणा मिलती है कि अगर वे जीवन में इतना कुछ कर सकती हैं, तो हम क्यों नहीं!"
आलिफिया ने राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर करने के बाद २०११ में "पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की वर्तमान स्थिति" विषय पर डॉक्टरेट की। वे सामाजिक कार्य में भी सक्रिय हैं। वे अपने कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना की प्रभारी हैं। आलिफिया का दृढ़ मत है कि विकलांग लोगों को भी मुख्यधारा के स्कूलों में ही पढ़ाया जाना चाहिए। वे कहती हैं,"इससे उन सभी लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा जो सक्षम तो हैं मगर औरों से जरा अलग हैं।"
साभार-दैनिक नईदुनिया से