Saturday, November 23, 2024
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बांग्लादेश के साथ हुए करार को बदलेगी सरकार

बीजेपी की चुनावी महत्वाकांक्षा के कारण मोदी सरकार को एक बड़े कूटनीतिक कदम में बदलाव करना पड़ सकता है। बीजेपी के नेताओं को लग रहा है कि असम में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत हो सकती है और इसी चुनावी गणित के कारण असम को बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौता (एलबीए) से अलग किया जा सकता है। इस मसले पर पीएमओ को भेजे गए सवालों के जवाब नहीं मिले।
 
भारत-बांग्लादेश एलबीए में भारत की ओर से असम, बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय शामिल हैं। यूपीए-2 के दौरान इससे जुड़ी बातचीत शुरू होने के बाद अब तक दोनों देशों में जो सहमति बनी है, उसके मुताबिक असम को करीब 268 एकड़ जमीन से हाथ धोना पड़ेगा। असम यह जमीन विभाजन के वक्त से ही बांग्लादेश के साथ सटी 6.1 किमी लंबी पट्टी का विवाद सुलझाने के लिए छोड़ रहा है।
 
बीजेपी की असम यूनिट ने जमीन छोड़े जाने का हमेशा विरोध किया है। यूपीए-2 ने सीमा मुद्दे पर जब बांग्लादेश से समझौता किया था, तो बीजेपी इसे मुद्दा बनाकर सड़कों पर उतर गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में असम की 14 लोकसभा सीटों में से 7 पर बीजेपी ने कब्जा किया था। कांग्रेस को तीन सीटें ही मिल सकी थीं। बीजेपी ने स्थानीय निकाय चुनाव में भी शानदार प्रदर्शन किया था और उसे उम्मीद है कि वह पिछले तीन विधानसभा चुनाव जीत चुकी कांग्रेस को अगले साल पस्त कर देगी।
 
सरकारी अधिकारियों ने बताया कि सरकार असम को एलबीए से फिलहाल अलग करने के साथ बांग्लादेश सीमा पर पश्चिम बंगाल और मेघालय वाले हिस्सों के साथ कदम बढ़ाने पर विचार कर रही है।
 
ईटी को पता चला है कि मोदी सरकार ने सीमा समझौते से असम को अलग रखने का मुद्दा बांग्लादेश के सामने रखा है। बांग्लादेश का कहना है कि अगर मोदी सरकार को डील करने का यही एकमात्र रास्ता दिख रहा हो तो वह इस पर विचार करने के लिए तैयार है। एलबीए पर 2011 में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने दस्तखत किए थे, लेकिन अभी इस पर संसद की मुहर नहीं लगी है।
 
बीजेपी की असम इकाई के अध्यक्ष सिद्धार्थ भट्टाचार्य ने ईटी से कहा, 'सीमा विवाद का कोई भी समाधान घुसपैठ और आतंकवाद के मुद्दों से निपटने में मददगार ही होगा, लेकिन जमीन का मामला हमेशा ही भावनात्मक रहा है।' एलबीए के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'मुझे इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन जो भी फैसला होगा, हमें स्वीकार करना होगा।'
 
साभार- इकॉनामिक टाईम्स से 

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