नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु 1945 में एक प्लेन क्रैश में हुई या वे किसी अन्य तरह की अज्ञात परिस्थितियों में इस संसार से विदा हुए,यह बात आज तक रहस्य बनी हुयी थी।पिछले दिनों इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए मीडिया में खूब चर्चा चली जो अब भी चल रही है।
इस प्रसंग में कश्मीर के जांबाज़ शहीद स्व0 कान्तिचन्द्र ज़ाडू का उल्लेख करना परमावश्यक है।सुना है कान्तिचन्द्र नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के करीबी सहयोगी थे और आखिरी दिनों तक नेताजी के साथ रहे।माना जा रहा है की 1945 में कान्तिचन्द्र भी नेताजी के साथ ही रहस्यमय परिस्थितियों में विलुप्त हो गए।इतने वर्ष गुज़रने के बाद भी अब तक कान्तिचन्द्र के घर वालों को उनके बारे में कोई आश्वस्त करने वाला समाचार मिला नहीं है।उनकी पत्नी सत्यवती अपने पति के लौटने का ज़िंदगीभर इंतज़ार करती रही और अंततः अपने ही देश में शरणार्थी बन 1990 में इस दुनिया से रुख़सत हुई।
सरकार चाहे तो नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु की गुत्थी को सुलझाने के साथ ही कश्मीरी पंडितों के अमर शहीद कान्तिचन्द्र ज़ाडू की मौत पर पड़े पर्दे को भी हटाने की पहल कर सकती है।