गिलगिट बास्टिस्तान जो जवाहरलाल नेहरु और अंग्रेजी राज के कुटिल अंग्रेजों की वजह से आज भारत का हिस्सा होते हुए बी पाकिस्तान के कब्जे में है, वहाँ के लोगों का लिए पाकिस्तान ने जीना हराम कर दिया है।
मुंबई आए इंस्टीट्यूट ऑफ गिलगिट बाल्टिस्तान स्टडीज़ के अध्यक्ष एवँ शिया नेता श्री सेंजे हसन सेरिंग ने मुंबई में कहा कि गिलगिट बाल्टिस्तान का जम्मू कश्मीर से 20 गुना ज्यादा क्षेत्रफल है और इस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। गिलगिट बाल्टिस्तान भारत के लिए रणनीतिक महत्व का तो है ही यहाँ खनिज संपदा और सोना भी प्रचुर मात्रा में है। यह क्षेत्र भारत को सीधे रुस और अफगानिस्तान से लेकर मध्य पूर्व के सबी देशों से जोड़ता है। यहाँ की आबादी मात्र 20 लाख है। पिछले 500-600 साल से ये क्षेत्र जम्मू कश्मीर के अधीन रहा है। यहाँ की 80 प्रतिशत आबादी शिया मुस्लिमों की है जबकि 20 प्रतिशत आबादी सुन्नी मुस्लिमों की है। पाकिस्तान सुन्नी मुस्लिमों के माध्यम से यहाँ शियाओं को जबरन सुन्नी मुस्लिम बना रहा है और शियाओं पर अत्याचार कर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर रहा है। आज हालात ये है कि अगल लोग अपने अधिकारों के लिए सड़क पर लड़ाई लड़े तो उन्हें या तो जेल में डाल दिया जाता है या गोली मार दी जाती है। अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले 12 लोगों को उम्र कैद की सजा दी गई है ते 400 लोगों पर राषट्र द्रोह के फर्जी मुकदमे थोप दिए गए हैं।
गिलगिट बाल्टिस्तान के पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए पाकिस्तान सरकार के एक मंत्री को अधिकार दिए गए हैं। पाकिस्तान सरकार यहाँ की कीमती खदानें विदेशी कंपनियों को बेच रही है जबकि उसका यहाँ कोई अधिकार ही नहीं है। चीन यहाँ 100 अरब डॉलर का निवेश करके कारकन क्षेत्र में हाई वे बना रहा है, बाँध बना रहा है ताकि वह सीधे यहाँ अपना दखल दे सके। चीन इस क्षेत्र में 18 अरब डॉलर की एक सुरंग भी बना रहा है जो यहाँ की सुरक्षा के साथ ही पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा है।
1280 किलो मीटर लंबा यह हाईवे पाकिस्तान के एबटाबाद के निकट हवेलियन रेलवे को चीन के झियांग प्रांत के कशगर को जोड़ता है। इसे चीन की मदद से 1978 में बनाया गया था। क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज से खास तौर से भारत के कई सामरिक हित इससे जुड़े हैं। गुलाम कश्मीर में चीन की विकास परियोजनाओं का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है चीन की कई कंपनियां नीलम-झेलम, गोमल जाम और मंगला बांध के पुनर्निर्माण समेत कई पनबिजली परियोजनाओं पर काम कर रही हैं।
श्री शेंजे सीरिन ने कहा कि विगत दो साल में विरोध करने पर पाकिस्तान ने 200 शिया मुसलमानों को मार दिया। यहाँ कोई कॉलेज इंजीनियरिंग कॉलेज पोलीटेक्नी कॉलेज नहीं है। यह क्षेत्र 10 जिलों में बँटा हुआ है और यहाँ विधानसभा की 24 सीटें है। पाकिस्तान के संविधान के अनुसार पाकिस्तान की कोई पार्टी यहाए चुनाव नहीं लड़ सकती लेकिन सभी प्रमुख पार्टियाँ संविधान की धज्जियाँ उड़ाकर यहाँ चुनाव लड़ती है और स्थानीय लोगों को अपने राजनैतिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखती है।
धर्मान्ध सुन्नी हत्यारों का एक दल-डेथ स्क्वैड-पश्चिमी पाकिस्तान के क्वेटा नगर में हजारा सम्प्रदाय के लोगों को खोज-खोज जातीय हिंसा से बचने के लिए अनेक युवा देश छोड़ कर दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों, लंका व आस्ट्रेलिया या इन्डोनेशिया तक भी जाकर बस चुके हैं।
चीन के लिए यह क्षेत्र भौगोलिक स्तर से भी काफी महत्वपूर्ण है। चीन इस रास्ते मध्य एशिया से सीधा संपर्क कर सकता है। चीन यहां बड़े पैमाने पर निवेश कर समुद्र के रास्ते पश्चिम एशिया पर शिकंजा कसने के लिए काराकोरम में निर्माण कार्य करा रहा है।
श्री सेंजे शीरिन ने कहा कि भारत को कारगिल से बाल्टिस्तान का मार्ग खोल देना चाहिए ताकि दोनों क्षेत्रों के जो 15 हजार परिवार एक दूसरे के रिश्तेदार हैं वे आपस में मिल सकें। बारामूला से गिलगिट तीन घंटे में पहुँचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गिलगिट बाल्टिस्तान के सभी नागरिक अपने आपको पीढ़ियों से भारत का निवासी मानते आए हैं और आज भी वे अपनी संस्कृति, मूल्यों और जीवन शैली के हिसाब से भारत को अपने निकट पाते हैं। अगर भारत सरकार और भारत की जनता इस क्षेत्र के लोगों पर हो रहे पाकिस्तानी अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती है तो इससे इस क्षेत्र के लोगों का भारतीय जनता और भारत सरकार में विश्वास पैदा होगा।
श्री शींजे सिरिन ने मुंबई में आईआईटी में छात्रों से भी संवाद कर उन्हें गिलगिट बाल्टिस्तान के बारे में जानकारी दी। वे मुंबई के कई प्रमुख शिया मुस्लिम नेताओं से भी मिले और पाकिस्तान द्वारा शिया मुस्लिमों पर किए जा रहे अत्याचारों के बारे में विस्तार से बताया।
क्या है गिलगिट बाल्टिस्तान का इतिहास?
जम्मू-कश्मीर के इस क्षेत्र को पाकिस्तान ने विधिवत अपना प्रांत घोषित कर उसका सीधा शासन अपने हाथ में ले लिया है। यह लगभग 63 हजार वर्ग किमी. विस्तृत भू-भाग है, जिसमें गिलगित लगभग 42 हजार वर्ग किमी. और वाल्टिस्तान लगभग 21 हजार वर्ग किमी. है। गिलगित का सामरिक महत्व है। यह वह क्षेत्र है जहां 6 देशों की सीमाएं मिलती हैं- पाकिस्तान, अफगानिस्तान,तजाकिस्तान, चीन, तिब्बत एवं भारत। यह मध्य एशिया को दक्षिण एशिया से जोड़ने वाला दुर्गम क्षेत्र है जो सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा जिसके द्वारा पूरे एशिया में प्रभुत्व रखा जा सकता है।
अमेरिका भी पहले गिलगित पर अपना प्रभाव रखना चाहता था और एक समय चीन के बढ़ते प्रभुत्व को रोकने के लिये सोवियत रूस की भी ऐसी ही इच्छा थी,इसलिये 60 के दशक में रूस ने पाकिस्तान का समय-समय पर समर्थन कर गिलगित को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने का प्रयास किया था। वर्तमान में गिलगित में चीन के 11000 सैनिक तैनात हैं। पिछले वर्षों में इस क्षेत्र में चीन ने लगभग 65 हजार करोड़ रूपये का निवेश किया व आज अनेक चीनी कम्पनियां व कर्मचारी वहां पर काम कर रहे हैं।
1935 में जब सोवियत रूस ने तजाकिस्तान को रौंद दिया तो अंग्रेजों ने गिलगित के महत्व को समझते हुये महाराजा हरिसिंह से समझौता कर वहां की सुरक्षा व प्रशासन की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेने के लिये 60 वर्ष के लिये इसे पट्टे पर ले लिया। 1947 में इस क्षेत्र को उन्होंने महाराजा को वापिस कर दिया। इसकी सुरक्षा के लिये अंग्रेजों ने एक अनियमित सैनिक बल गिलगित स्काउट का भी गठन किया।
गिलगिट बाल्टिस्तान पाकिस्तान के अत्याचारों से कराह रहा है-शेंजे सीरिन
एक निवेदन
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