यूं तो नोटबंदी के कारण कई लोगों के बिजनेस पर बड़ा असर पड़ा है। लेकिन नोटबंदी के कारण 20 खरब रुपये की ह्यूमन ट्रैफिकिंग इंडस्ट्री की कमर टूट गई है। सेक्स वर्क के लिए महिलाओं और लड़कियों को बेचने का कारोबार करने वाली इस इंडस्ट्री में राहत और बचाव का काम करने वाले वर्कर्स ने यह खुलासा किया है। उनका कहना है कि नवंबर तक महिलाओं की तस्करी की प्रक्रिया पूरी हो जाती थी। इसके बाद उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में भेज दिया जाता था। लेकिन 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपये के नोट बंद होने और नए नोटों की किल्लत ने इस इंडस्ट्री की कमर तोड़ दी है।
अंग्रेजी अखबार द मिंट के मुताबिक बचपन बचाओ आंदोलन नाम की एक संस्था में बतौर चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट राकेश सेंगर कहते हैं कि तस्करी पूरी तरह रुक गई है। असम में लड़कियां गुवाहाटी से, ऩॉर्थ में झारखंड से और साउथ में चेन्नै, बेंगलुरु और हैदराबाद से लाई जाती हैं। लेकिन पिछले एक महीने में एक भी लड़की की तस्करी नहीं हुई है। एेसा इसलिए है क्योंकि वहां नगदी ही नहीं बची है। सभी ट्रांजेक्शन कैश में हो रही हैं और मालिकों के पास बिचौलियों को देने के लिए पैसा ही नहीं है।
भारत के सबसे संगठित क्राइम रैकेट के तौर पर चलने वाली इस कारोबार में पहले लड़कियों की कीमत लगाई जाती है। अगर 2.5 लाख रुपये में लड़की को खरीदा गया है तो उसमें से काफी हिस्सा उसे ट्रांसपोर्ट करने में, स्थानीय राजनेताओं, प्रशासन और पुलिस अधिकारियों को देना पड़ता है। हालांकि उसकी वास्तविक कीमत 20 हजार रुपये ही होती है, जबकि बाकी पैसा तस्कर ले लेते हैं। ट्रेड यूनियन, टीचर्स और सिविल सोसाइटी के एक दल ग्लोबल मार्च ने भारत में इस इंडस्ट्री की कीमत 18.3 ट्रिलियन लगाई थी।
स्टडी में कहा गया कि नोटबंदी के बाद इस इंडस्ट्री में शामिल अलग-अलग लोगों के कामकाज पर असर पड़ा है, जिसमें तस्कर, वेश्यालय के मालिक, कानून प्रवर्तन अधिकारियों और न्यायपालिका के सदस्य शामिल हैं।
नोबेल प्राइज विजेता कैलाश सत्यार्थी कहते हैं कि इस इंडस्ट्री में पैसे का लेनदेन बहुत तेजी से होता है। जब भी मुमकिन होता है, लोग बिजनेस, लॉ एन्फोर्समेंट, जूडिशरी, डॉक्टर्स और साहूकारों से जुड़े होते हैं। उनके मुताबिक 10-12 साल की लड़की की कीमत 5 लाख होती है, जबकि 13 से 15 साल की लड़की को 4 लाख में बेचा जाता है। ये सभी ट्रांजेक्शन कैश मे होते हैं, जोकि कालाधन है। लेकिन अब वेश्यालयों के मालिक पकड़े जा रहे हैं, क्योंकि वे बैंक जाकर इस पैसे को कन्वर्ट नहीं करा सकते। फिलहाल नई करंसी का भी संकट है, जिसके कारण क्लाइंट्स ने वेश्यालयों में जाना छोड़ दिया है और वेश्यालय मालिकों के पास तस्करों को देने के लिए पैसा ही नहीं है