आदर्श की बात जुबान पर है, पर मन में नहीं। उड़ने के लिए आकाश दिखाते हैं पर खड़े होने के लिए जमीन नहीं। दर्पण आज भी सच बोलता है पर हमने मुखौटे लगा रखे हैं। ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व के सामने सबसे बड़ी गंभीर समस्या है और हम पर्यावरण को दिन-प्रतिदिन प्रदूषित करते जा रहे हैं। ऐसी निराशा, गिरावट व अनिश्चितता की स्थिति में एक व्यक्ति पर्यावरण को बचाने के लिये बराबर प्रयास कर रहा है। यह व्यक्ति नहीं है, यह नेता नहीं है, यह विचार है, एक मिशन है। और येे श्री अवधूत बाबा जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर अरुणगिरीजी के रूप पहचाने जाते हैं और उनका मिशन है अवधूत यज्ञ हरित पदयात्रा। पर्यावरण संरक्षण का यह अनूठा एवं अनुकरणीय उपक्रम है, जो वैष्णोदेवी से कन्याकुमारी तक निरन्तर चलित यज्ञ और पांच करोड़ पौधारोपण द्वारा विश्व पर्यावरण की शु़िद्ध के संकल्प के साथ चलयमान एक महायात्रा है। अगस्त 2017 तक चलने वाली करीब 4500 किलोमीटर की इस पैदल यात्रा के तहत लोगों को पर्यावरण को सुरक्षित रखने व दूषित होने से बचाने के लिए पौधारोपण करने हेतु प्रेरित किया जा रहा है।
अवधूत बाबा अरुणगिरीजी एक संन्यासी की ही नहीं, एक यायावरी की ही नहीं, एक ऋषि की समझ रखते हैं। आध्यात्मिकता की गंगा और पराक्रम की जमुना उनमें साथ-साथ बहती है। वे इस युग को वह दे रहे हैं जिसकी उसे जरूरत है, वह नहीं जिसकी कि वह प्रशंसा करे। इतिहास अक्सर किसी आदमी से ऐसा काम करवा देता है, जिसकी उम्मीद नहीं होती। और जब सम्पूर्ण मानवता के हितचिन्तन की आवश्यकता का प्रतीक कोई आदमी बनता है तब उसका कद अमाप्य हो जाता है। उन्हांेने एक सम्प्रदाय के प्रमुख होते हुए भी अपना कद सदैव ऊंचा रखकर मानव के अस्तित्व एवं अस्मिता को सम्प्रदाय से ऊंचा रखा है। निजता में व्यापकता रखी। विचारों का खुलापन आपकी सार्वजनिक एवं सर्वमान्य छवि का मुख्य आधार है। जो लोग यह समझते हैं कि एक धर्मगुरु अपनी परम्परा एवं अनुयायियों के घेरे से बाहर निकल ही नहीं सकता, उन्हें अरुणगिरीजी का जीवन देखना चाहिए। यह अद्भुत्ता और यह विलक्षणता उन्होंने स्थापित की है। वे धरती के दर्द में दवा को बुन रहे हैं।
अवधूत यज्ञ हरित पदयात्रा के लंबे सफर का पगडंडियों, राजमार्गों, गांवों और महानगरों का झोपड़ियों और भवनों का अनुभव अपने मंे समेटे अरुणगिरीजी मनुष्य के बदलाव की सोच रहे हैं। उन्होंने यज्ञ को पर्यावरण संरक्षण का सशक्त माध्यम माना है। महायज्ञ का उद्देश्य है भारत का विकास, विश्व का कल्याण, पर्यावरण की शुद्धता, नैतिक आचरण। उनका मानना है कोई भी देश तभी विकास कर पाता है जब वहां की जनता संस्कारों से जुड़ी हो, युवा आत्मनिर्भर हों। यज्ञ के माध्यम से देश की जनता को यही संदेश दिया जा रहा है। नासा ने भी यज्ञ के महत्व को स्वीकार किया है। नासा की मानें तो यज्ञ के धुएं से पर्यावरण 71 फीसदी शुद्ध हो जाता है। यज्ञ का धुआं जब आकाश की ओर उठता है तो वह धरती पर जल के रूप में वापस आता है।
पर्यावरण के असंतुलित एवं प्रदूषित होने की स्थितियां इतनी भयावह एवं डरावनी है कि कोई भी कांप उठे। प्रतिवर्ष 1500 करोड़ पेड़ धरती से काट दिए जाते हैं, मनुष्य जाति की शुरुआत से आज तक 46 प्रतिशत जंगल व पेड़ खत्म कर दिए गए हैं। जबकि धरती पर कुल पेड़ 30 लाख करोड़ हैं। धरती से 15500 विभिन्न जीव-जंतुओं की प्रजातियां सदा के लिए खत्म हो चुकी हैं। बढ़ते तापमान के कारण 66 प्रतिशत ध्रुवीय भालू 2050 तक खत्म हो जायेंगे। घटते जंगल ने इंसान के सबसे नजदीकी जानवर चिंपाजी 80 प्रतिशत तक खत्म हो चुके हैं। जिस तरह ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन जारी रहा तो इस सदी के अंत तक न्यूनतम तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाएगी। श्वास और त्वचा से जुड़ी बीमारियों में पिछले 30 सालों में 3 गुना वृद्धि हुई है। 2015 तक भारत में हार्ट अटैक की न्यूनतम आयु 16 वर्ष हो चुकी है। भारतीय पुरुषों की प्रजनन क्षमता में पिछले 25 वर्षों में 31 प्रतिशत तक की कमी आई है। अंडमानी, राबरी जैसी आदिवासी जनजातियां आज विलुप्त होने के कगार पर हैं।
लगातार कम होते जंगलों के कारण आज तक तकरीबन 20 लाख लोग बेरोजगार और बेघर हो चुके हैं। धरती पर हर 8वीं मौत दूषित हवा से होती है। 21वंी सदी अभी तक की सबसे गर्म सदी रही है। नासा के अनुसार इस सदी में वैश्विक रूप से समुद्र का जलस्तर आधा फीट बढ़ गया है एवं पिछली शताब्दी के बराबर का स्तर मात्र गुजरे एक दशक में बढ़ा है। पृथ्वी के फेफड़े कहलाने वाले अमेजन के जंगल 28.5 प्रतिशत तक इंसानों द्वारा काट दिए गए हैं।
यह सब तो बस कुछ आंकड़े हैं हमारे आस-पास के सच्चाई तो और भी गंभीर है, दरअसल पिछले 30-40 सालों में भारत ने बहुत कुछ नया पाया है तो बहुत कुछ पुराना खोया भी और इन सबकी गंभीरता में एक कारण सामान रूप से सामने आता है और वह है ग्लोबल वार्मिंग। यही कारण है कि जिससे हमें प्रकृति के साथ-साथ मानव जाति को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। श्री अवधूत बाबा अरुण गिरिजी महाराज गहन अनुभव एवं चिंतन के बाद इस विश्व व्यापक समस्या के प्रायोगिक, प्रभावी एवं सर्वसुलभ हल को प्रस्तुत कर मानवता को उपकृत किया हैं। एक ऐसा समाधान जो न केवल इस समस्या को हल करेगा बल्कि मानवता को हमेशा के लिए एक नई सौगात देगा। वही सौगात जो हमारे पूर्वज सदियों पहले तक हमें देकर गये थे। शुद्ध हवा, निरोगी काया और सबसे जरूरी मानसिक शांति। यकीन मानिए यह सभी बातें आज भी संभव है। इस भागदौड़ के दौर में हम इन बातों का सपना देखें और मानवता के लिए एक अनुपम वरदान साबित कर सकते हैं।
यज्ञ का हमारे यहां प्राचीन काल से ही विशिष्ट महत्व रहा है, यज्ञ का न केवल आध्यात्मिक महत्व है बल्कि यज्ञ पर्यावरण के लिए भी विशेष रूप से महत्व रखता है। यज्ञ के सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक पहलू भी हैं। हवन करने से पर्यावरण में उपस्थित अनेक तरह के घातक बैक्टीरिया खत्म होते हैं। हवन वातावरण में आॅक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है।
वृक्ष इस सजीव जगत के जीवन में रीढ़ की तरह है, पेड़ स्वयं कार्बन डाई आॅक्साइड का प्रयोग करते हैं और बदले में हमें फल, फूल और आॅक्सीजन देते हैं। पेड़ों की महत्ता का वर्णन आदिकालिक वेदों में तो है ही साथ ही वैज्ञानिक भी इनके महत्व को सत्यापित करते हैं। एक विकसित वृक्ष साल भर में लगभग 25 किलो कार्बन ग्रहण कर लेता है जो कि एक कार 45000 किलोमीटर चलने पर पैदा करती है। एक संपूर्ण विकसित वृक्ष 6 ऐसी-वातानुकूलित के बराबर ठंडक देता है। वृक्षों के कारण तेज बारिश या अकस्मात बारिश का पानी बह नहीं पाता, भयानक बाढ़ भी नहीं आती और पानी जमीन में ही सोख लिया जाता है जिससे न केवल मिट्टी का कटाव रूकता है बल्कि पानी की शुद्धता भी बढ़ जाती है। वृक्ष प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार का बहुत बड़ा साधन है जो कि हमारे देश में 35 प्रतिशत लोगों को प्रभावित करती है।
वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार एक पेड़ 3000 प्रकार की जातियों के जीव-जंतुओं का घर होता है। एक व्यक्ति अगर जीवन में 4 पेड़ लगा पाता है तो वह अपने जीवन की लगभग सभी जरूरतें को पूरा करने के लिए साधन जुटा पाता है। ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने का सबसे वैज्ञानिक और त्वरित समाधान अधिक से अधिक वृक्षारोपण ही है।
आज के समय में हमारे सामने दो कड़वे सच मुंह बाये खड़े है एक तो यह कि ग्लोबल वार्मिंग दिन-ब-दिन हमारी समस्याएं बढ़ाती ही जा रही हैं, समय रहते आज से ही इसका हल निकालना शुरू नहीं किया तो हमारे अस्तित्व पर सवाल खड़े होने में भी समय नहीं लगेगा। आखिर कितनी सुनामियों से, कितने प्राकृतिक तूफानों से, कितने अकालों से और कितने जलवायु बदलावों से हम कब तक खुद को बचा पायेंगे। हमारे देश में लगभग हर साल किसी न किसी राज्य में कोई न कोई प्राकृतिक आपदा खड़ी ही रहती है, अब यह देखने और विचार करने की बात होगी कि हम कब तक इसे केवल सरकार के भरोसे छोड़ पायेंगे। अवधूत यज्ञ हरित पदयात्रा जैसे उपक्रमों से ही हम इस तरह की गंभीर समस्याओं से निजात पा सकते हैं। ताकि हम आने वाली पीढ़ी को कुछ अच्छा एवं सुखद भविष्य छोड़कर जा सके। जाॅन लुबाॅक का मार्मिक कथन है कि जमीन-आसमान, जंगल-मैदान, नदियां और झीलें, पहाड़ और सागर दुनिया के बेहतरीन अध्यापक हैं। ये हमें वो सिखाते हैं, जो कभी किताबों में नहीं लिखा जा सकता।’ अरुणगिरीजी प्रकृति एवं पर्यावरण के दर्द का समझा है और उस पर मंडरा रहे खतरे के प्रति जनजागृति को जागरूक करने का महान् कार्य किया है।
हम इंसानों ने अपनी धरती की हालत काफी खराब कर दी है लेकिन हमारे बीच में ही अवधूत बाबा अरुणगिरीजी जैसे कुछ लोग भी हैं जो अपने चैन और आराम को भुलाकर धरती को बचाने में जुटे हुए हैं। ऐसी कोशिशें करनेवाले अरुणगिरीजी के अनुसार ”जीवन एक यात्रा का नाम है,“ आशा को अर्थ देने की यात्रा, ढलान से ऊंचाई की यात्रा, गिरावट से उठने की यात्रा, मजबूरी से मनोबल की यात्रा, सीमा से असीम होने की यात्रा, जीवन के चक्रव्यूहों से बाहर निकलने की यात्रा, पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने की।
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(ललित गर्ग)
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