नाटक “अनहद नाद – Unheard Sounds of Universe” नाटक होते हुए भी “जीवन” है और जीवन में घटित “नाटक” को हर पल उखाड़ फैंकता है .. कलाकार की कला , कलात्मकता और कला सत्व है ..उनका सृजन नाद है .. व्यक्तिगत सृजन दायरे को तोड़कर उसे यूनिवर्सल , ब्रह्मांडीय सृजन से जोड़ता है और कलाकार को देश , काल ,भाषा , धर्म से उन्मुक्त कर एक सृजनकार , एक क्रिएटर के रूप में घडता है.
“अनहद नाद – Unheard sounds of Universe”… कलात्मक चिंतन है, जो कला और कलाकारों की कलात्मक आवश्यकताओं,कलात्मक मौलिक प्रक्रियाओं को समझने और खंगोलने की प्रक्रिया है। क्योंकि कला उत्पाद और कलाकार उत्पादक नहीं है और जीवन नफा और नुकसान की बैलेंस शीट नहीं है इसलिए यह नाटक कला और कलाकार को उत्पाद और उत्पादिकरण से उन्मुक्त करते हुए,उनकी सकारात्मक,सृजनात्मक और कलात्मक उर्जा से बेहतर और सुंदर विश्व बनाने के लिए प्रेरित और प्रतिबद्ध करता है।
नाटक “अनहद नाद – Unheard Sounds of Universe” में परफॉर्म करना एक चुनौती है . चुनौती बहुआयामी हैं 1. नाटक के तत्वों को समझना ( क्योंकि आज की तथाकथित प्रोफेशनल पीढ़ी के पास इसे समझने का सुर ही नहीं ) 2. नाटक में जिस ‘कला’ और कलाकार की व्याख्या है .. वो आज के कला संसार की विलुप्त सरस्वती है 3 नाटक की साधना के लिए “प्रकृति” के साथ जीना ( ये सबसे कठिन .. आज सेल्फी के दौर में ‘प्रकृति’ बस सेल्फी और सोशल मीडिया तक सीमित है या राजनीति के वैश्विक अखाड़े में “ग्लोबल वार्मिंग” के रूप में एक राजनैतिक पैंतरा भर है ) 4 कला साधना के लिए “दर्शक” की अर्थ भागीदारी (दुनिया जिस मोड़ पर खड़ी है वहां लूट को व्यापर और लूट के प्रचारक को ब्रांड एम्बेसडर कहा जाता है यानी जो जितना संसाधनों को बेच सकता है वो उतना बड़ा ब्रांड एम्बेसडर के दौर में सीधा कलाकार और दर्शक का रिश्ता बनाना .. यानी कला की दलाली करने वालों के जाल से मुक्त होना )
आज के कला बाज़ार के जाल से उन्मुक्त होना . ये ‘जाल’ बहुत जटिल है क्योंकि इसने सब मूर्खों को जकड रखा है . मुर्ख शब्द एक व्याहारिक जड़ता को दर्शाने के लिए है . इसकी एक मिसाल अभी हाल में हुई नोट बंदी में देखने को मिलती है जहाँ एक व्यक्ति कह रहा था “कालाधन रखने वाले लाइन में खड़े हैं , उनकी नींद हराम है” और जनता मान रही थी जबकि वो खुद अपनी मेहनत की कमाई को बदलवाने और जमा करने के लिए खड़ी थी .. किसी ने उस व्यक्ति को नहीं कहा अबे “हमारी मेहनत की कमाई को काला धन बोलता है (..हो सकता है जनता चुनाव में बोले) उसी तरह एक निहायत ही खपाऊ और टाइमपास सीरियलों के EP, TP, CP नामक जीव किसी मुनाफाखोर चैनल के उगाही ठेकेदार कला के नाम पर ‘उपभोग वस्तु” और कलाकारों के नाम पर ‘पेट भरू” बेरोजगारों की फ़ौज खड़ा कर रहे हैं . कला और कलाकार के कला तत्व और सत्व को हर रोज़ “पेट भर’ और बिकने का डर दिखाकर डराते धमकाते हैं . जबकि तथ्यों को ध्यान से देखें तो मुनाफाखोर चैनल के उगाही ठेकेदारों को चैनल मालिक “यूज़ & थ्रो” की नीति के तहत एक अल्प काल के बाद लात मारते हैं और ये चैनल की चमक दमक में कार और फ्लैट के लोन की किश्तों को भरने के लिए मारे मारे फिरते हैं और कोई भी चैनल इनको काम नहीं देता .
यही हाल हर हिट टीआरपी वाले सीरियल के मैंन लीड कलाकारों के साथ होता है ..सीरियल ऑफ एयर तो इनको ना कोई जानता है , ना कलाकार मानता है .. ये एक गुमनाम भीड़ में गायब हो जाते हैं ..या पेट भरने के लिए चैनल की हर शर्त को मानते हुए पेट भरते है और इनके कला जगत में कला का गणपति ‘दूध” पीता रहता है , या व्यक्तिपूजा करके कुछ ‘राजनीति’ में मंत्री भी बन जाते है ( अपवाद स्वरूप) पर कलाकार बनकर नहीं जी पाते . कुल मिलाकर ऐसे मुनाफाखोर चैनल के उगाही के सामन्तवादी ठेकेदारी (टाइमपास सीरियलों के EP, TP, CP और ‘पेट भरू” बेरोजगारों की फ़ौज) काल में नाटक “अनहद नाद – Unheard Sounds of Universe” में परफॉर्म करना अपने आप को इस ‘भेड़ चाल कला बाज़ार’ से दूर करना हैं . अब कौन कलाकार इस ‘भेड़ चाल कला बाज़ार’ को नाराज़ करने का जोखिम उठा सकता है ,, कौन हैं जो इनको नाराज़ कर सकता है … यही है “कला और कलात्मकता” का और “पेट भरने’ और विचार का संघर्ष , और मंथन !
साथियों इन बीहड़ चुनौतियों का सामना जिन कलासाधकों ने किया और अपने अथक और कलात्मक साधना से इस दिव्य स्वप्न को साकार किया है …वो हैं अश्विनी नांदेडकर ,योगिनी चौक, सायली पावसकर,अमित डियोंडी, वैशाली साल्वे ,तुषार म्हस्के , कोमल खामकर , सिद्धांत साल्वी और विनय म्हात्रे ने २९ मई २०१५ को मुंबई के रवीन्द्र नाट्य मंदिर में प्रथम मंचन से दर्शकों को लोकार्पित किया और तब से अब तक इसका प्रदर्शन निरंतर हो रहा है और दर्शकों का प्रेम और प्रगाड़ हो रहा है …. …इस कलात्मक पहल और प्रक्रिया की दशवीं अद्भुत प्रस्तुति शिवाजी नाट्य मंदिर(मुंबई) में 28 जनवरी ,2017 को हुई . हमारे प्रतिबद्ध ‘दर्शकों’ को सलाम ! हमारे दर्शक हमें सतत ‘कला साधना के लिए उत्प्रेरित करते हैं … हमारे दर्शक हमारी ‘रंग प्रतिबद्धता’ के मजबूत स्तम्भ !
मुनाफाखोर चैनल के उगाही के सामन्तवादी ठेकेदार (टाइमपास सीरियलों के EP, TP, CP और ‘पेट भरू” बेरोजगारों की फ़ौज) नैतिक ,वैचारिक , कलात्मक और सात्विक ‘साधना और सिद्धि’ से डरता है , उनका ‘मेदुं छोटा और पेट बड़ा’ हो जाता है . और वो जीवन भर व्यवहारिकता की आड़ में “पेट की चक्की’ में पीसने का अभिशप्त हैं . उनको उन्मुक्त करने के लिए ‘मिशन और मिशनरी’ होने की ज़रूरत है .. ये एक हिमालय सी चुनौती है .. और हममें “हिन्द महासागर” सी गहराई और ‘कला’ के महा सागरीय मंथन से निकलने वाले ‘हलाहल’ को पीने की तैयारी भी . बकौल नाटक “अनहद नाद – Unheard Sounds of Universe” …. मानवीय विष को ..विष के प्रभाव को निष्क्रिय करने की क्षमता ..केवल और केवल कला में है ..यही कला का मकसद / ध्येय और यही कला का साध्य है ….!
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संक्षिप्त परिचय –
“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार “थिएटर आफ रेलेवेंस” के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।
एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।
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Manjul Bhardwaj
Founder – The Experimental Theatre Foundation www.etfindia.org
www.mbtor.blogspot.com
Initiator & practitioner of the philosophy ” Theatre of Relevance” since 12
August, 1992.
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