हिंदू राजनीति की एक और झिझक खत्म हुई। कभी सोचा नहीं था कि दिल्ली के तख्त पर हिंदू प्रचारक बैठेगा। न ही यह कल्पना थी कि देश के सबसे बड़े प्रांत में हिंदूओं का एक मठ प्रमुख मुख्यमंत्री बनेगा। इसलिए कि नेहरू के आईडिया ऑफ इंडिया, सेकुलर विचार-विमर्श और आधुनिकता के चौगे ने भारत में भगवा को वर्जित बना रखा था। तभी आम हो या खास, सब यह सुन चौंके कि महंत आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हुए! अपनी जगह कोलकत्ता के टेलिग्राफ का ठीक हैडिंग है कि मुखौटा उतरा, असली चेहरा सामने आया! पर मुखौटा क्या सेकुलर शब्द, सेकुलर विमर्श में नहीं है जिसने इस झूठ की सेकुलरनामी पहनाई हुई थी कि हकीकत भले हिंदू होने की हो लेकिन हिंदू कहने में शर्म आती है। हिंदू चेहरा हकीकत है पर मुखौटा सेकुलर का इसलिए पहना हुआ है ताकि मुसलमान अपने बन कर रहंे। सोचंे, मुसलमान की चिंता में हम क्यों अपने को हिंदू न कहें और सेकुलर कहीं।
मुसलमान को सेकुलरता याकि धर्मनिरपेक्षता नहीं चाहिए। वह अपने इस्लाम पर गर्व करता है, उसी को निज, समाज, राष्ट्रधर्म मानता है और यह उसका अपना धर्मसंगत व्यवहार है तो है। पर तब हिंदू क्यों न अपने धर्म का, धर्म की अपनी सुरक्षा का, अपनी आस्था का, अपने योगी का राजतिलक करे? 15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत जब आजाद हुआ था तब नेहरू के कारण हमने असलियत छोड़ कर सेकुलरता का मुखौटा ओढ़ा था। चाहे तो उसे एक हिंदू प्रयोग कह सकते हंै। वह हिंदू की उदारता थी। मुसलमान का अलग पाकिस्तान बनवा कर गांधी-नेहरू ने भारत में रहे मुसलमानों को मौका दिया कि कट्टरता छोड़ आधुनिक बनने का यह मौका है। पाकिस्तान नहीं, उसकी इस्लामी तासीर को नहीं बल्कि हिंदू के मूल से उपजी गंगा-जमुनी संस्कृति में खुदा के बंदों को आधुनिक बनने के लिए मौका बनाया। आजम खान और उनके पूर्वजों का मौका था कि वे एएमयू या गौहर यूनिवर्सिटी या मदरसों के खांचों से बाहर निकले। मुस्लिम अवाम कमाल अतातुर्क से राष्ट्रवादी लीडर पैदा करें। लेकिन हुआ क्या? मदरसे पैदा हुए। औवेसी और आजम खान पैदा हुए। नतीजतन सेकुलर का मुखौटा, सेकुलर का प्रयोग, नेहरू के आईडिया आफ इंडिया के मुखौटे उतरने ही थे। योगी आदित्यनाथ का, हिंदू का चेहरा बतौर हकीकत आगे अंततः आना ही है। प्रचारक को प्रधानमंत्री बनना था तो योगी को मुख्यमंत्री।
और उस नाते अपना नंबर एक सलाम अमित शाह को है। आरएसएस या नरेंद्र मोदी को नहीं बल्कि अमित शाह ही वह वजह है जिसने जिद्द की कि उत्तरप्रदेश की उम्मीदवार लिस्ट में एक भी मुसलमान नहीं होगा। अमित शाह की जिद्द थी कि योगी आदित्यनाथ पश्चिम में डेरा डाले। प्रचार कर हिंदू मनोदशा को झिंझोड़े। नतीजों के बाद अमित शाह की जिद्द थी कि उन्हंे 2019 की ही नहीं बल्कि आगे के लिए भी उत्तरप्रदेश को हिंदू राजनीति में पकाना है। योगी के भगवा हिंदू और उसमें जात-पात की हकीकत में राजपूत, ब्राह्मण, अतिपिछड़ों की जुगलंबदी को स्थाई बनाना है। अमित शाह ने मई 2014 से पहले और मार्च 2017 से पहले दोनों मौको में राजनीति की उस हकीकत को शिद्दत व सघनता से यूपी में पैंठाया कि जो हिंदू हित की बात करेगा वहीं देश पर राज करेगा। मैं 2014 से पहले और बाद में लगातार लिखता रहा हूं कि विकास पर वोट की बात फालतू है। वैश्विक कारणों से और निज अंदरूनी अनुभव से हिंदू खदबदाया हुआ है। वह इस चाह में तड़प रहा है कि कोई मर्द लीडरशीप आए और मुसलमान से उसे सुरक्षा मुहैया कराए। उस विचार, उस मुखौटे से राहत दिलाए जो नेहरू के आईडिया आफ इंडिया में हिंदुओं को लगातार असुरक्षा के भाव में चिंताग्रस्त बना दे रहा है।
मैं भटक गया हूं। लिखना योगी आदित्यनाथ पर था मगर टेलिग्राफ की हैडिग ने विचार मंथन को ऐसा मोड़ा कि हकीकत और मुखौटे की रौ में बहा हूं। मौटे तौर पर योगी आदित्यनाथ की कमान को फिलहाल इस नजरिए में देखा जाए कि वहीं हो रहा है जो बहुसंख्यक हिंदू मन चाहता है। योगी आदित्यनाथ का नाम पूरे देश के हिंदू में, मुसलमान में स्पार्क की तरह, करंट की तरह ऐसे पैठा होगा कि राजनीति में अब सवाल बनेगा कि विपक्ष कहां से ले कर आएगा योगी जैसा चेहरा? अमित शाह ने एक झटके में विपक्ष को लकवे में ला दिया है। किसी की हिम्मत नहीं, किसी के मुंह से यह बोल नहीं फूटा कि यह तो सेकुलर का सत्यानाश। सब की सिट्टीपिट्टी गुम है। यूपी में अब अखिलेश यादव, राहुल गांधी क्या कह कर सेकुलर राजनीति करेंगे या मुस्लिम उम्मीदवारों की लिस्ट ले कर मायावती कैसे वोट मांगेगी?
एक मायने में अमित शाह का ब्रह्मास्त्र है जो योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना कर विरोधियों को विचारने के लिए मजबूर किया कि वे या तो हिंदू राजनीति करे या अखाड़े से बाहर हो जाए।
हां, योगी विकास में फेल होंगे या हिंदुओं की उम्मीद पूरी नहीं कर पाएंगे, इस तरह की शंकाओं और इससे फिर विपक्ष मुंगेरीलाल के ख्याली सियासी दांवपेंच सोचे तो यह उसकी गलती होगी। यूपी में जो हुआ है वह विकास की इच्छा में नहीं बल्कि सुरक्षा की हिंदू चाह में हुआ है। इसलिए विकास हो या न हो, योगी का चेहरा यदि सुरक्षा और हिंदू आस्था की कसौटी में खरा बना रहा तो वह अपने आपमें बहुत होगा। न ही योगी को मध्यप्रदेश में उमा भारती के अनुभव की कसौटी में तौले। इतना जान ले कि हिंदू मठों में गौरखपंथी तासीर उग्र व करो-मरो वाली मानी जाती है।
जो हो, देश के सबसे बड़े प्रांत में भगवा योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्रित्व अनुभव भारत राष्ट्र-राज्य का बेजोड़ मुकाम है। यह भारत की हकीकत का सच्चा साक्षात्कार है, सच्चा चेहरा है।
साभार-http://www.nayaindia.com से