लगातार मीडिया और सोशल मीडिया पर बूचड़खाने बंद होने पर बातें की जा रही हैं। कहा जा रहा है कि लोग बेरोजगार हो गए, लोगों को खाना नहीं मिल रहा, शौकीनों को स्वाद नहीं मिल रहा, आदि आदि। जरा एक बार पता कीजिए कि पिछले एक साल में पशु चोरी के कितने मामले यूपी में दर्ज हुए हैं। पत्रकार जरा DCRB जाएं और ये बात पता करें। लखनऊ के पत्रकार SCRB का रुख करें। जिस प्रदेश में कद्दावर मंत्रियों की भैंस सुरक्षित नहीं, वहां गांव देहात में पशु कितने सुरक्षित होंगे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
पत्रकार थोड़ा मेहनत करें और ये पता लगाएं कि कितने कट्टीखानों को लाइसेंस मिला हुआ है और उनमें से कितने कट्टीखाने चालू हालत में हैं। यहां ये सवाल बेहद जरूरी है कि जो कट्टीखाने बंद हो गए हैं वह क्यों बंद हुए हैं। कौन से नियम कानून ऐसे थे जिनका पालन करने में ये लोग असमर्थ साबित हुए। इसके बाद हापुड़, पिलखुवा पहुंचें और हवा में घुली बदबू को महसूस करें। इसके बाद सवाल उठाएं कि यहां के स्थानीय निवासी यहां कैसे रह पा रहे हैं।
इसके बाद अपनी गाड़ियों को खुर्जा के लिए मोड़ लें। खबरें ऐसी हैं कि वहां के कई इलाकों में पानी के नल, खून भी उगल रहे हैं। इसकी सच्चाई पता लगाई जाए। गौतमबुद्ध नगर और खुर्जा के बॉर्डर पर बसे करीब 70 गावों के लोग कैंसर की चपेट में हैं। ये कैंसर पानी से हुआ है ऐसी रिपोर्ट पिछले दिनों अखबारों की सुर्खियां रही हैं। अब स्थानीय अस्पताल जाएं और पता करें कि क्या ऐसा खून मिले पानी को पीने के कारण तो नहीं हुआ।
पत्रकार इस सवाल का जवाब तलाश करें कि जब 90 फीसदी से अधिक कट्टीखाने मानक पूरा नहीं कर पाने के कारण बंद हैं तो मीट की सप्लाई कहां से हो रही है। जो पशु चोरी हो रहे हैं वो कहां काटे जा रहे हैं? उनके खुर, सींग और हड्डी जैसी चीजों का क्या हो रहा है? खाल और खून कहां जा रहा है? इन जानवरों की चर्बी से जो घी बन रहा है और कहां-कहां बन रहा है? पता ये भी होना चाहिए कि अगर पशुधन खत्म होने के कगार पर है तो दूध की सप्लाई कहां से हो रही है?
दिवाली पर मिलावटी मिठाई की कहानी बताने वाले जरा ये पता करें कि किन इलाकों में वॉशिंग मशीनों से दूध बनाया जा रहा है? पनीर और खोया कैसे बन रहा है? पता करें कि दूध से बनने वाले ये पदार्थ कैसे लोगों की जान के दुशमन बन गए हैं। गंगा के किनारे जाएं, हर पैंटून पुल पर रात गुजारें और इस सवाल का जवाब तलाश करें कि कितने वाहन बिना चेकिंग के गंगा पार कर रहे हैं। पेट्रोलियम पदार्थों के लिए बने वाहनों में भर कर कैसे गायों की तस्करी की जा रही है उसे अपनी आखों से देखें।
पत्रकार कोशिश करें ये देखने और पता करने की कि गाय को कैसे मारुति 800 से लेकर स्कार्पियो तक में भर कर ले जाया जाता है। गंगा के किनारे बने अवैध कट्टीघरों की संख्या पता करें। मीट माफिया जो डायरी मैंटेन करते हैं उसका जुगाड़ करें और देखें कि सिस्टम का कौन कारिंदा कितने में बिका है। ये पता करें कि कट्टीघर चलाने वाले कैसे मीडिया से भी जुड़ गए हैं और क्या पता इस डायरी में कुछ पत्रकारों के नाम भी मिल जाएं।
(लेखक युवा पत्रकार हैं)
(साभार: digitalindianonline.wordpress.com)