सभी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बारे में सुना है। कई लोगों के लिए यह देश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की प्रेरणा है लेकिन देश के बहुत कम लोग डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के नाम से परिचित हैं जिन्होंने 92 वर्ष पहले आरएसएस की स्थापना की थी।
डॉ. हेडगेवार जैसे कुछ ही व्यक्ति हैं जो देश के इतिहास और उसके राजनीतिक भाग्य पर गहरी छाप छोड़ते हैं। उन्होंने एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो यकीनन दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे स्थायी तथा वैचारिक रूप से काफी उन्नत है, जिसे समाज के बड़े वर्ग ने अपनाया है लेकिन आम जनता इससे अनजान रही। डॉ० हेडगेवार ऐसे व्यक्तित्व थे जो स्वयं को सबके सामने रखने की बजाय अपने कार्यों के जरिये अपनी बात रखते थे। वे आरएसएस के नाम से प्रसिद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे और 1940 में उनके निधन तक उन्होंने पहले सरसंघचालक (प्रमुख) के रूप में इस संगठन का 15 वर्षों तक नेतृत्व किया। उन्होंने श्री गुरूजी एम एस गोलवलकर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया जिन्होंने अगले तीन दशकों तक आरएसएस को देश के कोने-कोने तक फैलाया।
डॉ. हेडगेवार ने सक्रिय जीवन बिताया। वे बचपन से ही शानदार, जोशीले देशभक्त थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की खुली निंदा की। किशोरावस्था के पहले ही उन्होंने महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती और एडवर्ड-VII के राज्याभिषेक समारोह का बहिष्कार किया था। एक बागी और क्रांतिकारी युवा के रूप में वे कांग्रेस में शामिल हुए और उसके संघीय सचिव बने लेकिन निराश होकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और स्वयं का संगठन शुरू किया तथा 51 वर्ष की आयु में अपने निधन तक उन्होंने देशभर में देशभक्ति की समान विचारधारा वाली एक पीढ़ी तैयार की। उन्होंने प्रचार पाने की बजाए शांति से कार्य करने पर बल दिया था। उनका मानना था कि अनावश्यक प्रचार से उनका अभियान पटरी से उतर जायेगा। फिर भी जीवनभर वे सुर्खियों में बने रहे।
वे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, कांग्रेस नेता डॉ. मोन्जी के काफी करीब थे और उन्होंने महात्मा गांधी से मुलाकात कर देश की भावी राजनीति पर चर्चा की थी तथा 1934 में वर्धा में आयोजित आरएसएस के एक समारोह में उनके साथ मंच भी साझा किया था। वे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के भी नजदीकी थे और उन्होंने कई बैठकों में नेताजी को बताया था कि वे संघ के जरिये वे कैसे भारत का निर्माण करना चाहते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं के साथ रहने के बावजूद 1920 की नागपुर कांग्रेस में उन्होंने गांधी जी की सहमति से कांग्रेस के एजेंडा में गोरक्षा को भी शामिल कराया था जिसमें गांधीजी भी उपस्थित थे। लेकिन डॉ० हेडगेवार सुर्खियों में कहीं नजर नहीं आये।
डॉ. हेडगेवार एक राष्ट्र निर्माता, दूरदर्शी, विचारक और मानव मन को ढालने में प्रवीण थे। असल में भारतीय नववर्ष प्रतिपदा के दिन 01 अप्रैल 1889 में उनके जन्म से इस दिवस को एक नया अर्थ मिला। 1925 सितम्बर में विजयदशमी के अवसर पर आरएसएस का गठन किया गया था और उस समय डॉ० हेडगेवार 36 वर्ष के थे। उनका जन्म नागपुर में हुआ था और वे अपने माता-पिता की पांचवी संतान थे। बेहतरीन छात्र के रूप में उन्होंने अपनी एलएमएस की डिग्री हासिल की और वे आकर्षक मेडिकल प्रैक्टिस शुरू कर सकते थे लेकिन उन्होंने सार्वजनिक जीवन अपनाया, ताउम्र अविवाहित रहे और अपने द्वारा स्थापित संगठन का लगातार प्रचार किया। आरएसएस नेता स्वर्गीय एच वी शेषाद्री ने 1988 में ‘आरएसएस: ए विज़न इन एक्शन’ नाम से एक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में श्री शेषाद्री ने स्वतंत्रता की भावना कायम करने, राष्ट्रीय एकता के लिए आंतरिक चुनौतियों का मुकाबला करने, राष्ट्रीय मनोबल दृढ़ बनाये रखने और प्रलोभन के माध्यम से धर्म परिवर्तन के खतरे से निपटने, सामाजिक सद्भाव, न्याय के लिए प्रयास करने, प्राकृतिक आपदाओं को झेल रहे लोगों की मदद करने और राष्ट्रवादी, मूल्य आधारित शिक्षा तथा चरित्र निर्माण में सहायक आरएसएस के कार्यों के बारे में बताया है। आरएसएस इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राजनीति और शक्ति को एक जरिया मानता है।
डॉ. हेडगेवार द्वारा संगठन की स्थापना के बाद के नौ दशकों में राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में काम करने वाले लगभग साठ सहयोगी संगठनों के साथ यह सबसे बड़ी गैर सरकारी पहल बन गया है और डॉ हेडगेवार की इस महत्वकांक्षी परियोजना की शाखा-सत्तारूढ़ दल के 11 करोड़ सदस्य हैं।
डॉ. हेडगेवार अपने कार्य को फैलाने में धन की ताकत या पद में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने प्रचार करना बंद कर दिया था। लेकिन वे अपने संगठन के वैचारिक लचीलेपन को परखने के लिये नेताजी, तिलक और गांधीजी जैसे राष्ट्रीय नेताओं की सद्भावनाओं और आशीर्वाद में विश्वास करते थे। इसलिए 1928 में उन्होंने नागपुर में मोहिते वाडे शाखा में संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए वल्लभभाई पटेल को आमंत्रित किया था। उसी वर्ष डॉ० बी आर अम्बेडकर ने पुणे की संघ शाखा का दौरा किया था। दोनों नेताओं ने डॉ० हेडगेवार द्वारा किए जा रहे महान कार्य की सराहना की थी। 24 दिसम्बर 1934 को गांधी जी ने वर्धा कैंप का दौरा किया था और वे संघ में सामाजिक सद्भाव और जातिवाद दूर करने के कार्यों से काफी प्रभावित हुए थे। इस यात्रा के दौरान हेडगेवार ने गांधी जी के साथ लंबी बैठक की थी। अहसहयोग आंदोलन, स्वतंत्रता संग्राम और गोहत्या के विरोध में प्रदर्शन के लिए डॉ० हेडगेवार तीन बार जेल गये थे। जेल में रहने के दौरान भी उन्होंने जेल में रह रहे राजनीतिक बंदियों के बीच आरएसएस का संदेश फैलाया।
1938 में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर और फिर 1939 तथा 1940 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस डॉ० हेडगेवार के संपर्क में थे। डॉ० हेडगेवार के निधन से दो दिन पहले 19 जून को श्री बोस उनसे मिलने गये थे, हालांकि दोनों बात नहीं कर पाये क्योंकि उस समय डॉ० हेडगेवार अत्यंत बीमार थे। 21 जून, 1940 को डॉ० हेडगेवार का निधन हो गया।
संघ की स्थापना के बाद से डा० हेडगेवार को कभी पता नहीं चला कि आराम क्या होता है। कई वर्षों तक संघ बगैर कार्यालय और पदाधिकारियों के कार्य करता रहा था। 1925 में विजयदशमी के अवसर पर समान विचारधारा के कुछ युवाओं की बैठक के साथ संघ की शुरूआत हुई थी जिन्होंने मातृभूमि की आराधना करने और भारत की सुरक्षा तथा मान के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने की प्रतिज्ञा ली थी। वर्षों तक शुभचिंतकों और समर्थकों के घर संगठन के कार्यालय बने रहे। संघ ने कभी भी अपने लिए कोष एकत्रित नहीं किया। यह सही मायने में समर्थकों का स्वैच्छिक कार्य था। डॉ० हेडगेवार के दर्शन का मूल बलिदान था।
डॉ. हेडगेवार ने लोगों के साथ जुड़ने और संबंध कायम करने की एक नायाब, अनोखी और सजीव कार्यप्रणाली तैयार की थी। वे राष्ट्र हित में निजी लाभ और आराम को भूलने में लाखों लोगों के लिए कुशल रणनीतिकार, सैद्धांतिक और प्रेरक साबित हुए। यह उनके सफल अभियान का रहस्य था। आगामी पीढ़ी उन्हें देश के सबसे महान देशभक्त और सभी को एकजुट करने वाले व्यक्ति के रूप में देखेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और नियमित रूप से आर्थिक मुद्दों पर लिखते हैं। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के स्वयं के हैं।)