Saturday, November 23, 2024
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कानून की छात्रा के यौन शोषण के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच समिति गठित की

सुप्रीम कोर्ट ने एक इंटर्न द्वारा शीर्ष अदालत के तत्कालीन पीठासीन न्यायाधीश के खिलाफ लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिये मंगलवार को तीन न्यायाधीशों की समिति गठित कर दी है।

न्यायमूर्ति आरएम लोढा, न्यायूमर्ति एचएल दत्तू और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की सदस्यता वाली यह समिति आज शाम से अपना काम शुरू करेगी। इस मामले में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संस्थान के मुखिया के नाते मैं इन आरोपों के बारे में चिंतित हूं और व्याकुल हूं कि यह बयान सही है या नहीं।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह समिति सारे मामले पर गौर करके तथ्यों का पता लगायेगी और रिपोर्ट तैयार करेगी। उन्होंने कहा कि हम कदम उठा रहे हैं और यौन उत्पीड़न के मामलों को हम हलके में नहीं ले सकते।

इससे पहले एक युवा महिला इंटर्न ने हाल ही में सेवानिवृत्त शीर्ष अदालत के एक न्यायाधीश पर आरोप लगाया कि उन्होंने पिछले साल दिसंबर में एक होटल के कमरे में उसके साथ उस समय र्दुव्‍यवहार किया, जब राजधानी गैंगरेप की घटना से जूझ रही थी।

इस युवा महिला वकील द्वारा एक अनाम न्यायाधीश के खिलाफ लगाये गये आरोप का मसला आज प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम के समक्ष भी उठाया गया। यह मसला उठाने वाले वकील ने न्यायालय से अनुरोध किया कि अदालत को मीडिया की खबरों का स्वत: ही संज्ञान लेकर जांच शुरू करानी चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष वकील मनोहर लाल शर्मा द्वारा यह मामला उठाये जाने पर न्यायाधीशों ने कहा कि हम इस तथ्य से अवगत हैं। न्यायालय ने इस मामले में कोई भी आदेश देने से इंकार कर दिया।

शर्मा का कहना था कि यह बहुत गंभीर मसला है और भारतीय न्यायपालिका के मुखिया की हैसियत से प्रधान न्यायाधीश को इन आरोपों की जांच करानी चाहिए। इस महिला ने इसी साल कोलकाता की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरीडिकल साइंस से स्नातक किया है। उसने कथित यौन उत्पीड़न की घटना के बारे में अपने ब्लॉग में लिखा है।

जर्नल ऑफ इंडियन लॉ एंड सोसायटी के लिये 6 नवंबर को लिखे गये इस ब्लॉग में महिला वकील ने कहा है कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के साथ उसके इंटर्न करने के दौरान यह घटना हुयी। ब्लॉग के अनुसार, पिछला दिसंबर देश में महिलाओं के हितों की रक्षा के आंदोलन के लिये महत्वपूर्ण था, क्योंकि देश की लगभग समूची आबादी महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ स्वत: ही खड़ी हो गयी थी।

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