Sunday, November 24, 2024
spot_img
Homeपाठक मंचबैंक सेवा देने के लिये है कि लूटने के लिये

बैंक सेवा देने के लिये है कि लूटने के लिये

श्रीमान गवर्नर
भारतीय रिजर्व बैंक
मुंबई

महोदय,

बैंक सेवा प्रभारों का युक्तिकरण व नियमन

आपको ज्ञात ही है कि बैंकों का प्रमुख कार्य ब्याज पर धन जमा लेना और उधार देना है और ब्याज दर के अंतर से लाभ कमाना बैंक के कार्यकरण का प्रमुख आधार है| इसके अतिरिक्त धन प्रेषण, लाकर, सुरक्षा जमा, गारंटी आदि ऐसे गौण कार्य हैं जिन्हें आज के बैंक कर रहे हैं और उसके लिए सेवा प्रभार वसूल रहे हैं | किन्तु यह देखा गया है है कि विगत कुछ समय से बैंकों ने अपनी विभिन्न सेवाओं व कार्यों के लिए अनुचित व गैर आनुपातिक रूप से प्रभारों में वृद्धि कर दी है जिसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता | बैंकों को स्वायतता प्रदान करने का कदापि यह अर्थ नहीं है कि वे किसी भी कार्य या सेवा के लिए मनमाने ढंग से वसूली करे – जिस कार्य की वास्तविक लागत 10 रूपये हो या कोई लागत ही नहीं हो उसके लिए 500 रूपये वसूल करे | बैंकों को चाहिए कि वे अपनी प्रमुख सेवाओं के लिए लाभकारी प्रभार वसूल करें किन्तु अन्य सेवाओं के लिए वे लागत से अधिक वसूल नहीं कर सकती क्योंकि वह उनका व्यवसाय नहीं है | उदाहरण के लिए भारतीय स्टेट बैंक ने बचत खाता बंद करने के लिए ही 500 रूपये प्रभार निर्धारित कर रखा है जिसकी अलग से कोई लागत ही नहीं आती है | एक व्यक्ति अपने बैंकिंग लेनदेन के लिए बैंक का चयन करने हेतु स्वतंत्र है और उसे इस प्रकार के अनुचित प्रभार का भय दिखाकर जबरदस्ती किसी अन्य बैंक के पास जाने से नहीं रोका जा सकता | यह बैंक की अस्वस्थ व्यावसायिक परम्परा है जिसका किसी भी सिद्धांत से समर्थन नहीं किया जा सकता |

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के समय यह कहा गया था कि उन्हें वर्ग विशेष के बैंक की बजाय सर्वजन के बैंक बनाया जाना है ( Instead to Class banking moving towards Mass banking. ) आज बाज़ार के कम्प्यूटरीकृत वातावरण में एक पृष्ठ की छपाई 5 रूपये में हो जाती है तो ऐसी स्थिति में डुप्लीकेट पासबुक या खाते के विवरण के लिए इससे अधिक वसूली नितांत अनुचित है | यद्यपि खाते में कम शेष होते हुए चेक जारी करना गंभीर है किन्तु किसी अन्य तकनिकी कारण से चेक लौटाए जाने पर जारीकर्ता से रूपये 250 जैसा भारी प्रभार वसूलना किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं है | तकनिकी कारण से चेक लौटाने और उसे पारित करने की लागत व परिश्रम में कोई विशेष अंतर नहीं है | भारत एक गरीब देश है जिसमें 75% लोग सब्सिडी का अन्न खाकर पेट भरते हैं और खाना पकाने के लिए ईंधन के लिए भी उन्हें सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है| देश में प्रतिव्यक्ति औसत आय रूपये 10000 प्रतिमाह से अधिक नहीं है व ईंधन पर सब्सिडी के लिए बैंक खाता आवश्यक है| ऐसे स्थिति में बचत खाते में न्यूनतम शेष रूपये 5000 निर्धारित करना और न रखने पर भारी भरकम प्रभार वसूलने की नीति व नियम में भी सामंजस्य व संतुलन का स्पष्ट अभाव दिखाई देता है | एक ओर बैंकें शून्य शेष पर खाते खोल रहे हैं व प्रधान मंत्री जन धन योजना में खाते खोलकर रुपे कार्ड दिये जा रहे हैं और दूसरी ओर न्यूनतम शेष अपने आप में एक विडंबना है | बैंक अपने विभिन्न खातेदारों के बीच भेदभाव पूर्ण रवैये कैसे अपना सकते हैं ? सरकारी बैंकें आम जनता की बैंकें हैं, किसी राजनैतिक दल विशेष की विरासतन सम्पति नहीं हैं जिन्हें वे अपनी सनक के हिसाब से अपने राजनैतिक लाभ के लिए उपयोग करें |

हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक की अध्यक्ष के एक साक्षात्कार से ज्ञात हुआ कि प्रधान मंत्री जन धन योजना में 25 करोड़ खाते खोलने पर काफी लागत आई है जिसकी पूर्ति बैंक आखिर कहाँ से करेगी ? किन्तु यह बात भी न्यायोचित नहीं है | क्योंकि यदि सरकार अपने किसी राजनैतिक उद्देश्य या सस्ती लोकप्रियता के लिए कोई योजना लाती है तो स्पष्ट है उसकी लागत भी सरकार स्वयं वहन करे – उसके लिए आम अन्य खाताधारी कैसे जिम्मेदार है | जिस प्रकार कृषि या अन्य क्षेत्रों को सस्ते ब्याज पर ऋण देने के लिए सरकार बैंकों को अनुदान देती है ठीक इसी प्रकार अपनी योजना विशेष के लिए भी सरकार अनुदान दे |

कई बैंक अपनी स्थानीय अन्य शाखा से सिर्फ 25000 रूपये ही निशुल्क जमा करने की अनुमति देते हैं और अधिक रकम जमा करवाने पर नेफ्ट से भी ज्यादा खर्चा वसूल करते हैं | जब बैंकें रिजर्व बैंक के माध्यम से देश के किसी भी कोने में किसी भी बैंक में मात्र 60 रूपये के खर्चे में नेफ्ट से 6 लाख रूपये भेज देती हैं तो फिर इन छोटी छोटी सेवाओं के लिए इतन भारी भरकम खर्चे किस प्रकार न्यायोचित हैं ?

दूसरी ओर बैंकें एटीएम से निकासी पर भी भारी प्रभार वसूली के लिए कह रही हैं | स्मरण रहे की जनता के जमा धन की वापिसी बैंकों का दायित्व है और यदि ग्राहक एटीएम की बजाय कैश काउंटर से निकालेंगे तो मानव संसाधनों के प्रयोग से बैंकों को भारी लागत आएगी और वर्तमान में बैंक मानव संसाधनों की कमी से झुझ रहे हैं | एटीएम सिर्फ ग्राहकों के लिए ही नहीं अपितु बैंकों के लिए भी सुविधाजनक है अत: ऐसे किसी प्रभार की वसूली उचित नहीं है जो बचत बैंक खाता के नियमों में हो| फिर भी बैंकों को एटीएम सेवा 24 घंटे दुरुस्त रखनी चाहिए – उनमें रोकड़ की कमी या तकनिकी खराबी कभी नहीं रहनी चाहिए | इस बात को सुनिश्चित करने के लिए रखरखाव एजेंसी से एटीएम खराब रहने के अवधि के लिए प्रति घंटा या उसके भाग के लिए 100 रूपये प्रभार वसूलकर उसे राष्ट्रीय उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा करवाया जाना चाहिए |

उक्त विवेचन के सन्दर्भ में आपसे आग्रह है कि विभिन्न बैंकों द्वारा निर्धारित समस्त प्रभारों की पुनरीक्षा करें व उचित यही रहेगा कि बैंकों को निर्देश दिए जाएँ कि वे कोई भी प्रभार लागू करने से पूर्व वे नियामक संस्था भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमोदन प्राप्त करें |

मनीराम शर्मा, एडवोकेट
सरदारशहर

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार