पकिस्तान के साथ क्रिकेट-खेल की कूटनीति वापस शुरू हो गयी है।इस खेल में अकूत पैसा न होता तो भला दोनों देश आपसी दुश्मनी के रोंगठे खड़े करने वाले प्रकरण इतनी जल्दी क्योंकर भूलती?क्या क्रिकेट हमारी सीमाओं की रक्षा करने वाले शहीद सैनिकों की ज़िंदगियों से ज़्यादा कीमती है?पहले पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी घटनाओं का अंत हो फिर क्रिकेट का खेल हो।
दरअसल,इस खेल में खूब पैसा है इसीलिए इस मुद्दे को बार-बार हवा दी जा रही है।अगर क्रिकेट-खेल से दोनों देशों को एक दूसरे के गले लगना होता तो कब के लग गए होते।कौन नहीं समझता कि इस पैसे के खेल में लोगों/दर्शकों का हित कम,दोनों देशों के क्रिकेट बोर्डों का भला अधिक होता है और उनकी झोलियाँ भर जाती हैं।
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर