राजनांदगाँव। हिंदी साहित्य संसार में, छत्तीसगढ़ को अविस्मरणीय राष्ट्रीय ख्याति प्रदान करने वाले साहित्य वाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की जयन्ती के अवसर पर शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. चंद्रकुमार जैन का सरस पॉडकास्ट जारी किया गया। डॉ. जैन ने साहित्य विभूति बख्शी जी के अक्षर योगदान को याद करने की अभिनव पहल करते हुए उनकी मर्मस्पर्शी कहानी झलमला को हृदयस्पर्शी स्वर दिया ।
डॉ. जैन ने बताया कि डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी जी ने अध्यापन, संपादन लेखन के क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य किए। उन्होंने कविताएँ, कहानियाँ और निबंध जैसी विधाओं में लेखन किया है। निबंधकार के रूप में उनकी विशेष ख्याति है। उनका पहला निबंध ‘सोना निकालने वाली चींटियाँ’ सरस्वती में प्रकाशित हुआ था। सन् 1920 में सरस्वती के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने (1925) तक उस पद पर बने रहे। 1927 में पुनः उन्हें सरस्वती के प्रधान संपादक के रूप में ससम्मान बुलाया गया। दो साल बहुमूल्य समय दिया। इतना ही नहीं, 1955 से 1956 तक खैरागढ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया।
प्रो. चंद्रकुमार जैन ने बताया कि बख्शी जी ने 1929 से 1934 तक अनेक पाठ्यपुस्तकों जैसे पंचपात्र, विश्वसाहित्य, प्रदीप की रचना की। 1949 से 1957 के दरमियान महत्वपूर्ण संग्रह कुछ और कुछ, यात्री, हिंदी कथा साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, कथानक आदि प्रकाशित हो चुके थे। सातवें दशक में उनके अनेक महत्वपूर्ण निबंध संग्रह प्रकाशित हुए। बख्शी जी का योगदान शिक्षा-साहित्य जगत ही नहीं, मानवता की अमूल्य धरोहर है। दिग्विजय कॉलेज राजनांदगाँव में हिंदी के प्राध्यापक बने और जीवन पर्यन्त वहीं अध्यापन किया।