अंग्रेजी की अनिवार्य पढ़ाई हमारे बच्चों को कैसे तबाह कर रही है, उसके दो उदाहरण अभी-अभी हमारे सामने आए हैं। पहला तो हमने अभी एक फिल्म देखी, ‘हिंदी मीडियम’ और दूसरा इंडियन एक्सप्रेस में आज दिव्या गोयल का एक लेख पढ़ा, जिसका शीर्षक था, ‘इंगलिश विंगलिश’ ! ‘हिंदी मीडियम’ नामक इस फिल्म में एक ऐसा बुनियादी विषय उठाया गया है, जिस पर हमारे फिल्मवालों का ध्यान ही नहीं जाता। इस फिल्म में चांदनी चौक, दिल्ली का एक सेठ अपनी बेटी को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में भर्ती करवाने के लिए तरह-तरह की तिकड़में करके हार जाता है। तब वह गरीबों वाले आरक्षण में सेंधमारी करना चाहता है। उस स्कूल में अपनी बेटी को भर्ती करवाने के लिए अपना पता एक ऐसे मोहल्ले का लिखवाता है, जहां मजदूर, घरेलू नौकर, ड्राइवर वगैरह रहते हैं। चेक करनेवाले उसे पकड़ न लें, इसलिए वह उसी गंदी बस्ती के घर में कुछ दिन अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहता है। उसकी बेटी को उस ‘दिल्ली ग्रामर स्कूल’ में प्रवेश मिल जाता है लेकिन उसके पड़ौस में रहनेवाले एक बेहद गरीब आदमी के बच्चे को सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं मिल पाता है कि उसका हक इस मालदार आदमी ने मार लिया है। यह मालदार आदमी खुद हिंदीप्रेमी है लेकिन अपनी पत्नी के दबाव में आकर उसने जो कुछ किया, उसे करने के बाद एक दिन अचानक उसे बोध होता है और वह कहता है- हम हरामी हैं। हमने गरीब का हक मार लिया। इस बीच वह उस सरकारी स्कूल की जमकर मदद करता है जिसमें उसके उस गरीब पड़ौसी का वही बच्चा पढ़ता है। एक दिन इस हिंदी मीडियमवाले सरकारी स्कूल और उस अंग्रेजी मीडियवाले स्कूल में प्रतिस्पर्धा होती है। सरकारी स्कूल के बच्चे अंग्रेजी मीडियमवाले स्कूल से कहीं बेहतर निकल जाते हैं। इस तरह यह फिल्म अंग्रेजी मीडियम का खोखलापन उजागर करती है। इस फिल्म में कई मार्मिक प्रसंग हैं, उत्तम अभिनय है और इसका संदेश स्पष्ट है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ के इस खोजी लेख में यह बताया गया है कि पंजाब के सरकारी स्कूलों में सबसे ज्यादा बच्चे अंग्रेजी में फेल होते हैं। हर विषय में 60-65 प्रतिशत नंबर लानेवाले बच्चे अंग्रेजी में 15-20 नंबर भी नहीं ला पाते। अंग्रेजी का रट्टा लगाने में अन्य विषयों की पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती। अंग्रेजी ट्यूशन पर गरीब मजदूरों, नौकरों, ड्राइवरों, रेहड़ीवालों को 500-500 रु. महिना अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। कई प्रतिभाशाली छात्रों ने कहा कि अंग्रेजी में उनके इतने कम नंबर आए कि उन्हें आत्महत्या करने की इच्छा होती है। अंग्रेजी की एक कुशल अध्यापिका इतनी हताश हुई कि शर्म के मारे वह मर जाना चाहती है। उसने बताया कि बच्चे future का उच्चारण फुटेरे, should का शाउल्ड, game का गामे और enough का एनाउघ करते हैं। हम क्या करें? कितना रट्टा लगवाएं ? माता-पिता और शिक्षकों को पता है कि अनिवार्य अंग्रेजी की पढ़ाई ने कितनी तबाही मचा रखी है। लेकिन वे क्या करें ? हमारे मूर्ख नेताओं ने नौकरियों, ऊंची अदालतों और कानून-निर्माण में अंग्रेजी को अनिवार्य बना रखा है।
Ved Pratap Vaidik
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