भारतवासियों को सुनहरे सपने दिखाने में पूरी महारत रखने वाली भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार आए दिन कोई न कोई लोकलुभावनी बातें करती दिखाई देती है। सरकार के रेल मंत्रालय की ओर से भी विभिन्न प्रकार की ऐसी घोषणाएं की जाती हैं जो सुनने में देश के लोगों के कानों को तो ज़रूर अच्छी लगती हैं परंतु वास्तव में ज़मीनी हकीकत से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। मिसाल के तौर पर सरकार के अनुसार देश में बुलेट ट्रेन चलाई जाएगी। कब,क्यों और कहां चलाई जाएगी यह पूछने और जानने की जनता को कोई ज़रूरत नहीं है। रेल मंत्रालय अपने यात्रियों की सुरक्षा का दावा करता सुनाई देता है परंतु पिछले दिनों दिल्ली के समीप बल्लभगढ़ में चलती ट्रेन में जुनेद की हत्या व उसके साथियों पर हुआ जानलेवा हमला तथा इसके अतिरिक्त असामाजिक तत्वों द्वारा अनेक स्थानों पर रेल यात्रियों को मारना-पीटना व उनके सामान चोरी कर ले जाना जैसी बातें सुनाई देती रहती हैं। यदि रेलयात्री सुरक्षित हैं तो ऐसे हादसे आिखर होते ही क्यों हैं? खबर आ रही है कि भारतीय रेल ने अब वातानुकूलित श्रेणी के 3 टियर इकोनोमी एसी कोच लगाए जाने की योजना बनाई है। सूत्रों के अनुसार इस श्रेणी के टिकट एस 3 टियर के टिकट से भी सस्ते होंगे। इसमें यात्रियों को कंबल आदि नहीं दिया जाएगा क्योंकि इस कोच का तापमान 24-25 डिग्री तक निर्धारित रहेगा।
निश्चित रूप से दुनिया के अन्य कई देशों की तरह भारत में भी तेज़ रफ़्तार वाली रेलगाडिय़ां चलनी ज़रूरी हैं। रेल यात्रियों के आराम के लिए सभी गाडिय़ों में पर्याप्त वातानुकूलित कोच भी होने चाहिए। आरक्षण में प्रतीक्षा व आरएसी जैसी सूचियां समाप्त कर केवल कन्फर्म टिकट ही यात्रियों को मिलनी चाहिए। परंतु इन सबसे पहले यह भी ज़रूरी है कि रेल यात्रियों को वर्तमान समय में आए दिन होने वाली परेशानियों से निजात भी मिलनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में खासतौर पर देश के पूर्वी राज्यों में आने-जाने वाली गाडिय़ों में वातानुकूलित कोच में कोई भी दबंग व्यक्ति या दो-चार पांच लोगों का संगठित गिरोह बिना किसी टिकट के घुस आता है और यात्रा शुरु कर देता है। न तो टिकट निरीक्षक उससे कुछ कहता व पूछता है न ही कोई गश्ती पुलिसकर्मी उनसे कोई सवाल करता है। यहां तक कि ऐसे लोग कई बार टिकटधारी यात्रियों से भी सीट पर बैठने -लेटने को लेकर उलझ जाते हैं। रेल में बाहरी लोगों द्वारा खाने-पीने का सामान बेचने की मनाही है। परंतु लगभग पूरे देश में बाहरी लोगों को ट्रेन के अंदर आकर तरह-तरह के सामान बेचते देखा जा सकता है। ज़ाहिर है यह सब काम पुलिस व रेल विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से ही होता है।
भारतीय रेल की ओर से वातानुकूलित श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्रियों को एक कंबल,दो चादर,एक तकिया व एक छोटी तौलिया उपलब्ध कराने का प्रावधान है। नियमानुसार प्रत्येक यात्री को धुली हुई बेडिंग दी जानी चाहिए। परंतु अफसोस की बात है कि यह सुविधा उपलब्ध कराने वाली कंपनीज़ के कर्मचारी यात्रियों को इस्तेमाल की हुई चादरें तथा गंदे व फटे हुए कंबल आदि मुहैया कराते हैं। कई बार यह बेड रोल इतना गंदा व मैला होता है कि इसे ओढऩा-बिछाना तो दूर,इसे छूने तक का मन नहीं करता। परंतु यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिससे कोई यात्री इंकार नहीं कर सकता। क्या रेलवे में नए 3 टियर एसी इकनोमि कोच शुरु करने से पहले वर्तमान एसी कोच में मिलने वाली सुविधाओं में सुधार करने की आवश्यकता नहीं है? इसी प्रकार एसी कोच के आगे-पीछे लगने वाले स्लीपर श्रेणी के कोच के बीच का शटर प्राय: खुला रहता है। शटर खोलने का काम रेल में सामान बेचने वाले लोगों तथा टिकट निरीक्षकों द्वारा एक कोच से दूसरे कोच में अपनी सुविधानुसार आने-जाने के लिए किया जाता है। परंतु इनकी इस लापरवाही व गैर जि़म्मेदारी की वजह से स्लीपर क्लास के यात्रियों के अतिरिक्त कुछ शरारती क़िस्म के लोग न केवल एसी कोच के शौचालय को इस्तेमाल कर उसे गंदा करते रहते हैं बल्कि उसका पानी भी जल्दी समाप्त कर देते हैं। इसके अतिरिक्त चोर-उचक्के भी वातानुकूलित कोच में इधर से उधर घूमने-फिरने लगते हैं तथा यात्रियों के सामान चोरी होने का भय बना रहता है। रेल विभाग चलती गाडिय़ों में सफाई करने-कराने का दावा भी करती है परंतु सफाई का काम भी नियमित तरीके से होने के बजाए नाममात्र रूप में तथा चुनिंदा स्टेशन पर या उसके आस-पास किया जाता है। रेल प्रशासन को चाहिए कि सर्वप्रथम वर्तमान व्यवस्था में सुधार करते हुए इन खामियों को दूर करने की कोशिश करे।
भारतीय रेल के पूर्व-मध्य ज़ोन के भारत-नेपाल सीमा छोर पर स्थित समस्तीपुर-जयनगर रेल लाईन पर हालांकि कई अत्यंत महत्वपूर्ण रेलगाडिय़ां चलाई जाती हैं। परंतु आश्चर्य की बात है कि इस सेक्शन पर आज भी कई महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन ऐसे हैं जो अपने-आप में जि़ला मुख्यालय का स्टेशन होने के बावजूद वहां केवल एक ही प्लेटफार्म बना है। परिणामस्वरूप यदि प्लेटफार्म नंबर एक पर कोई रेलगाड़ी खड़ी होती है उसी समय दूसरी व तीसरी रेलगाड़ी बिना प्लेटफ़ार्म के ही बुला ली जाती है। नतीजतन यात्रियों को अत्यधिक परेशानियों का सामना करते हुए या तो एक नंबर प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन में घुसकर उस पार जाना होता है या फिर उस ट्रेन के आगे-पीछे से घूमकर लाईन पर पड़े पत्थरों पर अपने भारी सामान के साथ दौड़ते हुए अपने निर्धारित कोच तक पहुंचने की कोशिश करनी पड़ती है। दरभंगा जि़ले का मुख्यालय लहेरिया सराय स्टेशन ऐसे ही दुर्भाग्यशाली रेलवे स्टेशन में एक है जहां रोज़ाना हज़ारों यात्रियों को इस प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। इस असुविधा का सबसे ज़्यादा असर बुज़ुर्गांे व महिलाओं पर पड़ता है। कई बार इस प्रकार की दुवर््यवस्था के चलते अनेक रेलयात्रियों को दुर्घटना का शिकार भी होना पड़ा है। परंतु रेल मंत्रालय समय-समय पर तरह-तरह की लोकलुभावनी घोषणाएं तो करता रहता है परंतु इन बुनियादी असुविधाओं के निवारण की ओर कोई ध्यान नहीं देता।
इसी प्रकार दिल्ली,मुंबई,चेन्नई तथा कोलकाता जैसे कई महानगरों में सुबह व शाम के समय चलने वाली लोकल रेलगाडिय़ों में जिस अंदाज़ से यात्री सफर करते हैं वह भी कम दर्दनाक नहीं है। ट्रेन के डिब्बे के दोनों ओर यहां तक कि खिड़कियों तक पर यात्री एक-दूसरे को पकड़ कर लटके रहते हैं। कोच की खिड़कियों में सब्जि़यों के टोकरे,दूध के डिब्बे,साईकलें तथा इस प्रकार के और कई सामान लटके दिखाई देते हैं। कई बार यात्रियों व इस प्रकार के सामानों की संख्या इतनी अधिक होती है कि डिब्बे तो नज़र ही नहीं आते। ज़ाहिर है इस प्रकार की यात्रा से सभी रेलयात्रियों को बहुत तकलीफ व परेशानियां उठानी पड़ती हैं तथा इन्हीं में से कोई न कोई रेलयात्री किसी न किसी हादसे का शिकार भी होता रहता है। तमाशा व दुर्व्यवस्था जैसी दिखाई देने वाली इस यात्रा व्यवस्था में पूरी तरह सुधार किए जाने की ज़रूरत है। ऐसे यात्रियों को उनकी सुविधा व समय के अनुसार कोच मुहैया कराए जाने चाहिए। जिससे कि दैनिक यात्री पूरी सुरक्षा व आराम के साथ अपने कार्यालय व घरों तक पहुंच सकें तथा दूध व सब्ज़ी जैसी दैनिक उपयोगी कच्च्ेा सामान भी सुरक्षित तरीके से अपने निर्धारित स्थानों तक पहुंचाए जा सकें। जब तक इस प्रकार की बुनियादी सुविधाओं का समाधान भारतीय रेल विभाग नहीं करता तब तक बुलेट ट्रेन चलाना तथा वातानुकूलित की नई श्रेणी गढऩा जैसी घोषणाएं बेमानी सी प्रतीत होती हैं।य़
Nirmal Rani (Writer)
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