पांच दशक के सैन्य शासन के बाद करीब दो साल पहले लोकतंत्र की राह पर निकला म्यांमार जल्द ही महत्वपूर्ण मुकाम हासिल करना चाहता है, इसलिए राष्ट्रपति थ्येन सेन बड़े वैश्विक आयोजनों में शामिल होने से पहले राजनीतिक बंदियों की रिहाई करके दुनिया के समक्ष देश की नई तस्वीर पेश करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।
म्यांमार में कई पीढ़ियों के लोकतंत्र समर्थक नेता, वकील, प्रोफेसर, पत्रकार, छात्र और अन्य राजनीतिक कार्यकर्ता लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष करते हुए लंबे समय से जेलों में बंद हैं। दशकों तक उन्हें किसी ने नहीं पूछा। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सांग सू की भी दशकों तक जेल में रहीं और रिहा होने के बाद वह देश के अन्य लोकतंत्र समर्थक नेताओं को मुक्त कराने के लिए शांतिपूर्वक संघर्ष कर रहीं हैं। म्यांमार में लोकतंत्र लौट रहा है, इसका भी सू की बखूबी प्रचार कर रहीं हैं और इस क्रम में उन्होंने भारत सहित कई अन्य लोकतांत्रिक देशों की यात्रा भी की है। म्यांमार लोकतंत्र की राह पर तेजी से अग्रसर है, यही बात संयुकत राष्ट्र महासिचव बान की मून भी कहते हैं।
राष्ट्रपति थ्येन सेन विश्व मंच पर देश की लोकतांत्रिक छवि पेश करने पर जुटे हैं। हाल ही में ब्रुनेई में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान की बैठक में हिस्सा लेने से पहले उन्होंने अपने यहां बंद 56 राजनीतिक बंदियों की रिहाई की घोषणा करके संदेश देना चाहा कि उनके देश में लोकतंत्र की शुरुआत हो चुकी है और वहां राजनीतिक स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया जा रहा है। उन्होंने विश्व समुदाय को बंदियों की रिहाई का आदेश देकर यह भी संदेश दिया है कि म्यांमार में खुला और पारदर्शी माहौल है और सभी के पास समान राजनीतिक अधिकार हैं।
सरकार ने जुलाई में भी 70 राजनीतिक बंदियों को उस समय रिहा करने की घोषणा की थी, जब राष्ट्रपति थ्येन संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे थे। उन्होंने तब भी पूरी दुनिया को संदेश दिया था कि उन्हें लोकतांत्रिक देश की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। उन्होंने उसी दौरान यह भी घोषणा की थी कि इस साल के अंत तक सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाएगा। एक अनुमान के अनुसार देश की जेलों में अब भी 130 के आसपास राजनीतिक बंदी हैं।
म्यांमार की जेलें कभी दस हजार से अधिक राजनीतिक बंदियों का घर हुआ करती थीं, लेकिन अब स्थिति सुधारी है और वहां से बड़ी संख्या में बंदियों को रिहा किया जा चुका है। जेलों से रिहा हो रहे राजनीतिक कैदियों का कहना है कि अब गिनती के ही उनके साथी जेलों में हैं और उनकी संख्या धीरे धीरे कम हो रही है। बंदियों में कई पीढ़ियों के राजनीतिक कार्यकर्ता हैं और सभी को देश में लोकतंत्र की बहाली की वकालत करने के आरोप में सलाखों के पीछे ठूंसा गया था। राष्ट्रपति थ्येन ने मार्च 2011 में देश की बागड़ोर संभाली और तब से वह विश्व समुदाय को विश्वास दिलाने में लगे हैं कि म्यांमार अब लोकतांत्रिक देश है।
संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार में मानवाधिकार पर नजर रखने के लिए विशेष प्रतिनिधि के तौर पर तोमस ओजे किंताने को भेजा है। तोमस ने हाल में राजनीतिक बंदियों की रिहाई पर म्यांमार सरकार की सराहना की और कहा है कि इन सभी बंदियों को देश की पूर्व सैन्य सरकार ने अन्यायपूर्ण तरीके से जेलों में ठूंस दिया था। उनका कहना है कि राजनीतिक कैदियों की रिहाई उनके अथवा उनके परिवार के सदस्यों के लिए ही नहीं, बल्कि देश में लोकतंत्र की बहाली और देश को फिर से पटरी पर लाने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।
मानवाधिकार के विशेष प्रतिनिधि का कहना है कि जिन लोगों को रिहा किया जा रहा है, उनमें 1988 और फिर 1996 के दौरान बंद हुए राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हैं। उन्हें इस बात की भी चिंता है कि अब भी बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है। सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि कई लोगों को राजनीतिक विद्वेष के कारण गिरफ्तार किया गया है। पिछले साल जून जुलाई में भी बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिक बंदियों की रिहाई का काम सिद्धांत आधारित और बिना शर्त होना चाहिए। रिहाई के बाद उन्हें कहीं भी जाने और किसी भी स्थान पर रहने की छूट होनी चाहिए। जेल से बाहर उन्हें पूरी राजनीतिक और सामाजिक आजादी मिलनी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के विशेष प्रतिनिधि म्यांमार में मानवाधिकार की स्थिति पर कड़ी नजर रखे हैं और सरकार का प्रयास अपनी छवि सुधारने के लिए उन्हें हर संभव यह विश्वास दिलाना है कि देश की शासन व्यवस्था लोकतंत्र के अनुरूप है, इसलिए उसे अब विश्व मंच पर लोकतांत्रिक देश के रूप में देखा जाना चाहिए। विशेष प्रतिनिधि म्यांमार में चल रही मानवाधिकार की स्थिति पर संतुष्ट हैं और वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की आम बैठक में वहां की स्थिति पर जल्द ही रिपोर्ट भी पेश कर देंगे।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने महासभा की हाल में ही न्यूयॉर्क में हुई 68वीं बैठक के दौरान म्यांमार के मित्र देशों के प्रतिनिधियों के साथ अलग से बातचीत की। इस बैठक में भी यही कहा गया कि म्यांमार में सुधार हो रहा है और यह देश तेजी से लोकतंत्र की राह पर चल रहा है। उन्होंने राष्ट्रपति थ्येन की यह कहते हुए तारीफ भी कि वह देश को लोकतंत्र के साथ ही शांति, खुशहाली तथा खुली आर्थिक व्यवस्था की तरफ ले जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने सुरक्षा के स्तर पर देश में और सुधार की जरूरत पर बल दिया है। उनका कहना है कि सांप्रदायिक दंगे होंगे, तो इससे देश की छवि खराब होगी और उसने अपनी छवि को सुधारने के लिए अब तक जो भी प्रगति की है, वह सब धुल जाएगा, इसलिए म्यांमार सरकार को देश की छवि को बनाने के लिए सामाजिक स्तर पर भी सख्ती से काम करने की जरूरत है।
म्यांमार में 1988 के सैन्य तख्तापलट के दौरान लोकतंत्र समर्थकों के सपने को चकनाचूर कर दिया गया था, लेकिन आज स्थिति बहुत बदली है और वहां लोकतंत्र का रास्ता दिखाई देने लगा है। पिछले दो साल के दौरान हजारों राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जा चुका है और म्यांमार अपनी आर्थिक हालात में सुधार लाने के लिए वैश्विक स्तर पर बाजार तलाश रहा है। वह दुनिया के साथ अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह सहभागिता चाहता है।
(लेखक पत्रकार हैं और हिन्दुस्तान टाइम्स समूह से जुड़ें हैं।…)
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