व्यक्तिगत विशेषतायें —
१- कॄष्ण के जन्म के समय और उनकी आयु के विषय में पुराणों व आधुनिक मिथकविज्ञानियों में मतभेद हैं . कुछ उनकी आयु १२५ और कुछ ११० वर्ष बताते हैं . व्यक्तिगत रूप से द्वितीय मत अधिक उचित प्रतीत होता है .
२- कृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल था और उनके शरीर से एक मादक गंध स्रावित होती थी अतः उन्हें अपने गुप्त अभियानों में इनको छुपाने का प्रयत्न करना पडता था . जैसे कि जरासंध अभियान के समय . वैसे यही खूबियाँ द्रौपदी में भी थीं इसीलिये अज्ञातवास में उन्होंने सैरंध्री का कार्य चुना ताकि चंदन , उबटन , इत्रादि में उनकी गंध छुपी रहे .
३- कॄष्ण की माँसपेशियाँ मृदु परंतु युद्ध के समय विस्तॄत हो जातीं थीं , इसीलिये सामन्यतः लडकियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था . [ इस दॄष्टि से कर्ण , द्रौपदी और कॄष्ण के शरीर म्यूटेंट प्रतीत होते हैं ]
४- कॄष्ण के परमधामगमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थी .
परिवार —
१-कॄष्ण की परदादी ‘ मारिषा ‘ और सौतेली माँ रोहिणी [ बलराम की माँ ] ‘ नाग ‘ जनजाति की थीं
२- कॄष्ण से बदली गयी यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं .
३- कॄष्ण के पालक पिता नंद ‘ आभीर ‘ जाति से संबंधित थे जिन्हें आज अहीर कहा जाता है जबकि उनके वास्तविक पिता वसुदेव आर्यों के प्रसिद्ध ‘ पंच जन ‘ में से एक ‘ यदु ‘ से संबंधित गणक्षत्रिय थे जिन्हें उस समय ‘ यादव ‘ कहा जाता था .
४-कॄष्ण की प्रेमिका ‘ राधा ‘ का जिक्र महाभारत , हरिवंशपुराण , विष्णुपुराण और भागवतपुराण में नहीं है , उनका उल्लेख बॄम्हवैवर्त पुराण , गीत गोविंद और जनश्रुतियों में रहा है .
५- राधा कृष्ण से कई वर्ष बडी थीं और उनका विवाह ‘ रायण ‘ या ‘ अय्यन ‘ नाम के गोप से हुआ था .
६- कॄष्ण की प्रसिद्ध बहन सुभुद्रा देवकी की पुत्री नहीं थीं बल्कि रोहिणी { ?} की पुत्री थीं और वे उनसे २२ वर्ष छोटी थीं .
७- कॄष्ण के प्रथम पुत्र प्रद्युम्न का अपहरण जन्म के कुछ समय बाद ही हो गया था जो १६- १७ साल बाद लौटा अपनी पत्नी माया के साथ जो आयु में रुक्मिणी के बराबर थी .
८- जैन परंपरा के अनुसार कॄष्ण के चचेरे भाई तीर्थंकर नेमिनाथ थे जो हिंदू परंपरा में ” घोर अंगिरस ” के नाम से प्रसिद्ध हैं
९- कॄष्ण अंतिम वर्षों को छोड्कर कभी भी द्वारिका में ६ महीने से ज्यादा नहीं रहे .
१०- नारद से वार्तालाप में उन्होंने स्वीकार किया था कि वे अपनों [ बलराम , सत्यभामा , कॄतवर्मा , अक्रूर और सांब ] के कॄत्यों से ही सर्वाधिक क्षुब्ध थे .
११- कॄष्ण के वंश में एकमात्र जीवित व्यक्ति उनका प्रपौत्र वज्रनाभ था जिसे युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ के सिंहासन पर बैठाया .
अस्त्र – शस्त्र और शिक्षा —
१-अपनी औपचारिक शिक्षा मात्र कुछ महीनों में पूरी कर ली थी .
२- एसा माना जाता है कि घोर अंगिरस अर्थात नेमिनाथ के यहाँ रहकर भी उन्होंने साधना की थी
३-अनुश्रुतियों के अनुसार कॄष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था और डाँडिया रास उसी का नॄत्य रूप है ‘.कलारीपट्टु ‘ के एक स्कूल का आचार्य कॄष्ण को भी माना जाता है . इसी कारण ‘ नारायणी सेना ‘ भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गयी थी .
४-कृष्ण के रथ का नाम ” जैत्र ” था और उनके सारथी का नाम दारुक/ बाहुक था . उनके अश्वों के नाम थे शैव्य , सुग्रीव , मेघपुष्प और बलाहक .
५- कॄष्ण के धनुष का नाम शारंग और मुख्य आयुध चक्र का नाम ‘ सुदर्शन ‘ था . वह लौकिक , दिव्यास्त्र और देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य कर सकता था उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल २ अस्त्र और थे पाशुपतास्त्र [ शिव , कॄष्ण और अर्जुन के पास थे ] और प्रस्वपास्त्र [ शिव , वसुगण , भीष्म और कॄष्ण के पास थे ] .
६- कृष्ण के खड्ग का नाम ” नंदक ” , गदा का नाम ” कौमौदकी ” और शंख का नाम पांचजन्य था जो गुलाबी रंग का था
७-प्रायः यह मिथक स्थापित है कि अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे परंतु वास्तव में कॄष्ण इस विधा में भी सर्वश्रेष्ठ थे और एसा सिद्ध हुआ मद्र राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में जिसकी प्रतियोगिता द्रौपदी स्वयंवर के ही समान परंतु और कठिन थी . यहाँ कर्ण और अर्जुन दोंनों असफल हो गये और तब कॄष्ण ने लक्ष्यवेध कर लक्ष्मणा की इच्छा पूरी की जो पहले से ही उन्हें अपना पति मान चुकीं थीं .
युद्ध — कृष्ण ने कई अभियान और युद्धों का संचालन किया था परंतु ३ सर्वाधिक भयंकर थे –
१- महाभारत
२- जरासंध और कालयवन के विरुद्ध
३- नरकासुर और बाणासुर के विरुद्ध
विशेष द्वंद्व युद्ध [ One to One combat ]
१- १६ वर्ष की आयु में विश्वप्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया [ मार्शल आर्ट ]
२-मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया [ मार्शल आर्ट ]
३-कॄष्ण ने आसाम में बाणासुर से युद्ध के समय भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वर ज्वर के विरुद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम ” जीवाणु युद्ध ” किया था .
४- कॄष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और पाशुपतास्त्र निकाल लिये थे . बाद में देवताओं के हस्तक्षेप से दोंनों शांत हुए .
५- काशी के राजा और वहाँ के पाखंडी ब्राह्मणों के विरुद्ध अभियान किया और काशी को जलाकर राख कर दिया .
महान कार्य –
१कृष्ण ने २ नगरों की स्थापना की थी – द्वारिका [ पूर्व मे कुशावती ] और इंद्रप्रस्थ [ पूर्व में खांडवप्रस्थ ].
२- उन्होंने परशुराम के बाद कलारिपट्टू के एक और स्कूल की नींव रखी जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई .
३-स्त्री सम्मान की पुनःस्थापना .
४- कॄष्ण ने १६००० स्त्रियों से विवाह नरकासुर से छुडाई गयी और समाज की दृष्टि से तथाकथित रूप से ‘ पतित ‘ इन स्त्रियों और उनकी ‘ अवैध ‘ संतानों को क्रमशः ” पति ” और ” पिता ” का नाम देने और उनका भरण पोषण करने हेतु उनकी करुण प्रार्थना पर किया था क्यों कि इन स्त्रियों को उनके पतियों , पिताओं और भाइयों ने स्वीकार करने से मना कर दिया था .
५- राधा के साथ प्रेम शब्द को परिभाषित किया जो सामजिक , आयु और वर्ण से परे था .
६- गोवर्धनपूजा से लेकर काशी दहन अभियान तक के रूप में जातिवादी स्वार्थी ब्राह्मण वर्ग के विरुद्ध निरंतर अभियान .
७- स्वार्थी और मदांध राजतंत्र समर्थक क्षत्रियों का निरंतर विरोध .
८- श्रीमद्भगवतगीता के रूप में आध्यात्मिकता की वैज्ञानिक व्याख्या दी जो मानवता के लिये आशा का सबसे बडा संदेश थी, है और सदैव रहेगी!