शायद आप भी यह नहीं जानते होंगे कि तेल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल की कीमत में कितना इजाफा कर दिया है ? पिछले एक महीने में तेल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दामों में 12 फीसदी का इजाफा कर दिया है,इंडियन ऑयल के मुताबिक 1 जुलाई से 15 अगस्त के बीच पेट्रोल की कीमतों में 5 रुपए की बढ़ोतरी हुई है,जबकि डीजल की कीमतों में 4 रुपए का उछाल आया है, औऱ आप यह जानकर चौक जाएंगे कि डेढ़ महीने में वास्तव में क्रूड आयल की कीमतें लगभग 7.25 फीसदी घटी हैंl
मीडिया का रोल यह है कि वह आज 12 प्रतिशत की वृद्धि होने पर वह मुँह खोलने को तैयार नही हैl
साल 2014 के जून के महीने में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी तब पेट्रोल की कीमत 82 रु चली गयी थी और देश में हाहाकार मच गया थाl आज उसी आयल की कीमत 49 डालर है और कीमत लगभग 69 रु के आसपास है यदि इस हिसाब से देखे तो कल जब क्रुइड की कीमत वापस 110 से 115 के बीच चली जाएगी तो आपको पेट्रोल 150 रु लीटर मिलने से दुनिया की कोई ताकत नही रोक पायेगी l
ओर हम कुछ नही कर पाएंगे आप समझिए कि जून 2010 से पहले पेट्रोल, डीजल, एलपीजी इत्यादि की कीमतें सरकार द्वारा नियंत्रित और निर्धारित होती थीं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रोज-रोज बदलती कच्चे तेल की कीमतें पेट्रोल, डीजल इत्यादि की कीमतों को प्रभावित नहीं करती थीं।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने के कारण होने वाले नुकसानों की भरपाई ‘ऑयल बांड’ जारी करते हुए कर दी जाती थी और जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें कम होती थीं तो ‘ऑयल बांड’ वापिस खरीद लिये जाते थे। वर्ष 2010, जून माह में सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बाजार पर छोड़ना तय कर दिया
लेकिन आप को आश्चर्य होगा कि उस वक्त भी तेल कम्पनियो को कोई नुकसान नही होता था।
फिर एक दौर आया जब डीजल और पेट्रोल के दाम सरकारी नियंत्रण से छूटकर सरकारी तेल कंपनियों के द्वारा तय होने लगे और कच्चे तेल के 15 दिनों के औसत मूल्यों के आधार पर दोनों तेलों के दाम तय किये जाते थे यह दौर भी लम्बा चला।
जून 2010 में जब तेल की कीमतों पर नियंत्रण समाप्त किया गया तो मात्र एक ही महीने में पेट्रोल की कीमत 6 रुपए प्रति लीटर बढ़ गई थी। यानी कहा जा सकता है कि नियंत्रण समाप्त होते ही पेट्रोलियम कंपनियों ने अधिकतम लाभ कमाने की दृष्टि से नई व्यवस्था का नाजायज लाभ उठाया था
ओर आज साल 2017 में भी यही कहानी दोहराई गयी इस बार भी एक महीने में दाम 5 रुपये तक बढे हैं!
जहाँ तक अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में रोज बदलाव के तर्क के आधार पर पेट्रोल-डीजल के दाम बदलने की बात की गयी थी तो आपको इस संदर्भ में याद दिला दूं कि बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा तेल खरीद के सौदे अग्रिम तौर पर ही करती हैं इसलिए कीमतों में बदलाव उन्हें प्रभावित नहीं करता।
एक तर्क दिया जाता है कि विकसित देशों में भी ऐसा होता है, तो यह तर्क भी गलत हैं क्योंकि वहां तेल की कीमतें प्रतियोगिता के आधार पर कंपनियां अलग-अलग तय करती हैं जबकि हमारे यहां सभी तेल कंपनियों द्वारा इकट्ठा मिलकर कीमत तय की जाती है। यानी ये कंपनियां कार्टेल बनाकर कीमतों को ऊंचा रख सकती है !
तेल के दामो के ऊपर सरकार अब तक एक स्टेबलाइजर का रोल निभाती आई थी इस भूमिका से पैर पीछे खींच लेने से अब बेहद परेशानी पैदा होगी और इकनॉमी में व्यवहारगत उतार-चढ़ाव पैदा होंगे जिससे सामान्य व्यवहार में दिक्कतें आएगी जो जीएसटी की व्यवस्था पर भी अपना असर डालेगी।
ईंधन के दाम रोजाना घटाने-बढ़ाने की छूट मिलने पर रिलायंस इंडस्ट्रीज और एस्सार ऑयल जैसी प्राइवेट कंपनियां भी अपने हिसाब से कीमतें तय करने के लिए आजाद हो गयी हैं !पहले उन्हें सरकारी कंपनियों की तरफ से तय कीमतों पर पेट्रोल और डीजल की बिक्री करनी पड़ती थी, इस से अब वह कार्टेल में घुसकर आसानी से अपनी बात मनवा सकेगी, क्योकि सरकार खुद अपनी आयल कम्पनियो के पर कतर देगी टेलीकॉम के क्षेत्र में बीएसएनएल का भट्टा भी इसी तरह से बैठाया गया थाl