मित्रो ,
कल हरियाणा के पंचकोला की घटना को सुन व देख कर ये संस्मरण याद आ रहा है जिसे अहोभाव की दशा मे आप के विचारण विचारण हेतु शेयर कर रहा हूँ :—
अमेरिका मे , भगवान श्रीरजनीस को बिना किसी गिरफ़्तारी वारंट के बिना किसी प्राथमिकी के अचानक अमरीकी प्रशासन ने गिरफ़्तार कर लिया था ।
और १२ दिनों तक एक निर्दोष और निहत्थे व्यक्ति को बेड़ियों , हथकड़ियाँ , और ज़ंजीरों से जकड़ कर विभिन्न जेलों मे घुमाते हुऐ उन्हे यातना के कई आयामों से गुज़ारा गया था ।
विश्व मीडिया बताती है , जिसका ओशो ने भी अपने प्रवचनों मे उल्लेख किया है कि उस समय पुरे विश्व मे ओशो की माला और गैरिक धारण करने वाले संन्यासियो की संख्या करोड़ों मे थी। पर पुरे विश्व मे कही कोई अशांति पुर्ण हिंसक प्रदर्शन नही हुऐ ।
ओशो जिस-जिस जेलों मे पहुँचते थे वहाँ सुबह – सुबह आदमीयो की भीड़ नही वल्कि सैकड़ों की संख्या मे ट्रक फूलो से भरे पहुच जाते थे ।
अकलोहोमा जेल के जेलर ने अपनी आत्मकथा मे लिखा है मै सेवानिवृत्ति के क़रीब था मैने बहुत क़ैदियों को अपनी जेलें मे आते जाते देखा , मेरी जेल – जेल थी , पर जब ये शख्श ( भगवान ) मेरी जेल मे आया तो मैने महसूस कि और देखा कि मेरी जेल एक चर्च के रुप मे हो गई थी । पुरी जेल फूलो से भर गई थी कोई जगह ख़ाली नही थी ।
तब मै ख़ुद उस शख़्स के पास गया और मेरी आँखो से अनायास अश्रु बह रहे थे मै समझ नही पा रहा था और भरे गले से मैने उनसे पुछा कि , भगवान इन फूलो का मै क्या करुँ ?
और जैसे ही मेरे मुख से भगवान निकला , भगवान की मेरी तरफ प्रेम पूर्ण दृष्टि हुई और बोले इन फूलो को पुरे शहर से स्कूलों और कालेजो मे भिजवा दिया जाय ये मेरी तरफ से उस विद्यार्थियों को भेंट है जो अभी शिक्षा ग्रहण कर रहे है ।
जब ओशो को जेल से अदालत लाया जाता था तब उनके लाखों संन्यासी फूल नगर वासियों को भेंट करते थे और शांतिपूर्ण ढंग से प्रतीक्षारत रहते कि कब ओशो कोर्ट से बाहर आयेगे ।
जब ओशो कोर्ट से पुन: गुज़र जाते तो कोर्ट से लेकर जेल तक की सड़क फूलो से पटी होती थी ।
बहुत से बच्चे हाथो मे तख़्तियाँ लेकर मौन खड़े होते जिसपर लिखा होता था :–
“” वे फूलो से भी बहुत कोमल है उन्हे यातनायें न दो “” ।
पूरे संसार से कही ऐसी कोई ख़बर नही थी कि कही किसी संन्यासी ने को उग्र आचरण किया या उग्र व्यक्तव्य दिया हो ।
जब भी कोई उनसे भगवान के सम्बध मे कुछ पुछता तो आँखो मे आँशुओ के साथ यही कहते अस्तित्व कुछ प्रयोग कर रहा है , हाँ ये हमारे लिये थोडा असहनीय कष्ट का कारण जरुर है जिससे हमारे आँशू बाहर छलक जा रहे है – जैसी उसकी मर्ज़ी , हमारे सद्गुरू ने हमे ये सिखा दिया है कि कैसे परम स्वीकार के भाव मे जिया जाता है ।
जिस जेल से भगवान को जाना होता — वहाँ का जेलर अपने परिवार के साथ उन्हे विदा करने के लिये उपस्थित होता और भगवान से आग्रह करता कि क्या मेरे परिवार के साथ आप अपनी एक फ़ोटो हमे भेंट करेगे । भगवान मधुर मुस्कान से मुस्कराते और वही खड़े जाते और कहते कि आओ ।
ये हमारे सद्गुरू की हमे शिक्षा और दीक्षा थी ।
कल मै चकित हो रहा था कि इस शांति के दूत बाबा रामरहीम ने क्या अद्भुत शिक्षा अपने भक्तों को दी है — पूरे शहर को आग मे झोंक दिया ३० लोग मारे गये और न बाबा और न उनके कोई प्रधान ने कोई व्यक्तव्य ऐसा नही दिया जिससे उग्रता और हिंसा के चरम पर पहुँचे उनके अनुयायी ठहर सके। आश्चर्य होता है ।
अनुयायी शब्द बडा समझने वाला है — अपने शिक्षक के बताये मार्ग पर ठीक ढंग से चलने वाले को अनुयायी कहते है ।
बहुत पहले जब भगवान भारत मे थे तब भारत मे ही ओशो पर छूरा फैंका गया ।
भगवान ने तत्क्षण कहा , कोई उन सज्जन को कुछ भी न कहे और उन्हे छुवे भी नही , वे कुछ कहना चाहते है , ये उनके कहने का ढंग है उन्हे बिल्कुल छोड़ दिया जाय ।
दूसरे दिन भगवान ने प्रवचन के मध्य कहा :–
मै यह देख कर आनंदित हुँ कि तुम मे से किसी ने उन सज्जन को कोई चोट नही पहुँचाई , वल्कि प्रेम से उन्हे बाहर ले जाकर जाने दिया गया । यही मेरी शिक्षा है । कल कोई मेरी हत्या का भी प्रयास करे या जान भी लेले , लेकिन तुम उन्हे प्रेम ही देना ।
ये सद्गुर जो सद्गुरू है उसकी शिक्षाये है जो आज भी हम प्रेमियों के लिये मार्गदर्शन बन कर हमारा मार्ग प्रशस्त करती है ।