सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी से उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार में यश भारती जीतने वालों की जो लिस्ट सामने आयी है उसमें सैफई महोत्सव के सूत्रधार टीवी एंकर, मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी जिन्होंने खुद ही अपने नाम की अनुशंसा की थी, एक शोधकर्ता ने जिसने अपनी उपलब्धि मेघालय में किया गया दो महीने लंबा “फील्डवर्क” बतायी थी, “ज्योतिष और मनोविज्ञान आधारित युगांतकारी वस्त्र निर्माता” के नाम शामिल हैं। इस लिस्ट में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के चाचा और एक स्थानीय संपादक द्वारा सुझाए गए नाम भी हैं। अखिलेश यादव सरकार ने साल 2012 से 2017 के बीच ये पुरस्कार बांटे थे।
यश भारती विजेता को 11 लाख रुपए की पुरस्कार राशि और 50 हजार रुपए मासिक पेंशन मिलती थी। यश भारती पुरस्कार की स्थापना अखिलेश यादव के पिता और यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव ने 1994 में मुख्यमंत्री रहते हुए की थी लेकिन बाद में आयी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकारों ने ये पुरस्कार बंद कर दिए थे जिन्हें अखिलेश यादव सरकार ने दोबारा शुरू किया था।
इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के तहत अखिलेश यादव के कार्यकाल में यश भारती पाने वाले 142 लोगों का ब्योरा मिला है। हालांकि एक अनुमान के मुताबिक अखिलेश सरकार ने करीब 200 लोगों को ये पुरस्कार दिया था। जिन लोगों का ब्योरा इंडियन एक्सप्रेस को मिला है उनकी लिस्ट देखते हुए ये साफ है कि यश भारती बांटने में जमकर भाई-भतीजावाद हुआ है। पुरस्कार देने के लिए कोई तय आवेदन प्रक्रिया या मानदंड नहीं था। कई लोगों ने सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को अपने आवेदन भेजे थे जबकि ये पुरस्कार आधिकारिक तौर पर राज्य का संस्कृति मंत्रालय देता था।
आरटीआई के तहत मिली सूचना के अनुसार, कम से कम 21 लोगों को सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय में आवेदन भेजने के बाद यश भारती पुरस्कार मिला था। कम से कम छह पुरस्कार विजेता ऐसे हैं जिनका नाम समाजवादी पार्टी नेताओं ने बढ़ाया था। दो नाम तो अखिलेश यादव के चाचा और उनकी सरकार में मंत्री रहे शिवपाल यादव ने अनुशंसित किए थे। एक नाम सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान ने भी अनुशंसित किया था। अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रहे राजा भैया ने भी दो नामों की अनुशंसा की थी जिन्हें यश भारती मिला। हिन्दुस्तान टाइम्स के लखनऊ संस्करण की स्थानीय संपादक सुनीता एरोन द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय को ईमेल द्वारा ‘अनुशंसित’ उम्मीदवार को भी यश भारती मिला था।
राज्य की मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार यश भारती पुरस्कारों की समीक्षा कर रही है, खासतौर पर साल 2015 में बनाए गए आजीवन 50 हजार रुपए मासिक पेंशन देने के प्रावधान का। उत्तर प्रदेश के एक आईएएस की बेटी को महज 19 साल की उम्र में यश भारती पुरस्कार दिया गया था। यूपी के संस्कृति विभाग की संयुक्त निदेशक अनुराधा गोयल ने बताया कि वित्त वर्ष 2017-18 में यश भारत के तहत आजीवन पेंशन मद में कुल 4.66 करोड़ रुपए आवंटित हैं लेकिन अभी तक एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया है। गोयल ने बताया कि संस्कृति विभाग के निदेशक ने पुरस्कारों की समीक्षा का आदेश दिया है। हालांकि यश भारती को बंद करने पर यूपी के संस्कृति मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहा, “यश भारती पुरस्कार और पेंशन के बारे में सरकार विचार कर रही है लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है।”
यश भारती पुरस्कारों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “बीजेपी हमारी सरकार द्वारा किए गए हर अच्छे काम को बंद कर देना चाहती है। यश भारती अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को दिया जाता था। सभी नाम उच्च-स्तरीय कमेटी द्वारा तय प्रक्रिया के तहत चुने गए थे।” हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि यश भारती पुरस्कार देने की “तय प्रक्रिया” क्या थी। यश भारती पुरस्कार और पेंशन पाने वाले कुछ चुनिंदा लोगों के नाम नीचे दिए जा रहे हैं-
- शिखा पाण्डे- दूरदर्शन की एक्सटर्नल कोऑर्डिनेटर। 2016 में उनके नाम की अनुशंसा लखनऊ के तत्कालीन एडीएम जय शंकर दुबे ने की थी। पाण्डेय की सीवी में लिखा है कि उन्होंने चार साल तक मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित कार्यक्रम का आयोजन किया जिसकी प्रशंसा सीएम ने भी की।
- अशोक निगम- 2013 में यश भारत पाने वाले निगम ने सीवी में लिखा है, “संप्रति समाजवादी पार्टी की पत्रिका समाजवादी बुलेटिन का कार्यकारी संपादक।” निगन ने खुद को समाजवादी विचारधारा का लेखक बताया था।
- रतीश चंद्र अग्रवाल- मुख्यमंत्री के ओएसडी ने तीन सितंबर 2016 को अपने नाम की ही अनुशंसा की और उन्हें यश भारती पुरस्कार और पेंशन मिल गये।
- नवाब जफर मीर अब्दुल्लाह- नवाब को खेल वर्ग में यश भारती मिला। वो अवध रियासत के वजीर रहे नवाब अहमद अली खान के वंशज हैं। उनकी सीवी में लिखा है कि वो “कारोबारी” हैं और उनका आवास “लखनऊ और पूरा भारत” है।
- काशीनाथ यादव- समाजवादी पार्टी के सांस्कृतिक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष। उन्होंने 27 अप्रैल 2016 को पार्टी के लेटरहेड पर अपनी सीवी भेजी। उनकी सीवी में लिखा है कि उन्होंने कई सांस्कृतिक कार्यक्रम किए, गीत गाए और समाजवादी पार्टी की योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया। काशीनाथ यादव ने ये भी लिखा कि उन्होंने 1997 में सैफई महोत्सव में भोजपुरी लोकगीत गाया था।
- मणिन्द्र कुमार मिश्रा- सपा नेता मुरलीधर मिश्रा के बेटे। आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले मिश्रा ने अपने सीवी में लिखा है कि उन्होंने साल 2010 में मेघालय के खासी जनजाति के बीच रहकर दो महीने तक फील्डवर्क किया था। मिश्रा ने अखिलेश यादव पर “समाजवादी मॉडल के युवा ध्वजवाहक” नामक किताब भी लिखी है।
- ओमा उपाध्याय- साल 2016 में यश भारती पाने वाले उपाध्याय ने अपनी सीवी में लिखा है कि उन्होंने 2010 में ज्योतिष और मनोविज्ञान आधारित विशेष वस्त्र बनाने की युगांतकारी तकनीकी विकसित की थी।
- अर्चना सतीश- अर्चना सतीश के नाम को 27 अक्टूबर 2016 को यश भारती पुरस्कार समारोह में ही मंच पर अखिलेश यादव ने मंजूरी दे दी। अर्चना सतीश कार्यक्रम का संचालन कर रही थीं। उनकी सीवी में लिखा है, “प्रतिष्ठित सैफई महोत्सव का पिछले तीन सालों से संचालन”, और ” 4-5 जनवरी 2016 को आगरा में यूपी सरकार के अतिप्रतिष्ठित एनआरआई दिवस कार्यक्रम का संचालन”
- सुरभी रंजन- उस समय यूपी के मुख्य सचिव आलोक रंजन की पत्नी। उन्हें एक प्रतिष्ठित गायिका बताया गया है।
- शिवानी मतानहेलिया– दिवंगत कांग्रेसी नेता जगदीश मतानहेलिया की बेटी। शिवानी प्रतापगढ़ के एक कॉलेज में संगीत पढ़ाती हैं।
- हेमंत शर्मा- हाल ही में इंडिया टीवी से इस्तीफा देने वाले पत्रकार। उनकी सीवी में लिखा है, “पहले लेखन को गुजर बसर का सहारा माना, अब जीवन जीने का।” शर्मा की सीवी में दावा किया गया है कि वो 1989, 2001 और 2013 का महाकुम्भ कवर करने वाले एकलौते पत्रकार हैं।
यश भारती पाने वाली 20 वर्षीय स्थावी अस्थाना सबसे युवा पुरस्कार विजेता हैं। पुरस्कार पाने के समय वो एनएलयू दिल्ली में कानून की पढ़ाई कर रही थीं। उनके पिता हिमांशु कुमार आईएएस रैंक के अफसर हैं और उस समय यूपी सरकार के प्रधान सचिव थे। अस्थाना को घुड़सवारी के लिए खेल वर्ग में यश भारती दिया गया। आरटीआई से मिले सूचना के अनुसार पत्रकार सुनीता एरोन ने डॉक्टर कमर रहमान (एमिटी यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर और डीन (रिसर्च), रवि कपूर (फोटोग्राफर) और अतुल तिवारी (फिल्मकार) के नाम की यश भारती के लिए अनुशंसा की थी। इस बाबत पूछने पर एरोन ने कहा, “अगर मैं दूसरों को पुरस्कार दिला सकती थी तो मैं अपने लिए कोशिश क्यों नहीं करती? दरअसल मैंने सीएम ऑफिस के ऑफर को ठुकरा दिया था। ये तीनों लोग सीएम से खुद मिले थे। तीनों ने अपने फील्ड में बड़ा काम किया है। फीडबैक और अनुशंसा में फर्क होता है।’
उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट पर यश भारती पाने वाले करीब तीन दर्जन नाम ऐसे हैं जिनके बारे में आरटीआई के तहत जानकारी नहीं दी गयी।
साभार- जनसत्ता और इंडियन एक्सप्रेस से