पत्रकारिता सिर्फ पेशा ही नहीं बल्कि यह जुनून और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा भी है। अपने इसी जज्बे की बदौलत कई पत्रकारों ने दुनिया में वो कर दिखाया है जो आम आदमी सोच भी नहीं सकता है। आज भी दुनिया ऐसे पत्रकारों के जज्बे को सलाम करती है। ऐसी ही एक अमेरिकी पत्रकार थीं एलिजाबेथ, जिन्होंने अमेरिका में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए काफी काम किया। समाज के लोगों के लिए कुछ कर गुजरने का यह उनका जुनून ही था कि एक असाइनमेंट के लिए उन्होंने दस दिन एक मेंटल हॉस्पिटल में गुजारे, ताकि वहां की सच्चाई लोगों के सामने आ सके और वहां भर्ती मरीजों को उनके अधिकार मिल सकें।
एलिजाबेथ कोचरन सीमैन एक अमेरिकी पत्रकार थीं, जिन्हें उनके उपनाम नीले ब्लाई (Nellie Bly) से ज्यादा जाना जाता है। उन्हें 72 दिनों में दुनिया भर में अपनी रिकॉर्ड-ब्रेकिंग यात्रा के लिए भी याद किया जाता है।
एलिजाबेथ के पत्रकार बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है। उनका जन्म अमेरिका केपेंसिल्वेनिया में पांच मई 1864 को हुआ था और यहीं पर उनका बचपन बीता। छोटी उम्र से ही वह काम करना चाहती थीं और अपना करियर बनाना चाहती थीं। एलिजाबेथ जब कम उम्र की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद उन्होंने ही अपनी मां और अपने 14 भाई-बहनों की देखभाल व मदद की।
एलिजाबेथ को शुरू से ही पसंद नहीं था कि महिलाएं सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित होकर रहें, इसलिए उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह घर से बाहर निकलकर अपनी दुनियां बनाएंगी और कुछ अलग हटकर करेंगी।
उन्हीं दिनों ‘Pittsburgh Dispatch’ नामक अखबार में ‘What Girls Are Good For’ शीर्षक से एक आर्टिकल छपा। बताया जाता है कि इस आर्टिकल को पढ़कर एलिजाबेथ काफी परेशान थीं और उन्होंने इसके एडिटर जॉर्ज मेडन (George Madden) को एक लेटर भी लिखा था। एलिजाबेथ का लेटर पढ़कर एडिटर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने एलिजाबेथ से अखबार के लिए आर्टिकल लिखने को कहा। इसके बाद एलिजाबेथ ने अखबार के लिए आर्टिकल लिखा और इसे पढ़कर जॉर्ज मेडन ने एलिजाबेथ को अखबार में नौकरी ऑफर कर दी और उन्हें एक नया नाम नीले ब्लाई दे दिया।
इस नए नाम के साथ एलिजाबेथ ने महिलाओं के अधिकारों समेत उनसे जुड़े मुद्दों पर काफी लिखा। हालांकि उस समय यह असामान्य बात थी क्योंकि तब महिलाओं को लेकर सिर्फ फैशन, सोसायटी और बागवानी आदि पर ही लिखा जाता था।
इसके अलावा एलिजाबेथ ने खोजी पत्रकारिता पर भी काम किया। इसके लिए वह चुपके-चुपके एसी दुकानों पर गईं, जहां पर महिलाएं दयनीय स्थिति में काम करती थीं और वहां की स्थिति को उन्होंने अखबार के माध्यम से उजागर किया।
लेकिन कुछ समय बाद एलिजाबेथ के एडिटर ने उन्हें अखबार में छपने वाले महिलाओं से संबंधित पेजों से हटा दिया। इसके बाद एलिजाबेथ ने जीवन में बेहतर संभावनाओं को तलाशने के लिए पिट्सबर्ग छोड़कर न्यूयॉर्क जाने का फैसला कर लिया।
अमेरिका के इस बड़े शहर में उनके लिए शुरुआती दिन काफी मुश्किलों भरे रहे। शुरुआत में चार महीने तक उन्हें काम ही नहीं मिला। हालांकि बाद में उन्हें ‘न्यूयॉर्क वर्ल्ड न्यूजपेपर’ (New York World newspaper) में नौकरी मिल गई। यहां सबसे पहले असाइनमेंट के तौर पर उन्हें वहां के बदनाम मेंटल हॉस्पिटल में खुफिया तौर पर जाकर वहां की सच्चाई सामने लाने के लिए कहा गया। लेकिन वहां से जानकारी निकालना इतना आसान काम नहीं था। इसके लिए वहां कोई जाना नहीं चाहता था। ऐसे में इस आश्वासन पर कि दस दिनों बाद एलिजाबेथ को वहां से निकाल लिया जाएगा, वह जीवन में अपने सबसे मुश्किल असाइनमेंट पर जाने को राजी हो गईं।
हालांकि एलिजाबेथ को पता था कि यह फैसला उनके लिए काफी मुश्किलों भरा हो सकता है, लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि यह उनके जीवन के सबसे खराब दौर में शामिल होगा।
अस्पताल में जितने कमरे थे, उससे ज्यादा वहां पर मरीज भर्ती थे। यहां पर उनको खाने में सूखी ब्रेड, खराब मीट और गंदा पानी पीने के लिए दिया जाता था और वहां पर चूहों की भी भरमार थी।
एलिजाबेथ ने मानसिक रूप से बीमार होने का नाटक किया था लेकिन उन्होंने वहां की जो स्थिति बताई, वह किसी अच्छे-भले इंसान को मानसिक बीमार बनाने के लिए काफी थी। इसके अलावा एलिजाबेथ को वहां पर कई ऐसी महिलाएं भी मिलीं जो मानसिक रूप से बीमार नहीं थी लेकिन गरीब व अंग्रेजी न जानने के कारण वहां पर भर्ती थीं। हालांकि जो वास्तव में मानसिक रूप से बीमार थीं, उनकी उचित देखभाल भी नहीं की जाती थी।
यहां पर मरीजों को गालियां दी जाती थीं, उन्हें बांधकर पीटा जाता था और शॉवर के स्थान पर उन्हें ठंडे पानी से नहाने-धोने के लिए मजबूर किया जाता था। हालांकि कुछ लोग इसकी शिकायत भी करते थे, लेकिन डॉक्टर्स इन बातों को मानने से इनकार कर देते थे। यही नहीं, शिकायत करने वालों पर और अत्याचार किया जाता था।
जैसा कि एलिजाबेथ से वादा किया गया था, दस दिन बाद एक वकील आया और उसे वहां से निकाला गया, लेकिन जब डॉक्टर्स के सामने महिला रिपोर्टर की पहचान खुली तो वे भौचक्के रह गए।
इसके बाद एलिजाबेथ की किताब ‘Ten Days in a Mad-House’ प्रकाशित हुई तब जाकर सरकार जागी और एलिजाबेथ द्वारा सुझाए गए बदलावों को लागू किया। इसके बाद वहां के मरीजों की स्थिति में सुधार हुआ। इसके बाद तो एलिजाबेथ देशभर में मशहूर हो गईं। इसके बाद भी उन्होंने महत्वपूर्ण आर्टिकल लिखना जारी रखा, जिनकी बदौलत समाज में काफी सुधार हुआ।
एलिजाबेथ ने कई युवा महिलाओं को प्रेरित किया। 57 साल की उम्र में वर्ष 1922 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके निधन से दो साल पूर्व ही वहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार हासिल हुआ था।
साभार- http://samachar4media.com/ से