इंदौर। तीस साल पहले साइकिल से एक रुचि के रुप में पांच किताबों से शुरू की गई शहर के 45 वर्षीय श्याम अग्रवाल की चलती फिरती लाइब्रेरी में आज हजारों किताबें हैं और इंदौरियन्स के लिए स्कूटर पर चलने वाली इस बुक ऑन व्हील्स में स्टोरी बुक्स, नोवेल, मेगजीन्स, कॉमिक्स सब कुछ किताबें उपलब्ध है।
1987 में जब श्याम अगवाल ने इस लाइब्रेरी की शुरुआत की थी तब उनकी उम्र महज पंद्रह साल थी। आठवी कक्षा में पढ़ रहे अग्रवाल के मन में यह विचार तब आया जब उन्होने अपने भाई से यह जाना की मल्हारगंज के कुछ लोग किताबों व मैगजीन्स की फ्री डिलेवरी की मांग करते हैं। इसके बाद उन्होंने सोचा की क्यों न इस तरह का क्लब बनाया जाए जिसमें लोग किताबें एक्सचेंज कर सकें।
पांच सौ से अधिक सदस्य
अपने विचार को मूर्त रुप देने के लिए श्याम अग्रवाल ने सरवटे बस स्टेंड से मात्र सौ रुपये में पांच नोवेल्स और कुछ मैगजीन्स खरीदीं और अपने दोस्तों के साथ आपस में किताबें बदलनी शुरु की। शुरु में कुछ लोगों ने उन्हे सहायता की और धीरे-धीरे लाइब्रेरी जाए बिना ही किताबें पढ़ने व आपस में उन्हे बदलने का तरीका शहर के लोगों को पसंद आने लगा और दस लोगों से बढ़कर आज इस सुविधा ऐजेंसी में पांच सौ से अधिक सदस्य हैं जिसमें लाइब्रेरी की शुरुआत के दस सदस्य भी शामिल हैं।
200 से अघिक मोहल्लों मे वितरित कर रहे किताबें
शुरु में दस घरों में किताबें देने की शुरुआत करने वाले श्याम अग्रवाल आज शहर की 200 से अधिक कालोनियों में नियमित रुप से किताबें व मैगजीन्स वितरित कर रहे हैं। आज किताबों की मांग इतनी बढ़ गयी है कि उन्हें अपने अलाव दो तीन अन्य लोगों को किताबें वितरित करने के लिए रखना पड़ा है।
समय बदलने के साथ ही श्याम अग्रवाल की लाइब्रेरी में न केवल किताबों की संख्या बढ़ी बल्कि उनके आवागमन का साधन भी बदल गया है पहले जहां वो साइकिल से जाते थे आज वो किताबें देने के लिए स्कूटर से जाते हैं।
गुजराती कॉलेज से कार्मस ग्रेजुएट श्याम अग्रवाल के चेहरे की मुस्कान से उनकी खुशी का अहसास लगाया जा सकता है। उनका कहना है कि पिछले 30 सालों में बहुत कुछ बदल गया। शुरुआत में मै साइकिल से जाता था पर चार साल बाद ही लाइब्रेरी के सदस्य बड़ने के साथ ही मैने 1991 में लूना से जाना शुरु कर दिया और उसके बाद स्कूटर से।
पहले कुछ साल दिनभर में मुश्किल से आठ से दस किताबें ही दे पाता था वहीं आज कम से कम 75 से 80 किताबें हर दिन वितरित होती हैं।
डिजीटल क्रांति के इस युग में आज जब सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध है ऐसे में इस तरह की लाइब्रेरी चलाना बहुत चुनौतीपूर्ण है। हालांकि कुछ हद तक उनके वयवसाय पर इसका असर तो हुआ है लेकिन उनके पुराने सदस्य उनका साथ नहीं छोडते इसीलिए वे आज भी अपनी इस लाइब्रेरी में लगातार किताबों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं।
पुरानी मैगजीन्स अस्पतालों को देते हैं
सामाजिक सेवा के उददेश्य से कहानियों की पुरानी किताबें और मैगजीन्स श्याम अग्रवाल उन्हें बेचने की बजाय अस्पतालों को देते हैं जिससे मरीज इन किताबों को पढ़ सकें।
साभार-दैनिक नई दुनिया से