देश की जीवन रेखा भारतीय रेल तमाम चुनौतियों से जूझ रही है। भारी भरकम योजनाओं का आर्थिक बोझ और व्यस्ततम रेल मार्गों पर लगभग 22 हजार यात्री ट्रेनों व मालगाड़ियों के रोजाना संचालन से रेलवे की रफ्तार थम सी गई है। यात्रियों के लिए महीनों लंबी आरक्षण सूची और प्रतिदिन अधिकांश ट्रेनों के विलंब से चलने से लाखों लाख यात्री जूझ रहे हैं। रेल पटरियों पर लगातार ट्रेनों की आवाजाही से कमजोर हो रही पटरियों के मरम्मत व रखरखाव का पूरा समय न मिलने से भीषण रेल दुर्घटनाएं भी यदाकदा हो जा रही हैं। इन तमाम समस्याओं और चुनौतियों का समाधान डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर कारपोरेशन आफ इंडिया लि.(डीएफसीसीआईएल) से ही होगा। अर्थात् दिल्ली-मुंबई, चेन्नई-हावड़ा को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना रेल यात्रा व माला भाड़ा ढुलाई ही नहीं देश की पूरी परिवहन व्यवस्था की तस्वीर बदल देगा। साथ ही डीएफसी परियोजना अर्थव्यवस्था के लिए भी मील का पत्थर साबित होगी।
वर्ष 2020 समूचे रेल परिवहन की दिशा, दशा में आमूल-चूल परिवर्तन करने जा रहा है, क्योंकि देश के सर्वाधिक व्यस्त रेल मार्गों दिल्ली-मुंबई और दिल्ली कोलकाता के बीच बन रहा स्वर्णिम चतुर्भुज समर्पित रेल गलियारा तेजी से तैयार हो रहा है, जिस पर सिर्फ और सिर्फ मालगाड़ियां चलेंगी। वहीं मौजूदा रेल लाइनों पर सिर्फ यात्री ट्रेनें चलेंगी। परियोजना के पूरा होने पर प्रत्यक्ष तौर पर यात्रियों के लिए टिकटों की प्रतीक्षा सूची बीते दिनों की बात हो जाएगी। साथ ही रेल पटरियों के जल्दी जल्दी खराब होने और उनके रखरखाव का भी समय न मिलने के कारण हो रही दुर्घटनाएं भी नहीं के बराबर होंगी। रेलवे अभी 9 से 10 हजार से अधिक यात्री ट्रेनें चला रहा है, जिससे सवा 2 करोड़ दैनिक व लंबी दूरी की यात्रा लोग कर रहे हैं। इसी रेल रूट पर अभी लगभग 8 से 9 हजार मालगाड़ियां चलती हैं, जो धीरे-धीरे करके वर्ष 2021 तक स्वर्णिम चतुर्भुज कारीडोर पर चली जाएंगी। इसका परिणाम यह होगा कि रेल यात्रियों के लिए जहां जरूरत के मुताबिक नई यात्री ट्रेनें चलाई जा सकेंगी, वहीं ट्रेनों की रफ्तार में अच्छा खासा इजाफा भी होगा। ट्रेनों की बढ़ी रफ्तार के साथ यात्रियों को कन्फर्म टिकट उनकी मांग के अनुरूप मिलने लगेगा।
मौजूदा स्थिति में दिन रात दौड़ रही यात्री ट्रेनों व मालगाड़ियों के कारण रेल पटरियां जर्जर हो गई हैं। यही कारण है की प्रतिवर्ष देशभर में लगभग पांच से छह हजार मामले पटरियों में दरार आने व नट-बोल्ट ढ़ीले होने के होते हैं, इसमें से कुछ दर्जन घटनाएं गंभीर हादसे में तब्दील हो जाती हैं। मुंबई-दिल्ली-हावड़ा और देश के अन्य व्यस्ततम रेल रूट पर ट्रेनों का भारी ट्रैफिक है, तो मालगाड़ियों पर निर्धारित क्षमता से लगभग दो सौ प्रतिशत अधिक वजन की ढ़ुलाई हो रही है। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कार्यभार संभालते ही लगातार हो रही दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल पटरियों की मरम्मत करने व उन्हें बदलने का निर्देश दिया है, लेकिन यह काम भी आनन फानन में पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि विशालकाय 1 लाख 35 हजार किलोमीटर रेल नेटवर्क को दुरूस्त करने के लिए काफी समय लगना है।
रेल पटरियों की जर्जर हालत पर बीते एक दशक में संसद की रेल संबंधी समितियों और कैग ने भी 2010 की अपनी रिपोर्ट में चिंता जताई थी। रेलवे का मुनाफा बढ़ाने के लिए मालगाड़ियों का एक्सेल लोड एक दशक पूर्व क्षमता से अधिक बढ़ा दिया गया था। रेल मैनुअल के अनुसार 4800 से 5000 टन से अधिक वजन नहीं होना चाहिये, लेकिन सभी मालगाड़ियों में 5500 टन की ओवरलोडिंग की जाती रही है। यही नहीं, कई बार तो दो मालगाड़ियों को एक साथ जोड़ दिया जाता है। दुनिया के तमाम देशों में इस समय अल्ट्रासोनिक ट्रैक डिटेक्शन मशीन और हाई स्पीड रेल चेक मशीन से पटरी की सतह, दरार, रनिंग खराबी व गिट्टी की पूरी जांच होती है। इस तरह की मशीनें देश में खरीदे जाने की जरूरत है। इन सब चुनौतियों को देखते हुए ही डीएफसी का काम बीते एक साल में ही 5 गुना तेजी से बढ़ा है। अत्याधुनिक एनटीसी मशीनों द्वारा मैकेनाइज्ड ट्रैक लाइन तेजी से बिछाई जा रही है। काम में तेजी लाने के लिए डीएफसी ने और मशीनों को विदेशों से मंगाया है ताकि दिसंबर 2019 तक काम पूरा किया जा सके।
डीएफसीसीआईएल को रेलवे मंत्रालय के 100 प्रतिशत अंशदान के साथ 30 अक्टूबर 2006 में कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत शुरू किया गया था। इस योजना की अवधारणा है कि देश के 4 महानगर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और हावड़ा को जोड़ दिया जाए। चूंकि यह मौजूदा रेल ढांचे में अत्यधिक ट्रैफिक दबाव वाला नेटवर्क है, इसलिए इन महानगरों के लिए माल भाड़े की ढुलाई समर्पित रेल गलियारा तेजी से कर सकेगा। इस पूरे रूट की लंबाई 10122 किलोमीटर होगी. योजना के तहत दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कारीडोर एवं अमृतसर-कोलकाता इंडस्ट्रियल कारीडोर बन रहे हैं। इसके अलावा पश्चिमी और पूर्वी कारोडोर भी बनाए जाएंगे। दरअसल, डीएफसी का पूरा नेटवर्क अत्याधुनिक और हाईस्पीड है। इस पर 13 हजार टन का वजन लेकर मालगाड़ियां 75 से लेकर 100 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से माल ढुलाई करेंगीं। मौजूदा समय में मालगाड़ियां 5 हजार टन का भार लेकर 25 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलती हैं।
इस तरह देश के मालभाड़ा यातायात और लाजिस्टिक्स परिदृश्य में स्वर्णिम चतुर्भुज एक नई क्रांति लाने जा रहा है। इन मालगाड़ियों पर अधिकांशत: रो-रो माध्यम से ढुलाई होगी। अर्थात् माल से लदे ट्रक इन मालगाड़ियों पर लादे जाएंगे और वह गंतव्य तक सीधे पहुंचाए जाएंगे। इस तरह दिल्ली-मुंबई का जो सफर अभी 2 से 3 दिन में होता है, वह 24 घंटे के अंदर होने लगेगा। यह मालगाड़ियां इतनी अत्याधुनिक होंगी कि एंड ऑफ ट्रेन टिलेमट्री सिस्टम होने के कारण यह बिना गार्ड के चलेंगी। दो स्टेशनों के बीच औसत दूरी 40 किलोमीटर रखी जा रही है और ट्रेनें टाइम टेबल के हिसाब से चलेंगी। दूसरे चरण में मालगाड़ियों को डबलडेकर भी चलाए जाने की योजना है। इस तरह मालगाड़ियां 13 के बजाए 26 हजार टन का वजन लेकर चल सकेंगी। डीएफसी पूरे रूट को लेवल क्रांसिंग मुक्त बना रही है। इसके लिए रोड ओवरब्रिज और अंडरब्रिज बनाए जा रहे हैं। बेरोकटोक रेल व सड़क यातायात संचालन के लिए पूरे रूट पर 1003 लेवल क्रांसिंग को हटाकर 689 रोड अंडरब्रिज और 314 ओवरब्रिज बनाए जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार डीएफसी के पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद 70 प्रतिशत मालभाड़ा इस विशेष रूट पर चला जाएगा। इसके बाद मौजूदा रेल पटरियों पर यात्री ट्रेनें बेधड़क चल सकेंगी।