भोपाल। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे देश में मातृभाषा बचाओ अभियान चलाएगा। संघ का मानना है कि अंग्रेजी माध्यम के बालवाड़ी (प्ले स्कूल), शिशु सदन (नर्सरी) और पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों (प्री-प्राइमरी) के बढ़ते प्रभाव के कारण बच्चे अपनी मातृभाषा से दूर होते जा रहे हैं। इससे अगले दशकों में भारतीय भाषाओं के नष्ट हो जाने का ख़तरा नकारा नहीं जा सकता है।
मातृभाषा से जोड़े रखने के लिए आवश्यक है कि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उन्हीं की मातृभाषा में दी जाए। अर्थात् मराठी, तमिल, कन्नड, बांग्ला, ओडिया, गुजराती, मलयालम, नेपाली, पंजाबी, सिंधी या कोई भी अन्य क्षेत्रीय भाषा जानने वाले बच्चों को उन्हीं की भाषा में पढ़ाया जाए।
इसके लिए देशभर के गैर-हिंदीभाषी प्रचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बैठक में भाग लेने के लिए भोपाल आ रहे हैं। वे यहां अपने-अपने राज्य के निवासियों के साथ उन्हीं की भाषा में बैठक करेंगे और उन्हें मातृभाषा बचाने सहित संघ के लक्ष्य से अवगत कराएँगे। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय भाषाओं को बचाए रखना है। संघ सूत्रों का कहना है कि जब बच्चे की आयु मातृभाषा सीखने की होती है, तब उसे अंग्रेजी की बालवाड़ी में डाल दिया जाता है। इस कारण से उन्हें अपनी मातृभाषा का भी ज्ञान नहीं हो पाता, नयी पीढ़ी के बच्चों, किशोरों और युवाओं में अपनी मातृभाषाओं का ज्ञान न के बराबर ही रह गया इसलिए परिवार में भी नई पीढ़ी के बच्चे अंग्रेजी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं।
प्रचारक जाएंगे बारह समाज की बैठक में:
संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की 12 से 14 अक्टूबर को होने वाली बैठक शामिल होने के लिए देशभर के प्रचारक भोपाल आ रहे हैं। इनमें से कई गैर-हिंदीभाषी राज्यों के हैं। इस तरह 12 समाज की बैठक भोपाल में अलग-अलग स्थानों पर बुलाई गई है। इनमें खासतौर से दक्षिणभाषी राज्यों के तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड के साथ गुजराती, ओडिया, बंगाली, नेपाली, पंजाबी और सिंधी समाज की बैठक होंगी। ये समाज भोपाल में बहुत संख्या में हैं। बैठक में मातृभाषा को बचाने के साथ संघ का परिचय भी लोगों को दिया जाएगा। संघ से जुड़े वरिष्ठ प्रचारक का मानना है कि देश की जो नई शिक्षा नीति बन रही है, उसमें प्राथमिक तक की शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने का विकल्प जोड़ा जाना चाहिए। उसमें अंग्रेजी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाए, हमें आपत्ति नहीं पर मूल शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए ।