अठारह सौ सत्तावन भारतीय इतिहास का एक प्रस्थान बिंदु है। आज जिस काल-खंड को हम रेनेसाँ, पुनर्जागरण या नवजागरण जैसे नामों से पुकारते हैं वह अठारह सौ सत्तावन के बाद ही दृश्य में आता है। हिंदी समय (http://www.hindisamay.com) पर इस बार हम हिंदी के शीर्ष चिंतकों में से एक नामवर सिंह का व्याख्यान उन्नीसवीं सदी का भारतीय पुनर्जागरण : यथार्थ या मिथका मिथक प्रस्तुत कर रहे हैं। यह व्याख्यान इस काल-खंड के बारे में रची गई अनेक स्थापनाओं से न सिर्फ बहस में उतरता है बल्कि उन स्थापनाओं की सीमाओं और प्रस्थान बिंदुओं के बारे में भी नई और विचारोत्तेजक अवधारणाएँ पेश करता है। अजमेर सिंह काजल का आलेख नवजागरण के दलित प्रश्न : ज्योतिबा फुले और प्रेमचंद की दृष्टि को इस खास संदर्भ को ध्यान में रखते हुए भी पढ़ा जा सकता है।
आलोचना के अंतर्गत पढ़ें अरुण कमल की कविताओं पर युवा आलोचक पंकज पराशर के नोट्स वे मारे गए पर हत्यारा कोई नहीं तथा निर्मल वर्मा की कहानियों पर केंद्रित अभिजीत सिंह का आलेख कला और वेदना के रोमानी कथाकार : निर्मल वर्मा। निबंध के अंतर्गत पढ़ें गिरीश्वर मिश्र के दो निबंध स्वतंत्रता का विवेक और बाजार का तिलिस्म और हमारा बदलता स्वभाव । विशेष के अंतर्गत पढ़ें प्रख्यात अश्वेत लेखिका माया एंजेलो के जीवन और रचनाकर्म पर एकाग्र गरिमा श्रीवास्तव का लेख एक थी माया तथा अफ्रीकी लेखिका चीमामांडा के जीवन और रचनाकर्म पर एकाग्र विजय शर्मा का लेख चीमामांडा : सूक्ष्म नस्लवाद को उधेड़ती रचनाकार। पर्यावरण के अंतर्गत पढ़ें गरिमा भाटिया का लेख इक्कीसवीं सदी का पर्यावरण – खतरे में जीवन, उमेश चतुर्वेदी का रिपोर्ताज अपनी तरफ ध्यान बँटाने के लिए नदी तोड़ती है तटबंध तथा डॉ. मिथिलेश कुमार का लेख जन-आंदोलन एवं गांधी दृष्टि।
कहानियाँ इस बार दस हैं। यहाँ प्रस्तुत हैं स्वयं प्रकाश की कहानी पिताजी का समय, राजेंद्र लहरिया की कहानी यहाँ कुछ लोग थे, अनवर सुहैल की कहानी नसीबन , स्वाति तिवारी की कहानी प्रायश्चित, गीताश्री की कहानी सोनमछरी, विपिन कुमार शर्मा की कहानी गिलोटीन, आशुतोष की कहानी दादी का कमरा, सर्वेश सिंह की कहानी पत्थरों के मन में क्या है! अखिलेश मिश्रा की कहानी जमीन का टुकड़ा, और शेषनाथ पांडेय की कहानी घर। कहने की जरूरत नहीं कि यह कहानियाँ हिंदी कथा संसार के वैविध्य का एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। कविताओं के अंतर्गत पढ़ें शंकरानंद ,नरेश अग्रवाल ,प्रतिभा गोटीवाले, वाज़दा ख़ान , और कुमार अनुपम की कविताएँ। भाषांतर के अंतर्गत पढ़ें उड़िया कवि प्रीतिधारा सामल की कविताएँ। इन कविताओं का अनुवाद किया है उड़िया के चर्चित कवि, अनुवादक शंकरलाल पुरोहित ने।
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अरुणेश नीरन
संपादक, हिंदी समय