राजनांदगांव । शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभाग में कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भिलाई के प्राध्यापक डॉ. सुधीर शर्मा ने प्रेरक अतिथि व्याख्यान देते हुए कहा कि सतत प्रयोग और सृजन से ही छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान और मान बढ़ेगा। विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर मुनि राय ने व्याख्यान पर प्रस्ताविक उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि विद्यार्थी इस रचनात्मक अवसर का पूरा लाभ उठाएं ।आयोजन का संयोजन करते हुए डॉ. चंद्रकुमार जैन ने भाव पूर्ण शब्दों में अतिथि वक्ता डॉ.सुधीर शर्मा की उपलब्धियों एवं सेवाओं का सरस परिचय दिया । हिंदी विभाग के श्री राम आशीष तिवारी, डॉ. नीलम तिवारी,डॉ. स्वाति दुबे तथा डॉ.गायत्री साहू सहित बड़ी संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों ने डॉ. शर्मा का स्वागत किया ।
इस अवसर पर डॉ. सुधीर शर्मा ने छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य के अतीत और वर्तमान की मर्मस्पर्शी चर्चा की । उन्होंने छत्तीसगढ़ी में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक जैसी विधाओं के महत्वपूर्ण लेखन के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी भाषा की मिठास तथा उसके निरालेपन की जानकारी दी । डॉ शर्मा ने लगभग सातवीं सदी से प्रारंभ कर आज तक के छत्तीसगढ़ी साहित्य सृजन के प्रमुख पड़ावों का सारभूत उल्लेख किया ।
अतिथि वक्ता डॉ शर्मा ने छत्तीसगढ़ में धर्मदास से लेकर पंडित सुंदरलाल शर्मा तक और उससे आगे की रचनाधर्मिता को भी कई ज़िक्र करते हुए उनके योगदान के आलोक में समझाया । छत्तीसगढ़ी और उसमें लेखन को संभावनापूर्ण बताते हुए कहा कि उन्होंने कहा कि छत्तीससगढ़ की उर्वर भूमि हिंदी के भी महान साहित्यकारों की कर्मभूमि है और रही है । उन्होंने बताया कि कामताप्रसाद गुरु का प्रथम हिंदी व्याकरण भी छत्तीसगढ़ में रहकर रच गया । उन्होंने प्रख्यात बहुभाषाविद डॉ रमेशचंद्र मेहरोत्रा द्वारा निरूपित छत्तीसगढ़ी के छत्तीस रूपों के साथ उनके योगदान पर चर्चा की ।
डॉ. शर्मा ने विद्यार्थियों के प्रश्नों के उत्तर छत्तीसगढ़ी में दिए। अंत में डॉ चंद्रकुमार जैन ने विद्वान अतिथि वक्ता डॉ सुधीर शर्मा के वक्तव्य को अपनी भाषा के माध्यम से छत्तीसगढ़ महतारी तथा साहित्य की सेवा का एक सारस्वत अवसर निरूपित किया। आभार के साथ गरिमामय आयोजन संपन्न हुआ।