राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक और सतत सृजनरत प्रखर वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने संविधान दिवस पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान-सत्र में भारत के संविधान की प्रस्तावना पर मर्मस्पर्शी और ज्ञानवर्धक विचार व्यक्त किया। महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के इस गरिमामय आयोजन में बड़ी संख्या में उपस्थित छात्र-छात्राओं को डॉ. जैन ने बहुत सरल शब्दों में अपनी सुपरिचित तथा प्रभावशाली शैली से संविधान की प्रस्तावना के आदर्श, उद्देश्य और प्रभाव की जानकारी दी। एक-एक शब्द को एक-एक पल पूरी जिज्ञासा के साथ मंत्रमुग्ध होकर सुनने के बाद विद्यार्थियों ने एकमतेन स्वीकार किया कि उन्हें अपने संविधान और राष्ट्र पर गर्व करने नया फलसफ़ा मिल गया।
प्रारम्भ में राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अंजना ठाकुर ने आमंत्रित वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन की उपलब्धियों का आत्मीय शब्दों में परिचय दिया। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय के ही विद्यार्थी भी रहे डॉ. जैन ने पांच विषय हिंदी, अंग्रेजी, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र और लोक प्रशानन में एम.ए.और क़ानून की उपाधि के अलावा मूकमाटी जैसे बहुचर्चित महाकृति पर डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त की है। कई स्वयंसेवी कार्यों के रिसोर्स पर्सन, लेखक और ख्याति प्राप्त प्रेरक वक्ता डॉ. जैन पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम के हाथों छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण से सम्मानित हैं। स्वागत के पलों में करतल हर्ष ध्वनि से व्याख्यान कक्ष गूँज उठा। डॉ. संजय ने डॉ. जैन का पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया।
व्याख्यान के आरम्भ में डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने संविधान सभा की मंशा और संविधान निर्माताओं के मन और ध्येय की गहराई को स्पष्ट करते हुए कहा प्रस्तावना संविधान का मुखड़ा की नहीं उसकी आत्मा भी है। डॉ. जैन ने प्रस्तावना के हरेक शब्द का अर्थ बताते हुए उत्सुक विद्यार्थियों को उसका मर्म भी समझाया। सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय उपलब्ध कराना। विचार, मत, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करना। पद और अवसर की समानता देना। व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता स्थापित करना ही संविधान का उद्देश्य है। डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि इसमें लोगों को सबसे ऊपर रखा गया है। यह लोकतंत्र की प्राण प्रतिष्ठा का सहज प्रमाण है। इससे इतिहास में पहली बार भारत के लोगों को अपना भाग्य आप लिखने का सौभाग्य और अधिकार मिला। संविधान में आम आदमी की आवाज़ को वाज़िब जगह मिली। व्यक्ति की गरिमा को पहला स्थान दिया गया।
प्रसंगवश डॉ. जैन ने विद्यार्थियों की जानकारी के मद्देनज़र संविधान की प्रस्तावना में अमेरिका, रूस और फ़्रांस आदि देशों से ग्रहण की गई प्रेरणा का खुलासा भी किया। साथ ही उसके प्राधिकार की चर्चा भी की। प्रस्तावना के महत्त्व के साथ उसकी सीमाओं को भी सरल शब्दों में समझाया। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में किसी भी तरह के भेदभाव को अवैधानिक करार दिया गया है। भारत के लोग संविधान के मूल स्रोत हैं और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करना इसका परम ध्येय है।